उत्तराखंड के बाद अब अरुणाचल प्रदेश में भी कांग्रेस सरकार को बहाल करने का आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यही संदेश दिया है कि केंद्र सरकार चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, वह राज्यों के विधायी कार्यों में मनमाने तरीके से दखल नहीं दे सकती। केंद्र सरकार और राज्यपाल की तरफ से पेश की गई सारी दलीलों को खारिज करते हुए कोर्ट ने राज्य में 15 दिसंबर से पहले की स्थिति बहाल करने को कहा है।
कोर्ट ने गवर्नर ज्योति प्रसाद राजखोवा द्वारा विधानसभा सत्र एक महीने पहले बुलाने के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि गवर्नर का काम केंद्र सरकार के एजेंट की भूमिका निभाने का नहीं है। पिछले साल दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश में 21 कांग्रेस विधायकों ने बगावत कर बीजेपी से हाथ मिला लिया था। इस पर राज्यपाल राजखोवा ने विधानसभा अध्यक्ष को न सिर्फ सदन का सत्र तुरंत बुलाने को कहा, बल्कि उसकी कार्यसूची भी उन्हें भेज दी। विधानसभा अध्यक्ष ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में अनुचित हस्तक्षेप मानते हुए उनके आदेश को अदालत में चुनौती दी।
उधर कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं ने डेप्युटी स्पीकर की अध्यक्षता में असेंबली के बाहर एक सत्र आयोजित किया और उसमें सीएम के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया। इसी बीच केंद्र ने वहां राष्ट्रपति शासन लागू करने का फैसला कर लिया। प्रेजिडेंट रूल लगने के एक महीने के भीतर ही कांग्रेस के बागियों ने बीजेपी की मदद से सरकार बना ली। कलिखो पुल को सीएम बनाया गया। लेकिन कोर्ट ने इस पूरी कवायद को ही असंवैधानिक करार दे दिया है, जिससे पुल सरकार की वैधता समाप्त हो गई है।
विशेषज्ञों के मुताबिक कोर्ट के फैसले के बाद कलिखो पुल को पद छोडऩा होगा और कांग्रेस के नबाम तुकी फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। लेकिन तुकी को जल्द ही विधानसभा में अपना बहुमत साबित करना होगा, जो उनके लिए काफी मुश्किल है। बहरहाल, उनकी गद्दी बचे या नहीं, लेकिन अदालत के इस फैसले से केंद्र सरकार पूरी तरह एक्सपोज हो गई है। फेडरलिज्म के मुद्दे पर उत्तराखंड के बाद यह उसके लिए दूसरा बड़ा झटका है। बीजेपी जब से सत्ता में आई है, तभी से उसके वरिष्ठ नेता कांग्रेसमुक्त भारत बनाने का कीर्तन कर रहे हैं।
ऐसे जुमले राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ बोलती रहती हैं। लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के मैनेजर अगर गंभीरता से इसे अमल में उतारने के लिए हर सही-गलत रास्ता अपनाने पर तुल जाएं तो इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत ही माना जाएगा।
संवैधानिकता और राजनीतिक मर्यादा को ताक पर रखकर की जाने वाली इस कसरत के दौरान वे यह भूल ही गए हैं कि बीजेपी खुद हाल तक संघवाद का गुणगान करती रही है। दरअसल तानाशाही प्रवृत्तियों के खिलाफ लंबी लड़ाई के क्रम में ही हमारी व्यवस्था इस मुकाम पर पहुंची है कि राज्य सरकारों के साथ खिलवाड़ करना अब केंद्र सरकार की औकात से बाहर हो गया है। आशा है, बीजेपी के नेता उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में हासिल इस सबक को याद रखेंगे।