नई दिल्ली। जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने राज्यसभा में कहा कि सरकार प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कड़े से कड़ा कानून लाने पर विचार कर रही है। गंगा नदी में प्रदूषण का मुख्य स्रोत औद्योगिक और सीवेज का कचरा ही है। राज्यसभा में सोमवार को अनुपूरक प्रश्नों का उत्तर देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार प्रदूषण करने वाले उद्योगों के खिलाफ कानून बनाने के प्रस्ताव पर राज्यों से विचार-विमर्श कर रही है।
उन्होंने बताया कि गंगा में सीवेज और औद्योगिक कचरा सीधे-सीधे डाल दिया जाता है। यह समस्या पूरे विश्व में चिंता का विषय है। लेकिन प्रदूषण करने वाला एक भी व्यक्ति आज तक कोई जेल नहीं गया है। गंगा को प्रदूषित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर हम प्रतिबद्ध हैं। गंगा नदी के किनारे 764 उद्योग स्थापित हैं। यह नदी को प्रदूषित करने के लिए जिम्मेदार हैं। उमा भारती ने कहा कि नदी में पूजा सामग्री बहाने से अधिक प्रदूषण नहीं होता है। ये वस्तुएं प्रदूषण तभी बढ़ाती हैं जब पहले से ही प्रदूषण के कारण नदी का प्रवाह रुक जाता है।
उमा भारती ने बताया कि सरकार इस दिशा में एक सर्वे करा रही है। इसके तहत पूजा सामग्री को नदी में बहाने की समस्या पर अध्ययन किया जाएगा। फिर इस मुद्दे को नदी से जुड़ी आजीविका वाले लोगों से जोड़ा जाएगा। सर्वे के नतीजे आने के बाद जल्द ही इस परियोजना को अमल में लाया जाएगा। जब उनसे पूछा गया कि पिछले शासनकालों में नदी पर बने बांधों के कारण भी क्या नदी का प्रवाह रुकता है, उन्होंने कहा कि इस संबंध में अंग्रेजों और मदन मोहन मालवीय के बीच एक संधि हुई थी।
उस संधि में यह सुनिश्चित करने को कहा गया था कि बांध से नदी का प्रवाह नहीं रुकेगा। सरकार इस संधि के प्रति प्रतिबद्ध है और गंगा को स्वच्छ कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि पतित पावन गंगा असल में मैली हो चुकी है। उसके जल में रसायन घुले हुए हैं। सरकार इसे साफ करने में जुटी हुई है। 20 हजार करोड़ के नमामि गंगे प्रोजेक्ट के पहले चरण में इसी साल और दूसरे चरण में अक्टूबर 2018 तक गंगा को साफ कर लिया जाएगा।