बोले रविशंकर प्रसाद: न्यायाधीशों की निुयुक्ति में आरक्षण नहीं

ravi-shankar-prasad_नई दिल्ली। विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मंगलवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के पद संवैधानिक है, इसलिए इनमें आरक्षण का प्रावधान नहीं है, लेकिन सरकार समय-समय पर समाज के पिछड़े वर्गों को नियुक्ति में प्राथमिकता देने का सुझाव देती रही है। उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में गतिरोध से पैदा हुई स्थिति के बारे में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर राज्यसभा में मंत्री के वक्तव्य पर चर्चा के दौरान सदस्यों ने शीर्ष न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में आरक्षण की मांग की थी। इस पर प्रसाद ने जवाब देते हुए कहा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग), लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और चुनाव आयुक्त जैसे कई पद संवैधानिक हैं और उसी तरह से सुप्रीम कोर्ट एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के पद भी संवैधानिक हैं। इनमें से किसी में भी आरक्षण का प्रावधान नहीं है।
उन्होंने कहा कि हालांकि जुलाई 2014 में कार्यभार ग्रहण करने के तत्काल बाद उन्होंने विधि मंत्री की हैसियत से सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखकर योग्य महिलाओं, दलितों, आदिवासी, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय के योग्य लोगों को न्यायाधीशों की नियुक्ति में प्राथमिकता देने का सुझाव दिया था। बाद में सदानंद गौड़ा ने भी विधि मंत्री की हैसियत से इस तरह के पत्र लिखे थे।
उन्होंने कहा कि न्यायधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के साथ ही न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हुए नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आम लोगों से सुझाव मंगाए हैं। अब तक तीन हजार टिप्पणियां मिल चुकी हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली का उल्लेख संविधान में नहीं है और यह न्यायाधीशों द्वारा बनाई गई प्रक्रिया है।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम 2014 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा खारिज किए जाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस पीठ ने विधि मंत्री और समाज के दो विशिष्ट लोगों के आयोग में होने पर सवाल उठाते हुए इसे रद्द कर दिया था। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की तरह इस पर भी संसद में सर्वसम्मत राय बनाते हुए फिर से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक पेश किए जाने की सदस्यों की मांग पर उन्होंने कहा कि जीएसटी पर आम राय बनाने में डेढ़ वर्ष लगे हैं और समय आने पर इस पर भी आम राय बनाने की कोशिश की जा सकती है।