चिंतन : निश्चित रूप से नाम की महत्ता है

hn dixitहृदयनारायण दीक्षित।
ऋग्वेद के ज्ञान सूक्त में कहा गया है कि प्रकृति के रूपों को नाम देने से ही ज्ञान की शुरुआत हुई. नाम महत्त्वपूर्ण नहीं है. देखने में रूप की महत्ता है और समझने में रूप विशेष के गुण की. कई बार दृश्यमान रूपों की तुलना में अवधारणा से जुड़े नाम ज्यादा प्रभावित करते हैं. अवधारणा एक दो दिन में नहीं बनती. यूरोपीय विचार का राष्ट्र या नेशन भूमि, जन और संप्रभु राज व्यवस्था का जोड़ है. यहां तीनों घटकों के रूप अलग-अलग हैं. भूमि, जन और राज व्यवस्था अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं. तीनों से मिलकर बना राष्ट्र-नेशन प्रत्यक्ष नहीं दिखाई पड़ता, लेकिन उसका अस्तित्व होता है. भारतीय विचार का राष्ट्र भूमि, जन और संस्कृति की एकात्म धारणा है. भारत ऐसा ही नाम है. ऋग्वेद से लेकर संपूर्ण प्राचीन वांग्मय व आधुनिक राजनीति तक ‘भारतÓ नाम की महत्ता है. इस देश के जनगणमन में भारत का प्रवाह है. भारत नाम का सम्बंध प्राचीन दर्शन से है, प्राचीन काव्य और साहित्य से भी है. भारत के मन में रचे-बसे पौराणिक आख्यानों से भी है. नाम का अंग्रेजी अनुवाद नहीं होता लेकिन भारत नाम का अंग्रेजी अनुवाद ‘इण्डियाÓ चलन में है.
भारत की संविधान सभा में देश के नामकरण पर बहस चली थी. हरिविष्णु कामथ ने अंग्रेजी अनुवाद सहित भारत या अंग्रेजी भाषा में इण्डिया नामकरण का संशोधन पेश किया. कामथ ने कहा कि भारत पसंद न हो तो विकल्प में हिंदी या अंग्रेजी भाषा में इण्डिया रख दिया जाए. उन्होंने भारत, हिन्दुस्तान, हिन्द, भरतभूमि, भारतवर्ष आदि नामों के सुझाव देते हुए दुष्यंत पुत्र भरत की कथा से भारत का उल्लेख किया. इण्डिया दैट इज भारत का प्रस्ताव था.
सेठ गोबिंद दास ने कहा, इण्डिया दैट इज भारत यह नाम रखने का बहुत सुंदर तरीका नहीं है. सेठ ने ‘इण्डियाÓ नाम को यूनानी प्रदाय बताया और भारत को महाभारत से जोड़ते हुए अथते कीर्ति पष्यामि, वर्ष भारत भारतं सुनाकर भारत पर जोर दिया. मद्रास के केएस सुब्बाराव ने ‘भारतÓ को प्राचीन नाम बताकर अपना पक्ष रखा और कहा भरत नाम ऋग्वेद में है. दुर्भाग्यपूर्ण है इस बहस का इतिहास. पं. कमलापति त्रिपाठी ने कहा था, अध्यक्ष महोदय, इंडिया दैट इज भारत के स्थान पर ‘भारत दैट इज इण्डियाÓ लगाया जाता तो वह अधिक उपयुक्त होता.
पश्चिम बंगाल की सरकार ने राज्य का नाम बदलने का प्रस्ताव किया है. यह भूमि राष्ट्रवाद के प्रसार में अग्रणी रही है. ‘पश्चिम बंगालÓ नाम में पश्चिम विश्लेषण तर्क संगत नहीं है. यह राज्य भारत के पश्चिम छोर पर है ही नहीं. पूरब में है. अविभाजित बंगाल को पूरबी बंगाल कहा जाता था. विभाजन के बाद पूरब का भाग पूर्वी पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश हो गया. इसका पश्चिमी भाग पश्चिम बंगाल हो गया. इसलिए इस सरकारी प्रस्ताव का औचित्य है.
लेकिन प्रस्ताव में अंग्रेजी में इसे ‘बंगालÓ कहने की बात है और बांग्ला भाषा में बांग्ला या बंग. आखिरकार बांग्ला या बंग को अंग्रेजी में अलग से कहने की जरूरत क्या है? हम राज्य का नामकरण करने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन अंग्रेजी में दूसरा नाम रखने की विवशता क्या है? नाम के अंग्रेजी अनुवाद की परंपरा उचित नहीं. भारत को अंग्रेजी सहित सभी भाषाओं में ‘भारतÓ ही लिखना बोलना चाहिए. ऐसे ही सभी राज्यों के नामों को भी. बंगाल चर्चा में है. भारत पर भी चर्चा होती रहनी चाहिए.