उप्र के दंगों के स्टिंग मामला,26 में उप्र विधानसभा ने किया तलब

vidhansabha upलखनऊ  फरवरी। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दंगे का स्टिंग ऑपरेशन करने वाले समाचार चैनल के पत्रकार 26 फरवरी को विधानसभा में अपना-अपना पक्ष रखेंगे। मंगलवार को विधानसभा ने करीब पौने तीन घंटे की बैठक के बाद समाचार चैनल कर्मियों को भी 26 फरवरी को मुजफ्फरनगर में दंगे का स्टिंग ऑपरेशन पर अपनी अंतिम बात रखने का मौका देने का निर्णय किया है। बैठक की अध्यक्षता विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय ने की।
इस मामले की जांच के लिए गठित विधानसभा जांच कमेटी ने 17 फरवरी को दंगे को लेकर न्यूज चैनल के स्टिंग ऑपरेशन को गलत करार दे चुकी है। कमेटी की रिपोर्ट में ने कहा गया है कि 17-18 सितंबर 2013 को न्यूज चैनल का स्टिंग ऑपरेशन गलत था। जांच के दौरान मंत्री आजम खान के दबाव में कई संदिग्ध लोगों को छोड़े जाने और एफआईआर को बदले जाने की बातें साबित नहीं हो पाई हैं। इस मामले में कमेटी ने चैनल के स्टाफ और अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की सिफारिश की है। स्टिंग की जांच के लिए सपा विधायक सतीश कुमार निगम की अध्यक्षता में 7सदस्यों की कमेटी बनी थी। कमेटी को स्टिंग ऑपरेशन की विश्वसनीयता चेक करनी थी। 49 मीटिंग के बाद कमेटी ने 350 पेज की रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट में 11 प्रशासनिक ऑफिसर, 18 चैनल से जुड़े लोगों और 5 एक्सपर्ट की गवाही है। चैनल के खिलाफ केबिल टेलिविजन नेटवर्क रेगुलेशन के एक्ट में एक्शन के लिए कहा गया है। अब विधानसभा को कार्रवाई तय करनी है।
गौरतलब है कि न्यूज चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया था कि दंगों के आरोपियों को पॉलिटिकल प्रेशर के कारण छोड़ दिया गया था। इसके बाद दंगे भडक़े थे। स्टिंग में ये भी दिखाया गया कि तत्कालीन डीएम को आरोपियों की तलाशी के कारण ट्रांसफर कर दिया गया। पॉलिटिकल प्रेशर के चलते इसमें एफआईआर भी बदली गई। स्टिंग में मंत्री आजम खान का नाम लेते हुए दिखाया गया। स्टिंग में दावा किया गया था कि आजम ने पुलिस अधिकारियों को फोन किया, जिससे उनकी रिहाई हुई। बड़े नेता ने कहा जो हो रहा है वह होने दो।
इस मामले को 17 सितंबर 2013 को विधानसभा में नेता विरोधी दल स्वामी प्रसाद मौर्या ने दंगे का मामला उठाया और मंत्री के इस्तीफे की मांग की। 18 सितंबर 2013 को तय हुआ कि ये मुद्दा सदन की गरिमा से जुड़ा है। लिहाजा पूरे मामले की जांच कराई जानी चाहिए। 24 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी हुआ।
याद रहे कि उप्र के मुजफ्फरनगर में 27 अगस्त 2013 को कवाल गांव में लडक़ी से छेडखानी को लेकर हुए संघर्ष में दो ममेरे और फुफेरे भाइयों सचिन और गौरव ने आरोपी अल्पसंख्यक युवक को पीट दिया, पिटाई से उसकी मौत हो गई, इस पर स्थानीय अल्पसंख्सक समुदाय ने दोनों भाइयों की पीट कर मार दिया। इस घटना में पुलिस की कार्रवाई को लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश भडक़ गया। विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग सक्रिय हो गए। 7 और 8 सितंबर को नंगला मंदौड़ में हुई जाट समुदाय की पंचायत से वापस लौट रहे लोगों पर हुए हमले के बाद हिंसा ने दंगे का रूप ले लिया था, जिसमें थाना फुगाना सर्वाधिक दंगे से प्रभावित हुआ था। दंगे के दौरान लोगों पर हत्याओं और आगजनी के सैकड़ों मामले दर्ज हुए थे। प्रदेश सरकार को दंगों में हुई क्षतिपूर्ति, मृतकों परिवारों को सहायता राशि आदि देने में 100 करोड़ रूपये से अधिक खर्च करने पड़े। दंगें में 64 लोगों की मौत और 40 हजार को राहत शिविरों में रहना पड़ा। राहत शिविरों में ठंड और इलाज के अभाव में कर्ई बच्चों की मौत भी हुई थी। राहत शिविर में सरकारी खर्च पर 55 निकाह भी हुए।
जांच समिति का निष्कर्ष
जांच समिति का यह भी निष्कर्ष है कि चैनल की टीम के स्टिंग ऑपरेशन से लोकसभा चुनाव के पहले राजनैतिक एवं सामाजिक ध्रुवीकरण भी हुए जिससे कि राजनीतिक परिणामों पर विशेष अंतर पड़ा, जिससे यह स्टिंग ऑपरेशन राजनीतिक उद्देश्य से प्रभावित लगता है और हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट की विधिक व्यवस्थाओं और एनबीए के मार्गदर्शी सिद्वान्तों के विपरीत था।
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