आस्था के बहाने रक्तपात

hn dixitहृदयनारायण दीक्षित।
रक्तरंजित धरती. आस्था के बहाने भयावह रक्तपात. तुर्की, काबुल, पठानकोट, पेशावर. सीरिया. अफगानिस्तान. विश्व के बड़े भाग में आस्था को लेकर या आस्था के बहाने रक्तपात है.  एक नए तरह का विश्वयुद्ध है. अंधायुद्ध.
आस्था और विश्वास के अपने सत्य हैं. उन्हें दूसरों पर थोपने या मनवाने के लिए बमबारी है. गोलियां हैं. व्यापक नरसंहार हैं. अंधविश्वासी शक्तिशाली है. मानवता प्रेमी असहाय हैं. आधुनिक वैज्ञानिक शोध ने विश्व के अनेक अंधविश्वासों को झुठलाया है. अस्तित्व गति और ऊर्जा का महायोग है. विज्ञान गति और ऊर्जा का अध्ययन है. विज्ञान पंख फैलाकर उड़ा है लेकिन हम अपने अंधविश्वासों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने-जांचने के अभ्यस्त नहीं हैं. काश, हम सब अपनी आस्था को भी विज्ञान और दर्शन से जांच सकते. तब दुनिया कितनी सुंदर होती. निस्संदेह आस्था का सम्मान जरूरी है. लेकिन आस्था से सतत् संवाद भी जरूरी है. आस्था को अंधविश्वास बनते देर नहीं लगती. आस्था रखते हुए प्रश्न और प्रतिप्रश्न करते रहना ही आधुनिकता है. ऐसे दृष्टिकोण से संसार को अंधविश्वासी कलह से बचाया जा सकता है.
पदार्थ विज्ञान संसार के ज्ञान का उपकरण है. आस्था के बोध का उपकरण आत्मानुभूति है. योग विज्ञानी पतंजलि ने स्मृति की सुंदर परिभाषा की है. योगसूत्र (समाधिपाद 11) में कहते हैं, अनुभूत विषया असम्प्रोष: स्मृति-दूसरे से प्राप्त या चुराए गए ज्ञान से भिन्न स्वयं अनुभव किए गए विषय का बोध स्मृति है. बड़ा वैज्ञानिक सूत्र है यह. सुनी-सुनाई, दूसरे की बताई जानकारी बेमतलब है. पतंजलि ने ऐसी जानकारी के लिए बड़ा कठोर शब्द प्रयोग किया है-असम्प्रोष. इसका सीधा अर्थ स्तेय या चोरी है. अंधविश्वासों में ऐसी ही मान्यताएं हैं. ईशआस्थालु दुनिया को ईश्वर की रचना मानते हैं. क्या ईश्वर अपनी ही रचना का संहार चाहेगा? सर्वशक्तिमान ईश्वर ऐसा काम मनुष्यों को क्यों सौंपेगा? परमपिता और दयालु ईश्वर रक्तपात का समर्थक कैसे होगा? धर्म, पंथ और मत का उद्देश्य समस्त प्राणिजगत को सुखमय बनाना है. मनुष्य जाति को मारकर क्या मिलेगा? शव, चीत्कार, हाहाकार और शोक के अलावा क्या उपलब्धि होगी?
विज्ञान और दर्शन से सीखने के अलावा और कोई मार्ग नहीं. सत्य का साक्षात्कार ज्ञान विज्ञान का उद्देश्य है. साक्षात्कार बड़ा प्यारा शब्द है. साक्षात् का अर्थ है-अक्ष या आंख के सामने. अक्ष का अर्थ इन्द्रियबोध भी है. विश्व परिवार के सामने अस्तित्व का संकट है. आस्था और विश्वास से बहस का समय आ गया है. प्रश्नकाल शुरू करने में विलम्ब नहीं किया जाना चाहिए. यजुव्रेद में प्रश्नों को देवता बताया गया है. प्रश्न पूछे जाने चाहिए कि निदरेषों के कत्लेआम से ईश्वर का क्या संबंध है? बिलीवर या विश्वासी होना ठीक है लेकिन ‘विलीवरÓ के साथ सीकर-खोजी होना आधुनिकता का ही गुण है. रक्तपात और हिंसा को ईश्वर के साथ जोडऩे वाले मानवता विरोधी हैं. विज्ञान की भी सीमा है. विज्ञान सत्य में शिव का स्थापन नहीं कर सकता. राइफल, बम या परमाणु बम बनाने वाले वैज्ञानिक सत्य उद्घाटित करने में सफल हुए हैं लेकिन उनके दुरुपयोग पर विज्ञान का कोई वश नहीं. हे विज्ञान देवी! अस्पष्ट तरंगों का यह आच्छादन हटाओ और हमें जीवन जगत् के मूल रहस्यों को दिखाओ.