चुनावी आहट में आत्माएं

ElectionCommissionOfIndia-logoसुरजीत सिंह।
चुनाव आते हैं तो वोटर, वोटिंग के दिन तक नहीं जागता, लेकिन आत्माओं में चुनाव की आहट पाते ही भगदड़ मच जाती है। यूपी में चुनाव सन्निकट हैं। सेफ नेताई तन में कहीं पांच साल से शीत निद्रा में लेटी आत्माएं जाग रही हैं और शरीर (पार्टी) बदलने को कटिबद्ध हैं। बड़ी धमक है।
ऐसे वक्त आत्माएं दार्शनिक टाइप हो जाती हैं। असल चीज आत्मा है। आत्मा परिवर्तनशील है, गतिशील है। शरीर तो निमित्त मात्र है। आत्मा तो एक दिन परमात्मा से मिलेगी। चुनाव के वक्त परमात्मा किसी दूसरी पार्टी में मिलेगा। उसमें तिरोहित हो जाने की तीव्र उत्कंठा है। रुदालियों की तरह सिर धुन रही हैं। हाय-हाय! वे अब तक जिन पार्टी रूपी शरीरों में पड़ी थीं, वे शरीर अब अनुपयोगी और सेवा रहित हैं। इन्हें ढोते-ढोते उन्हें देश सेवा का मौका नहीं मिल पा रहा। ऐसे चुके शरीरों में कुछ करने को आमादा हम जुनूनी आत्माएं हरगिज नहीं ठहर सकतीं! हमारा दिल गरीब, समाज, देश के लिए तेजी से धड़क रहा है। अगर हमारी सेवा की इज्जत अफजाई नहीं हुई, तो एक आत्मा को बतौर आत्मा यह स्थिति हरगिज स्वीकार नहीं।
आत्माएं कल तक मगरमच्छ की तरह निष्प्राण लेटी थीं, विचलित कर देने वाले दृश्यों पर भी जिनकी नजरें हिलती-डुलती न थीं, आसमानी हो-हुल्लड़ से जिनकी कुंभकर्णी तंद्रा टूटती न थी, नेता में ढूंढते थे, तो वे आत्माविहीन मिलते थे, आत्मा को खोजते थे, तो वह कहीं पिंजरे में बंद मिलती थीं, आज चुनाव के संकेत मात्र से उछलकूद है। चाल मेढकी है। छलांग के लिए ऊंचे ढूह तलाशे जा रहे हैं। टर्राहट को सुमधुर तान में बदलने के रियाज पर सारा फोकस है।
चुनाव के वक्त जागी आत्माएं इतनी ज्यादा नैतिक हो जाती हैं कि ओवरफ्लो नैतिकता खतरे के निशान से ऊपर चली जाती है और देखते-देखते तटबंध तोड़ नए शरीर में प्रविष्ट हो जाती हैं। नए शरीर नई पार्टियां हैं। सो, आत्माएं तेजी से चोला बदल उधर गमन कर रही हैं। एक गमन करती आत्मा से पूछा, तो वह हिनहिनाने लगी-हमें बोध हो गया है कि अब तक हम गलत जगह टिकी हुई थीं।
लेकिन यह तो अनैतिक है-मैंने कहा, चुनाव के वक्त ही आत्माओं में पुनर्जागरण का दौर क्यों आता है! वह बोली-वैसे जागो तभी सवेरा और चुनाव ऐसा ही सवेरा है। फिर भी इसे यूं समझिए कि आत्मा को ज्यादा दिन तक एक शरीर में बांधकर नहीं रखा जा सकता। यू नो! हम आत्मा हैं और एक आत्मा बेआत्मा होना कभी स्वीकार नहीं कर सकती! कहकर आत्मा उड़ गई। आत्मा की इस फिलॉसफी पर मेरी आत्मा अब तक यकीन करने को तैयार नहीं।