नेपाल से फिर नजदीकी

NEPAL india borderनेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड की भारत यात्रा से भारत-नेपाल संबंधों में फिर से गर्मजोशी लौटी है। दूसरी बार नेपाल की सत्ता संभालने के बाद उन्होंने चीन से पहले भारत आने का फैसला करके यह संदेश दे दिया कि भारत न सिर्फ उनके लिए बल्कि नेपाल के लिए भी ज्यादा अहम है।
वह पिछले कुछ समय से चली आ रही गलतफहमी को दूर करके दोनों के बीच दोस्ती को फिर से मजबूत बनाना चाहते हैं। भारत ने भी उनके दौरे को काफी महत्व दिया। इस दौरान भारत-नेपाल के बीच तीन अहम मुद्दों पर समझौते हुए। पहला तराई हाईवे के आधुनिकीकरण को लेकर, दूसरा तराई की सड़कों के दूसरे चरण, पावर ट्रांसमिशन लाइन, सब स्टेशन और पॉलिटेक्निक कॉलेजों के निर्माण के लिए अतिरिक्त ऋण देने को लेकर तथा तीसरा भूकंप बाद के पुनर्निर्माण के लिए 75 करोड़ डॉलर देने को लेकर।
प्रचंड ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भरोसा दिलाया कि नेपाल और भारत के संबंध हमेशा बरकरार रहेंगे। इसमें कोई दो मत नहीं कि भारत और नेपाल के संबंध को अब नई रूपरेखा देने की जरूरत है क्योंकि समीकरण काफी बदल चुके हैं। संविधान में मधेसी और जनजातीय समुदाय के हितों की उपेक्षा को लेकर नेपाल में पिछले साल उभरे भारी असंतोष और हिंसा के बाद दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे।
दरअसल भारत ने मधेसियों से जुड़े मुद्दों पर अपना रुख जाहिर किया था, जिसका मकसद अपने मित्र और पड़ोसी देश को एक सही सुझाव देना भर था, लेकिन नेपाल के एक तबके ने इसे अपने आंतरिक मामले में दखल की तरह देखा। मधेसी आंदोलन की वजह से भारत के ट्रक ऑपरेटर्स ने कुछ समय तक नेपाल में ट्रक नहीं भेजे। इसके लिए भारत सरकार जवाबदेह नहीं थी, लेकिन वहां आम धारणा यही बनी कि भारत सरकार पेट्रोलियम पदार्थों और जरूरी चीजों की आपूर्ति पर रोक लगाकर नेपाल को घुटनों पर लाना चाहती है।
फिर वहां भूकंप में भारत की भूमिका को लेकर भारतीय मीडिया में आई टिप्पणियों से भी नेपालवासी नाराज हुए थे। वहां यह भाव मजबूत हुआ कि भारत पर निर्भरता छोड़कर चीन से दोस्ती बढ़ाई जाए। नेपाल के पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली का झुकाव भी चीन की तरफ कुछ ज्यादा ही था। उन्होंने चीन के साथ पारगमन व परिवहन संधि सहित विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग के कई समझौते किए।
चीन ने नेपाल में ऐसा रेल नेटवर्क बनाने की पेशकश रखी, जो चीन से तिब्बत के रास्ते काठमांडू और अन्य नेपाली शहरों तक भी जा सकता है। यह नेटवर्क भारत की सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है। भारत द्वारा यह भरोसा दिलाने पर कि वह नेपाल में अपनी पहल पर रेलवे नेटवर्क विकसित कर सकता है, प्रचंड ने फिलहाल चीनी प्रॉजेक्ट को स्थगित कर दिया है।
जाहिर है, नेपाल की राजनीति में चीन अब एक अहम फैक्टर है। उसे ध्यान में रखकर ही हमें अपनी विदेश नीति बनानी होगी। हमें वहां अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी ताकि चीन का एकतरफा प्रभाव स्थापित न हो सके।