एफटीटीआई अध्यक्ष नियुक्ति पर चुप क्यों है सरकार

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कृष्णमोहन झा ।
पुणे स्थित भारतीय जिला एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीटीआई) की गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष पद पर गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति को लेकर छिड़ा विवाद जल्दी ही सुलझने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे है और सरकार के रूख से ऐसा नहीं लगता कि उसे इस विवाद को निपटाने में कोई दिलचस्पी है उल्टे केन्द्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री अरूण जेटली ने तो धमकी देने से भी परहेज नहीं किया है कि यदि गजेन्द्र चौहान की उक्त संस्थान के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति से उपजा विवाद शांत नहीं हुआ तो सरकार इसे निजी हाथों में सौंपने या संस्थान को बंद कर देने के विकल्प पर भी विचार कर सकती है। अरूण जेटली के बयान से स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार एफटीटीआई के अध्यक्ष पद पर गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति के अपने फैसले से पीछे हटने के लिए कतई तैयार नहीं है।
गौरतलब है कि देश के उक्त प्रतिष्ठत एवं नामी गिरामी संस्थान की गवर्निंग कौंसिल के अध्यक्ष पद कि लिए फिल्म जगत के महानायक अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और गुलजार जैसी विख्यात हस्तियों के भी नाम सुझाए गए थे परंतु सरकार को गजेन्द्र चौहान के नाम पर मुहर लगाकर सबको आश्चर्य चकित कर दिया और इस फैसले से उपजने वाले विवाद की आशंका को दरकिनार कर दिया। फिल्म जगत की वरिष्ठ हस्तियों के तत्काल ही इस फैसले के विरोध में बयान आने शुरू हो गए और संस्थान में अध्ययनरत छात्रों ने तो हड़ताल ही प्रारंभ कर दी। उन्हें संस्थान के अध्यक्ष पद पर गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति कतई मंजूर नहीं है। छात्रों का यह असंतोष बढ़ता ही जा रहा है और उसे गलत भी नहीं ठहराया जा सकता। जरा सोचिए क्या गजेन्द्र चौहान की तुलना अमिताभ बच्चन, रजनीकांत या गुलजार से की जा सकती है। गजेन्द्र चौहान की एक मात्र असली पहचान यही है कि उन्होंने लगभग ढाई दशक पूर्व दूरदर्शन पर प्रसारित महाभारत सीरियल में युधिष्ठिर की भूमिका अभिनीत की थी। वे उसके बाद अनेक धारावाहिकों में जरूर आए हैं परंतु अपने अभिनय से इतनी ख्याति अर्जित नहीं कर सकें कि अमिताभ बच्चन, गुलजार और रजनीकांत जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों के सामने कही ठहर सकें। पुणे के प्रतिष्ठित संस्थान के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के लिए जिस अनुभव और योग्यता को कसौटी माना जाता रहा है उसके आधार पर तो गजेन्द्र चौहान इन नामचीन हस्तियों के संग में भी नजर नहीं आते फिर उन्हें इस संस्थान का मुखिया बना दिया गया तो सरकार के इस फैसले का विरोध तो होना ही था। परंतु सरकार को शायद यह आशंका नहीं रही होगी की गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति का इतना उग्र विरोध होगा।
अपने विवादास्पद फैसले के पक्ष में केन्द्र सरकार का तर्क भी समझ से परे है। सरकार कह रही है कि हमने अमिताथ बच्चन, रजनीकांत, गुलजार, अनुपम खेर आदि विख्यात हस्तियों में एक के हाथों में संस्थान की बागडोर सौंपने के बजाय गजेन्द्र चौहान को इसलिए चुना क्योंकि उक्त फिल्मकारों की व्यस्तता के कारण संस्था के छात्रों को उनके अनुभव का लाभ मिलने की संभावना कम थी। सूचना प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन राठौर का कहना है कि हमने नामों को शार्ट लिस्ट करते वक्त इस बात का ध्यान रखा कि इस पद पर चुना जाने वाला व्यक्ति संस्थान को पूरा समय दे सके और चौहान इसमें ज्यादा फिट थे। राज्यवर्धन राठौड़ के तर्क से यह बात तो जाहिर है कि गजेन्द्र चौहान के पास ज्यादा काम नहीं है। वे इतने व्यस्त नहीं है कि संस्थान को पूरा समय देने में कठिनाई अनुभव करें। परंतु सवाल यह उठता है कि क्या गजेन्द्र चौहान की यही योग्यता इस पद के लिए उन्हें अयोग्य नहीं ठहराती। दरअसल गजेन्द्र चौहान की सबसे बड़ी योग्यता यहीं है कि वे केन्द्र और कई राज्यों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए हैं। जाहिर सी बात है कि सरकार ने उनकी इसी योग्यता को संस्थान के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के लिए सर्वथा उपयुक्त माना।
एफटीटीआई में अपनी विवादित नियुक्ति को लेकर मचे बवाल के बावजूद गजेन्द्र चौहान संस्थान के अध्यक्ष पद से हटने के लिए तैयार नहीं है। जब उनसे अनुपम खेर और ऋषिकपूर के इस सुझाव के बारे में पूछा गया कि गजेन्द्र चौहान को खुद ही इस पद से हट जाना चाहिए तो गजेन्द्र चौहान की गर्वोक्ति इस प्रकार थी- ‘अनुपम खेर और ऋषिकपूर हैं कौन? मैं एफटीटीआई के चेयरमेन पद से नहीं हटूंगा।Ó भाजपा के प्रति अपनी वैचारिक निष्ठा के कारण उपकृत हुए गजेन्द्र सिंह चौहान को पद छोडऩे की सलाह देने वाले की फेहरिस्त में अब तक महेश भट्ट, गोविन्द निहलानी, रणवीर कपूर, जवाजुद्दीन सद्धिकी, अमोल पालेकर तथा आड्र गोपाल कृष्णन जैसी शीर्षस्थ फिल्मी हस्तियां शामिल हो चकी है परन्तु न तो केन्द्र सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार हे और न ही गजेन्द्र चौहान खुद पद त्याग की पहल कर रहे है। इसलिए उस विवाद के जल्दी सुलझाने के आसार दिखाई नहीं देते। भाजपा के एक सांसद और फिल्म क्षेत्र से जुड़ाव रखने वाले शत्रुघ्र सिन्हा ने विवाद का हल निकालने के लिए मध्यस्थता करने की पहल की है परंतु ऐसा प्रतीत नहीं होता तो कि गजेन्द्र सिंह के पद त्याग के बिना इस विवाद का कोई हल निकल पाएगा। शिक्षा संस्कृति और कला से जुड़ी प्रतिनिधि संस्थाओं में वैचारिक निष्ठा के आधार पर की जाने वाली नियुक्तियों को लेकर उठने वाले विवादों को शांत करने के लिए सरकार को ही अपनी सोच बदलनी होगी अन्यथा ऐसे विवाद निरंतर जन्म लेते रहेंगे।