ब्रिटेन में नई पीएम: लचीलेपन की जरूरत

terese mayअसाधारण परिस्थितियों में टरीसा मे ने ब्रिटेन की प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाल लिया है। इस पद पर आने वाली वे दूसरी महिला हैं। उनसे पहले लौह महिला के रूप में चर्चित मारग्रेट थैचर देश का नेतृत्व कर चुकी हैं। लेकिन जिन हालात में टरीसा मे को देश की कमान मिली है, उनमें कामयाब साबित होने के लिए उन्हें सख्ती से ज्यादा लचीलेपन की जरूरत पड़ेगी।
दिलचस्प है कि कैबिनेट गठन के साथ ही उनकी आलोचना भी शुरू हो गई है। सबसे ज्यादा सवाल बोरिस जॉनसन को विदेश मंत्री बनाने को लेकर उठाए जा रहे हैं। जॉनसन ब्रेग्जिट के पक्ष में अभियान चलाने वाले नेता रहे हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित कई अन्य राष्ट्राध्यक्षों के खिलाफ दिए गए उनके बयान खासे चर्चित रहे हैं। ऐसे व्यक्ति को विदेश नीति का जिम्मा सौंपने पर सवाल उठने ही थे। टरीसा मे की पहली चुनौती देश के आम मतदाताओं का विश्वास हासिल करने की है।
गौर करने की बात है कि पिछले प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की ही तरह खुद टरीसा भी ब्रेग्जिट के खिलाफ थीं। ऐसे में अगर वह ब्रेग्जिट समर्थक खेमे के अग्रणी नेताओं को अपनी सरकार में अहम भूमिका नहीं देतीं तो इसे जनमत की अवहेलना समझा जाता। प्रधानमंत्री बनने के बाद दिए गए उनके बयानों में भी यह कोशिश साफ झलकती है। कंजर्वेटिव पार्टी की नेता होने के बावजूद उनकी बातों में आश्चर्यजनक जन पक्षधरता दिखाई पड़ रही है।
टरीसा ने लोगों से साफ-साफ कहा है कि बड़े फैसले लेते वक्त हम ताकतवर लोगों के बारे में नहीं आपके बारे में सोचेंगे, नये कानून भी उनका नहीं आपका ध्यान रखते हुए बनाएंगे, टैक्स की बात होगी तो हमारी प्राथमिकता आप होंगे, वे नहीं। इन बातों में कितनी सचाई है, इसका पता कुछ समय बाद ही चलेगा, लेकिन टरीसा मे के सामने अभी ईयू से अलगाव की प्रक्रिया को तार्किक परिणति तक ले जाने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाए रखने के अलावा देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखने का सवाल भी है। उनकी कामयाबी पर न सिर्फ यूरोपीय देशों की, बल्कि भारत समेत पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं। ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति में यह सूचना भी दिलासा देने वाली है कि टरीसा मे के शुरुआती कदमों में कोई हड़बड़ी नहीं है और उनकी दिशा सही है।