मुल्क को अराजक बना रहा राजनीति का अपराधीकरण

criminal-indian-politiciansविमल शंकर झा।
हाब्स ने कहा ने कहा था कि राज्य में प्रजा की खुशहाली के लिए राजा का नीति और नैतिक दृष्टि से मजबूत होना जरुरी है। यही बात कौटिल्य ने भी कही कि चंद्रगुप्त तुम कोई ऐसा काम न करना जिससे राज्य, राजा और प्रजा का मनोबल गिरे । सदियों बाद आज इस मामले में देश का राजनीतिक परिदृश्य कैसा है, यह दुनिया में जगजाहिर है। यदि किसी मुल्क के राजनीतिकों का सबसे ज्यादा नैतिक पतन हुआ है तो दुर्भागय से वह हमारा ही देश है। सियासी कौम के अधोपतन का यह आलम कि पहले राजनीति का अपराधीकरण होता था अब स्थिति यह हो गई कि अपराध का राजनीतिकरण हो रहा है। सियासी दल संगठित अपराधिक गिरोह और सरकारें ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह किसी मल्टीनेशनल कंपनी की तरह काम कर रही हैं । यही वजह है कि अपराध और भ्रष्टाचार के चलते मुल्क में अराजकता, गरीबी साथ कई तरह की समस्याओं से देश की छवि भी खराब हो रही है। राज्यों के 34 और केंद्र के 31 प्रतिशत मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। यह रिपोर्ट 29 राज्य विधानसभाओं और 2 संघ शासित प्रदेशों के 620 में से 609 मंत्रियों और केंद्रीय मंत्री परिषद के 78 मंत्रियों द्वारा घोषित विवरणों के विश्लेषण पर आधारित है। दिल्ली की अनुसंधान संस्था एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफाम्र्स एडीआर की रपट के मुताबिक 609 मंत्रियों में से 210 मंत्रियों ने जानकारी दी है कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। केंद्रीय मंत्रीपरिषद के 78 मंत्रियों में से 24 (31 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने का खुलासा किया है। राज्य सरकारों के 113 मंत्रियों के खिलाफ तो संगीन मामले यानी हत्या, हत्या के प्रयास अपहरण और महिलाओं के प्रति हिंसा समेत कई जुर्म दर्ज हैं। इसी तरह 76 फीसदी मंत्री करोड़पति हैं। उनकी औसत संपत्ति 8.59 करोड़ रुपए है। आप अंदाज लगा सकते हैं कि स्थिति कितनी चिंताजनक और भयावह हो चली है। जिनके हाथों में सरकार और कानून बनाने और इनके संचालन का अधिकार है, मुल्क और अवाम की बेहतरी का जिम्मा है यदि वही लोग अपराध के दलदल में धंसे हैं तो हर डाल पर उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा वाली बात है। कितनी बड़ी विडंबना है कि इस देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को कोल भ्रष्टाचार के मामले में जांच एजेंसी ने तलब किया। चैन्नै जब जल प्लावित था, उस समय वाट्सएप पर दो मैसेज बहुत चर्चित हुए थे । चैन्नै आए भारतीय मूल के अमरीका से आए एक उद्योगपति ने मैसेज किया था मेरे पास अरबों की दौलत है मगर वह किसी काम कि नहीं है क्योंकि मेरा पांच मजिला मकान डूब चुका है और में टैरेस पर बेबस खड़ा हूं। दूसरा मैसेज 2 महीने तक भारत विजिट करने के बाद इंगलैंड के किसी पर्यटक का था जिसने कहा कि मैंने पाया कि भारत की व्यवस्था को कोई भगवान ही चला रहा है। निश्चित तौर पर जिस मुल्क के रहनुमाओं की इतनी बड़ी तादाद अपराध के दलदल में धंसी हो वहां रामराज और गांधीराज की कल्पना तो दूर आम राज के बारे में सोचना भी बेमानी होगा । 1990 के बाद से अर्थव्यवस्था में आए बदलाव के बाद से अपराध का राजनीतिकरण में जो तेजी आई उसने पूरी व्यवस्था स्पीड से निकलना शुरु कर दिया । शुरुआत तो इंदिरा गांधी के दूसरे कार्यकाल के बाद से ही हो गई थी जो इसके बाद फिर मनमोहन के दस वर्षीय कार्यकाल के अंत तक बजबजाने लगी । बचीखुची कसर मोदी काल के दो सालों में पूरी हो गई । वसंधुरा सुषमा के ललित गेट और विजय माल्या कांड इसके ताजातरीन शर्मनाक उदाहरण हैं। यही हाल राज्यों की सरकारों के सियासतदानों का है। विडंबना देखिये कि हत्या, बलात्कार डकैती, बलवा जैसे गंभीर मामलों में संलिप्त हमारे यह रहनुमा विधानसभाओं,लोकसभा, स्कूल कालेज, विश्वविद्यालय, और सरकारी व गैर सरकारी मंचों पर हमारे बच्चों और जनता को नैतिकता की नसीहत देते हैं । यह तो वैसी ही बात हुई जैसे कोई मंदू कहे कि मदिरा पीना बुरी बात है। या फिर कोई बंाझ स्त्री दर्जनभर बच्चे पैदा करने का दावा करे । नैतिक दृष्टि से पतित यह पथभ्रष्ट सियासी कौम देश को क्या राह दिखाएगी । नरेंद्र मोदी चुनाव के दौरान भाषण देते थे कि वे देश की चौकीदारी करेंगे। यदि वे कहते हैं कि न खाऊंगा और न खाने दूंगा तो फिर ललित मोदी और विजय माल्या कैसे भाग गए ? और वसुंधरा व सुषमा की संलिप्तता के मामले में चुप्पी क्यों साधे रहे ? मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जहां भाजपा की सरकारें हैं 13 सालों से क्या हो रहा है? व्यापम, नान घोटाले में कौन संल्पित हैं? 13 सालों में विधायक मंत्री सैकड़ों एकड़ जमीन, बैंक बैलेंस, निवेश, आदि करोड़ों की संपत्ति के मालिक कैसे हो गए। जो काम कांग्रेस ने साठ सालों में किया उसी राह में तेजी से भाजपा आगे क्यों बढ़ रही है, तो फिर दोनों में क्या फर्क हुआ। आज भाजपा और कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टियां हैं , सबसे अधिक समय तक शासन भी इन्हीं दलों का रहा । और सबसे ज्यादा अपराधी इन्हीं दलों के नेता हैं। कांंग्रेस गांधी के उसूलों की बात करती है मगर उसका आचरण हर मामले में उलटा रहा है। इसी तरह भाजपा दीनदयाल और श्यामाप्रसाद की दुहाई देती है मगर वह भी जमीन में इसके बिल्कुल उलट है। बात कांग्रेस भाजपा की नहीं सपा, राजद, एडीएमके, डीएमके,टीएमसी, आप पार्टी से लेकर सारे राजनीतिक दलों के नुमाइंदों की है जो नैतिक यानी चारित्रिक दृष्टि से बेहद कमजोर क्या सीधे सीधे अपराधी हैं। कहा जाता है कि दो सौ सालों में अंग्रेजों ने इस देश का जितना नहीं लूटा उससे अधिक इस मुल्क के काले अंग्रेजों ने 70 साल में इस मुल्क को लूटा है। विदेशों और भारत में जमा इनका काला धन इस बात का सबूत है। भगत सिंह ने कहा था कि गोरों से कालों के हाथ में सत्ता हस्तांतरित हो जाने से व्यवस्था नहीं बदल जाएगी। गांधी भी ऐसी ही राय रखते थे। लोकतांत्रिक देश में चुनाव के तरीके और इसके लिए काले फंड की वजह ही भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण के लिए जिम्मेदार है। वोट बैंक और सत्ता हथियाने के लिए दल और नेता जिनसे चंदा लेते हैं और अपराधिक तत्वों को वोट खंगालने के लिए अपने साथ रख कर भयादोहन करवाते जीतने के बाद उन्हें पूरे 5 साल ओबलाईज करते हैं। यह गलीच खेल पूरे देश में चल रहा है। हर दल का चाल,चरित्र और चेहरा आजादी के 70 सालों में इतना कलुषित हो गया है कि इनसे उजाले की उम्मीद करना खुद को मुगालते में रखना है। पहले पुलिस को वर्दीधारी गुंडा कहा करते थे। जज तारकुंडे ने तो उसे वर्दीधारी गिरोह कहा था। मगर ए राजा, कनिमोझी,
जयललिता,मुरासोली दयानिधि मारन, लालू,मुलायम,रेड्डी बंधु जैसे भ्रष्टाचार शिरोमणी हर पार्टी और शहर और कस्बे की पहचान बन गए हैं। राष्ट्रवाद और संस्कृति का उपदेश देने वाली भाजपा के अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण तो लोकतंत्र के मंदिर में कैसे नोटों के बंडल के साथ धरे गए गए जिन्हें पूरी दुनिया ने देखा। और इसी पार्टी के भ्रष्टाचार में लिप्त युवराज दिलीप सिंह जूदेव ने क्या कहा था याद है न.. पैसा खुदा तो नहीं मगर खुदा से भी कम नहीं है। यह वाक्य उन्हीं के लिए नहीं बिल्क पिछली आधी सदी से हर दल के नेता के लिए आदर्श वाक्य बना हुआ है। थाने अदालतों और आयोगों के रिकार्ड को देखा जाए तो इस दौरान यह याद आएगा की पूरा का पूरा चंबल लोकतंत्र के मंदिरों में समाया हुआ था। निरीह जनता उनके आतंक के साए में दबी हुई है। क्या देश की आजादी के लिए हमारे देशभक्त हंसते हंसते फंासी पर इसी लिए झूले गए थे कि यह सियासतमंद विदेशियों की तरह अपने ही देश को लूटने और अराजक बनाने में अपनी मर्दानगी दिखाएंगे। कब तक जनता इनकी लूट और आतंक के चलते गरीबी और परेशानी में गुजर बसर करती रहेगी। क्या सात पुश्तों के लिए जमा यह सब वे अपने साथ बटोरकर मुक्तिधाम ले जाएंगे? यह कितनी दुर्भागयजनक बात है कि हमारे देश और शहर में जननायकों की बात तो दूर ऐसे नेता नहीं है जिन्हें ईमानदार या चरित्रवान कहा जाए। जब तक चुनाव प्रणाली से लेकर जनप्रतिधि कानून मेें सकारात्म परिवर्तन नहीं होगा राजनीति के अपराधीकरण का यह सिलसिला यूं ही परवान चढ़ता रहेगा। सियासतमंदों के रसूख और रशद को रोके बिना मुल्क को इन काले अंग्रेजों से दूसरी आजादी नहीं मिलेगी। सख्त कानून में तब्दीली के साथ जनता का चैतन्य होना और ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार जरुरी है जो किसी भी तरह की आपराधिक गतिविधियों मेंं संलप्ति हैं या अपराधियों को परोक्ष तौर पर संरक्षण दे रहे हैं। संविधानिक और लोकतांत्रिक संस्थाओं से इनको दूर रखना जरुरी है। क्योंकि सीबीआई और कोर्ट तक सरकार का दबतबा कांग्रेस काल से ही बना रहा है जो अब अपने चरम पर है। पार्टियों को चाहिए कि वे ऐसी लोगों को टिकट दें जो साफ छवि के हों और दागी न हों। यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब एक भी भला व्यक्ति सियासत में नहीं जाएगा।