बुजुर्गों की व्यथा: श्रवण के देश में अपनों की अनदेखी

old age
महेंद्र अवधेश ।
हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है कि देश के दो-तिहाई बुजुर्ग तिरस्कृत जीवन जीने को विवश हैं। एक सामाजिक-स्वैच्छिक संगठन द्वारा किए गए सर्वेक्षण के दौरान करीब पांच हजार बुजुर्गों से बातचीत की गई, जिसमें यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि करीब 65 फीसदी बुजुर्ग परिवार के तिरस्कार के शिकार हैं। 54.1 फीसदी बुजुर्गों को अपने घर में अभद्रता का सामना करना पड़ रहा है। तकरीबन 25.3 फीसदी बुजुर्ग अपने परिवारजनों के हाथों विभिन्न तरीकों से शोषित हैं। कुल 89.7 फीसदी बुजुर्गों का मानना था कि परिवार के दुर्व्यवहार के पीछे आर्थिक कारण ज्यादा होते हैं। किसी बुजुर्ग ने कहा कि परिवार के युवा सदस्य उन्हें बोझ समझते हैं।
पिछले दिनों जारी संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रत्येक पांच में से एक बुजुर्ग अकेले या अपनी पत्नी के साथ जीवन व्यतीत कर रहा है, यानी वह परिवार नामक संस्था से अलग रहने को विवश है। ऐसे बुजुर्गों में महिलाओं की संख्या ज्यादा है। अशिक्षित बुजुर्गों की हालत और भी ज्यादा दयनीय है। अधिकतर बुजुर्ग डिप्रेशन, आर्थराइटिस, डायबिटीज एवं आंख संबंधी बीमारियों से ग्रस्त हैं और महीने में औसतन 11 दिन बीमार रहते हैं। सबसे ज्यादा परेशानी उन बुजुर्गों को होती है, जिनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है।
हमारे बुजुर्ग सिर्फ अकेलेपन के शिकार नहीं हैं, बल्कि उन्हें भुखमरी से भी लडऩा पड़ रहा है। नामी-गिरामी संस्था हेल्पेज इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट बताती है कि देश के लगभग 10 करोड़ बुजुर्गों में से पांच करोड़ से भी ज्यादा बुजुर्ग आए दिन भूखे पेट सोते हैं। देश की कुल आबादी का आठ फीसदी हिस्सा अपने जीवन की अंतिम वेला में सिर्फ भूख नहीं, बल्कि कई तरह की समस्याओं का शिकार है। रिपोर्ट बताती है कि बुजुर्गों को राज्य सरकारों की ओर से जो पेंशन दी जा रही है, वह इतनी नाकाफी है कि उससे महीना भर तो क्या, चार दिन भी बसर हो सकना असंभव है। अभी तक हरियाणा देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां राज्य सरकार की ओर से मिलने वाली वृद्धावस्था पेंशन की राशि सम्मानजनक रही है।
लगभग सवा अरब की आबादी वाले हमारे देश में बुजुर्गों की संख्या करीब दस करोड़ है। अनुमान है कि यह आंकड़ा साल 2050 आते-आते 32 करोड़ से भी ज्यादा होगा। हेल्पेज इंडिया के एक अन्य सर्वेक्षण के मुताबिक, 50 फीसदी बुजुर्ग अपने घर में, अपनों के बीच बेगानों जैसा जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं।
देश के 12 महानगरों में एक हजार से भी ज्यादा बुजुर्गों से बातचीत के बाद यह सर्वेक्षण इस नतीजे पर पहुंचा है कि बुजुर्गों की हालत काफी दयनीय है। ज्यादातर बुजुर्ग विभिन्न हेल्पलाइन्स की जानकारी होते हुए भी अपने साथ हुए अथवा होने वाले अत्याचारों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने से हिचकते हैं।
केंद्र सरकार ने मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस एक्ट-2007 के तहत बुजुर्गों के संरक्षण एवं सहायता के लिए कई प्रावधान कर रखे हैं, लेकिन अधिकांश बुजुर्गों को इस कानून की जानकारी नहीं है। जिन्हें जानकारी है, वे सामाजिक लोक-लाज वश अपनी संतानों के खिलाफ इसका इस्तेमाल नहीं करते।
अपवादों को छोड़ दें, तो देश के अधिकांश बुजुर्ग जीवनभर दोनों हाथों से कमाने के बावजूद सफर के अंतिम चरण में कौड़ी-कौड़ी को मोहताज हैं। जिस संतान को माता-पिता खिला- पिलाकर पालते-पोसते हैं, वही जीवन की अंतिम अवस्था में उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर देती है। बुजुर्गों की इस हालत को देखते हुए कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम यानी सीनियर सिटीजन मेंटीनेंस एक्ट-2010 लागू किया है। इसके तहत माता-पिता की प्रताडऩा और उनके भरण-पोषण संबंधी मामलों की सुनवाई की जिम्मेदारी उप-जिलाधिकारियों को सौंपी गई है। माता-पिता के भरण-पोषण के लिए दस हजार रुपये तक की धनराशि उनके बच्चों को देनी पड़ सकती है। विपरीत परिस्थितियों में तीन महीने की सजा का भी प्रावधान किया गया है।
माता-पिता के प्रति उपेक्षा, बेकद्री का यह भाव शिक्षित एवं उच्च शिक्षित वर्ग में ज्यादा देखा जा रहा है। डॉक्टर, इंजीनियर, अफसर बनने के बाद वे यह भूल जाते हैं कि जो कामयाबी उन्होंने हासिल की है, उसके पीछे उनके माता-पिता और परिवार का कितना त्याग छिपा हुआ है। कुछ समय पहले दतिया (मध्य प्रदेश) निवासी एक 82 वर्षीय वृद्धा ने मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग में गुहार लगाई थी कि उनके आईएएस बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया।
दरअसल, आधुनिकता का सही अर्थ ग्रहण न कर पाने वाले लोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यूज एंड थ्रो का सिद्धांत अपना बैठे हैं। उन्हें रिश्ते भी घर में दैनिक जरूरत में इस्तेमाल होने वाली वस्तु लगने लगे हैं।