मायावती बोलीं: आरएसएस की संकीर्ण व घातक मानसिकता

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लखनऊ । बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने जाति-आधारित आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था को समीक्षा कर उसे समाप्त करने की घोर दलित-विरोधी संकीर्ण सोच रखने वाले तत्वों की कड़ी आलोचना करते हुये कहा कि जिस देश व समाज में हर क्षेत्र में व हर स्तर पर जन्म के आधार पर जातिवादी व्यवहार का प्रचलन आम बात हो, वहाँ उस जांत-पांत के अभिशाप के संवैधानिक निदान को समाप्त करने की बात करना अन्याय, शोषण व उत्पीडऩ एवं अमानीयवता को और ज़्यादा बढ़ावा देना होगा।
मायावती ने आज यहाँ जारी एक बयान में कहा कि परपमपूज्य भारत रत्न बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर कहा करते थे कि अन्तर-जातीय खान-पान व अन्तर-जातीय विवाह आदि की इक्का-दुक्का घटनाओं से जाति व्यवस्था समाप्त होने वाली नहीं है। जाति एक मानसिकता है। यह एक प्रकार का मानसिक रोग है। हिन्दुत्व आधारित शिक्षाएं इस बीमारी का मुख्य कारण है एक कड़ुआ चीज को मीठा नहीं बनाया जा सकता है। किसी भी चीज का स्वाद बदला जा सकता है, परन्तु जहर को अमृत कभी नहीं बनाया जा सकता है। इस प्रकार समाज में हजारों वर्षों से जाति के नाम पर चला आ रहा भेदभाव, असमानता व शोषण एवं अन्याय अगर जाति पर आधारित है, तो उसका समाधान भी जातीय आधार पर ढूढऩा होगा। यही आदर्श स्थिति है। उन्होंने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन द्वारा अहमदाबाद में अधिकारियों व स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों की बैठक में शनिवार को जाति-आधारित आरक्षण की समीक्षा करने की जो बात कही गयी है वह एक मनुवादी सोच की ही उपज होने का शंका ज़ाहिर करती है। वैसे भी यह सर्वविदित है कि आर.एस.एस. की संकीर्ण व घातक मानसिकता रखने वालों द्वारा समीक्षा की बात करने का अर्थ उस व्यवस्था को समाप्त ही करना होता है।
एक तरफ तो हैदराबाद विश्वविद्यालय के पी.एच.डी. छात्र रोहित वेमुला की जातिवादी उत्पीडऩ के कारण आत्महत्या करने को मजबूर होने का मामला अभी शान्त भी नहीं हो पाया है कि एक उच्च संवैधानिक पद पर बैठी महिला ने अपने बयान से आग में घी डालने का ही काम किया है।
इतना ही नहीं बल्कि श्री रोहित वेमुला को अगर मरने के बाद भी न्याय नहीं मिला तो यही माना जायेगा कि माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रोहित वेमुला के मामले में भावुक हो जाना एक नाटकबाज़ी थी व उनके आँसू वास्तव में घडिय़ाली आँसू थे।