स्मारक घोटाले की जांच की आंच में तपेगी बसपा

bspविशेष संवाददाता, लखनऊ। उप्र में मायावती के शासनकाल के दौरान नोएडा और लखनऊ में बने स्मारकों में हुए 1400 करोड़ के घोटाले की जिन्न बाहर आ गया है। विधानसभा चुनाव के करीब घोटाले की पर्ते उजागार होने से बसपा में बेचैनी है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि मामले में एफआईआर दर्ज कर पूरे मामले की जांच जारी है, विशेषज्ञों की राय ली जा चुकी है। अभी तक 170 गवाहों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं। मामले से जुड़े अधिकतर दस्तावेज प्राप्त हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश सरकार से पूछा था कि मायावती सरकार के दौरान 2007 से 2011 के दौरान मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में पाये गए भ्रष्टाचार के आरोपों पर अभी तक क्या-क्या कदम उठाए गए हैं।
याद रहे कि स्मारक घोटाले में लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट दो साल पहले आ गई थी। जिसमें तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने जांच के बाद घोटाले में आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा ईओडब्ल्यूद्ध वित्त विशेषज्ञों के विश्लेषण के आधार पर स्मारकों पर खर्च 4200 करोड़ की 30 प्रतिशत से अधिक रकम के दुरुपयोग का निष्कर्ष निकाला था। इसके साथ ही पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन सिद्दकी समेत करीब 200 लोगों को प्रथम दृष्टया दोषी पाया था। अपनी रिपोर्ट में लोकायुक्त ने आरोपियों से घोटाले की रकम वूसल करने की भी सिफारिश की थी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लोकायुक्त को बसपा सरकार के कार्यकाल में बनाए गए स्मारकों और पार्कों के मामले की जांच सौंपी थी। लखनऊ और नोएडा में हुए निर्माणों पर 2007 से 2012 के पांच वर्षो के बीच करीब 4200 करोड़ रुपये खर्च किये गए थे।
लोकायुक्त की रिपोर्ट के बाद उप्र सरकार ने मायावती सरकार के दो मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबूसिंह कुशवाहा समेत 19 लोगों के खिलाफ लखनऊ के गोमती नगर थाने में एफआईआर दर्ज करायी गई थी। उप्र सरकार ने इस बात की जानकारी अपने अधिवक्ता रवि पी मेहरोत्रा के जरिये सुप्रीम कोर्ट को दी है।
कांग्रेस के संवाद विभाग के उपाध्यक्ष वीरेंद्र मदान ने कहा कि उप्र के मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार से बुआ-भतीजे का रिश्ता जोड़ रखा है। स्मारकों की जांच को पारदर्शी तरीके से होनी चाहिए। उन्हे जनता को भी बताना चाहिए कि भ्रष्टाचार की जांच कहां पहुंची है। रोचक यह है कि लोकायुक्त की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के आरोपी बाबू सिंह कुशवाहा का परिवार समाजावादी पार्टी में है।

क्या है मामला
मायावती सरकार ने 2007 से 2012 के दौरान उप्र की राजधानी लखनऊ व दिल्ली से सटे नोएडा में अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, कांशीराम स्मारक स्थल, गौतम बुद्ध उपवन, इको पार्क और अंबेडकर पार्क का निर्माण किया। इन पार्को व स्मारकों में गुलाबी पत्थरों का प्रयोग किया गया। विपक्षी दलों ने स्मारकों पर होने वाले खर्च व पर्यावरण को होने वाले नुकसान को मुद्दा बनाया था। मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। लखनऊ में अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल को इसी नाम से बने पूर्व के स्मारक व सटे हुए स्टेडियम को तोड़ कर बनाया गया। कांसी राम स्मारक से सटे ईको पार्क को बनाने के लिए तीन जेलों को रातों-रात ध्वस्त कर बनाया गया। मायावती सरकार ने लखनऊ और नोएडा में दलित महापुरुषों के नाम पर पांच स्मारक पार्क बनाने के लिए लगभग 4,300 करोड़ रुपये स्वीकृत किये थे।
कैसे हुआ था भ्रष्टाचार
लोकायुक्त की रिपोर्ट में बताया गया था कि निर्माण कार्य में इस्तेमाल किए गए गुलाबी पत्थरों की सप्लाई पूर्वी उप्र के मिर्जापुर से की गई। इनकी आपूर्ति राजस्थान से दिखाकर ढुलाई के नाम पर ज्यादा भुगतान लिया गया। पत्थरों को तराशने के लिए लखनऊ में मशीनें मंगाई गईं इसके बावजूद इन पत्थरों के तराशने में हुए खर्च में कोई कमी नहीं आई बल्कि भुगतान तय रकम से दस गुने दाम पर ही किया जाता रहा। जांच रिपोर्ट में पार्कों और स्मारकों के निर्माण में शामिल एजेंसियों द्वारा कई तरह के मानकों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन का भी उल्लेख है।