मनोज चतुर्वेदी।
फ्रीस्टाइल कुश्ती में 74 किग्रावर्ग के पहलवान नरसिंह को पांच अगस्त से रियो में शुरू होने वाले ओलंपिक खेलों में पदक जीतने का दावेदार माना जा रहा था. इस पहलवान के ए और बी दोनों नमूने पॉजिटिव आने पर उसका रियो ओलंपिक में नहीं जाना लगभग पक्का हो गया है. वैसे तो नरसिंह की जगह 74 किग्रावर्ग में किसी और पहलवान के जाने की संभावना न के बराबर है क्योंकि प्रविष्टि भेजने की आखिरी तारीख 18 जुलाई निकल चुकी है.
वैसे तो किसी खिलाड़ी के चोटिल हो जाने पर उसका विकल्प भेजने का प्रावधान है. लेकिन इस बारे में तमाम कयास लगाए जा रहे हैं और यह भी बताया जा रहा है कि यूनाइटेड कुश्ती फेडरेशन ने कहा है कि नरसिंह निलंबित भी हो जाते हैं तो भारत द्वारा हासिल कोटा बरकरार रहेगा. इसका सीधा सा मतलब है कि उनके स्थान किसी अन्य पहलवान को भेजा जा सकता है.
नरसिंह यादव और फिर कुश्ती फेडरेशन ने इसके पीछे किसी साजिश के काम करने का आरोप लगाया है. इस तरह का आरोप लगाना गंभीर मामला है, इसलिए वास्तव में कोई साजिश की गई है तो उसका पर्दाफाश होना जरूरी है. साजिश की बात कहे जाने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि नरसिंह का लगभग एक दशक लंबा अंतरराष्ट्रीय कॅरियर एकदम से साफ-सुथरा रहा है और उन्होंने कभी डोप टेस्ट कराने में कोताही नहीं बरती है.
नरसिंह ठीक ओलंपिक से पहले ‘मेटाडायनोनÓ नामक एनाबोलिक स्टेरायड तो कतई नहीं लेते क्योंकि वह यह तो अच्छे से जानते हैं कि इसका असर एकाएक नहीं जाने वाला है और ऐसा करने पर वह रियो में पकड़े ही जाते. यह सही है कि ‘मेटाडायनोनÓ का खेलों में 1960 के आस-पास से चलन बना हुआ है. इसका सेवन आमतौर पर मसल्स बनाने के लिए खिलाड़ी इस्तेमाल करते रहे हैं. कुश्ती में मसल्स बनाने की कोई अहमियत नहीं है, इसलिए यह माना जा रहा है कि नरसिंह यह सब क्यों करेंगे? यह सभी जानते हैं कि कितने विवादों के बाद नरसिंह का रियो जाना तय हुआ है.
इस शिविर में ग्रीको रोमन पहलवान संदीप तुलसी यादव नरसिंह के रूम पार्टनर हैं और यह दोनों ही खाना साथ खाते हैं और वह भी नरसिंह के साथ डोप टेस्ट में असफल हो गए हैं. संदीप को रियो भी नहीं जाना है तो वह प्रतिबंधित दवा का क्यों सेवन करेंगे? इससे लगता है कि अगर साजिश की गई तो रूम को आधार बनाकर की गई. वैसे भी सोनीपत के साई सेंटर में कॉमन कैंटीन है और सभी पहलवान उसका ही खाना खाते हैं. कैंटीन के खाने में कोई गड़बड़ होती तो शिविर में शामिल सभी पहलवान इसकी चपेट में आ जाते.
भारतीय कुश्ती फेडरेशन को भी इस मामले में साजिश का अंदेशा है. फेडरेशन के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिंह को लगता है कि किसी ने सुनियोजित ढंग से इस प्रतिबंधित पदार्थ को उनके खाने में मिला दिया. फेडरेशन कहती है कि उन्हें इस मामले में जांच का अधिकार नहीं है, पर इस मामले में जांच होने से सारा सच सामने आ सकता है. नाडा इस मामले में जांच पूरी होने पर ही अंतिम फैसला करेगी. यह भी कहा जा रहा है कि आस्त होने के लिए फिर से टेस्ट किया जा सकता है. अगर पहले सेंपल में छेड़छाड़ हुई है तो इस री-टेस्ट से नरसिंह की स्थिति में बदलाव हो सकता है. इस स्थिति में ही नरसिंह रियो जा सकते हैं, जिसकी संभावना बहुत कम है. नरसिंह के डोप टेस्ट में असफल होने पर ज्यादातर लोगों ने अफसोस जताया है पर कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके बयानों से लगता है कि उन्हें इस घटना पर कोई अफसोस नहीं है.
एक पूर्व पहलवान ने तो नरसिंह को यह सीख भी दे दी कि वह बड़े पहलवान हैं और उन्हें खुद ही सतर्क रहना चाहिए था. पर यहां कैंप चल रहा हो और वहीं की कैंटीन के खाने में मिलावट कर दी जाए तो सतर्कता रखकर भी कैसे बचा जा सकता है, यह समझ से परे है. यह सही है कि नरसिंह अब रियो में भाग लेने नहीं जा सकेंगे और हो सकता है कि उनके स्थान पर सुशील या कोई अन्य पहलवान रियो चला जाए. पर यह मामला ‘घर का भेदी लंका ढायेÓ जैसा लगता है, इसलिए जांच करके इसकी तह तक जाना जरूरी है. भारत सरकार यदि अन्य संगठनों के साथ मिलकर इस मामले का खुलासा नहीं कर सकी तो भविष्य में खिलाडिय़ों का सभी से विश्वास हट जाएगा. शिविर में भी वह खुद की भोजन व्यवस्था करने लगेंगे. यह स्थिति खेल के लिए कतई उचित नहीं होगी क्योंकि बिना भरोसे के कोई सफलता पाना संभव नहीं होगा.