कल होगी भारत और अमेरिका के बीच सैन्य समझौते पर अहम वार्ता

Obama-Modi-Meet (1)नई दिल्ली (आरएनएस)। भारत और अमेरिका एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों के उपयोग को लेकर सामरिक आदान-प्रदान समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने के लिए सक्रिय हो गए हैं। इस लिहाज से रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर सोमवार को अमेरिका में होंगे। अगले हफ्ते ही अमेरिकी विदेश मंत्री और वाणिज्य मंत्री के नेतृत्व में एक बड़ा प्रतिनिधि मंडल भारत भी आने वाला है। सोमवार को पर्रिकर अमेरिका के रक्षा मंत्री एस्टन कार्टर के साथ अपनी छठी मुलाकात कर रहे होंगे। दोनों देशों की सरकार सामरिक आदान-प्रदान समझौते को जल्द अंतिम रूप देने के लिए सक्रिय है। माना जा रहा है कि पर्रीकर का यह दौरा इस समझौते की अंतिम शर्ते तय करने में अहम भूमिका निभाएगा। हालांकि इस दौरे के दौरान इसका एलान नहीं किया जाएगा। भारत को अमेरिका का अहम रक्षा सहयोगी घोषित करने के बाद यह पर्रीकर का पहला अमेरिका दौरा है। इस दौरान उन्हें अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की विशेष दर्जे की मेहमाननवाजी हासिल होगी। उनके आगमन पर पेंटागन में एक विशेष समारोह होगा जिसके बाद वह वहां स्थित 11 सितंबर के स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित करने भी जाएंगे। इसके बाद दोनों रक्षा मंत्रियों के बीच बातचीत होगी और उसके बाद साझा प्रेस कांफ्रेंस होगी। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने इस दौरे को लेकर काफी उत्साह दिखाते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले दौरे के दौरान दोनों देश यह एलान करने में सफल हुए थे कि दोनों सामरिक आदान-प्रदान समझौते पर सहमत हो गए हैं। अब अमेरिका ने इस पर जल्द दस्तखत हो सकने की उम्मीद जताई है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा का प्रशासन चाहता है कि भारत के साथ इस समझौते की जो प्रक्रिया इस सरकार के कार्यकाल के दौरान शुरू हुई है, उसे जल्द पूरा कर लिया जाए। अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन कैरी और वाणिज्य मंत्री पेनी प्रिजकर भी अगले हफ्ते भारत दौरे पर आ रहे हैं। इस दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल की विस्तृत चर्चा होगी। अमेरिका जहां सामरिक आदान-प्रदान समझौते पर बहुत दिलचस्पी ले रहा है, वहीं भारत उच्च स्तरीय तकनीकी कारोबार का लाभ लेना चाहता है। अब दोनों देशों के बीच सामरिक और व्यावसायिक संबंधों को मजबूत करने के लिए स्थायी प्रक्रिया कायम हो चुकी है। ये बातचीत उसी प्रक्रिया का हिस्सा है।