सनसनीखेज हत्याकांड पर आधारित है सरकार हाजिऱ हो

sarkar-hazir-hoअनिल बेदाग। मुजरिम हाजिऱ हो। अदालत के दरवाज़े पर जाकर ये आवाज़ दी जाती है और फिर शुरू होती हैं सरकारी वकील और बचाव पक्ष की दलीलें और बहस। मुंबई के बसरा स्टूडियो में उस दिन खचाखच भरी अदालत लगी थी जहां किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए गवाहों के बयानों से जुर्म की पुष्टि होती है जिसके आधार पर जज फैसला सुनाता है। भले ही उस दिन जज ने अपना फैसला सुना दिया, मगर एक और फैसला आना बाकी था और वो था आत्मा का फैसला। हालांकि आत्मा कोई साक्षात व्यक्तित्व नहीं होता, मगर वो अंतर्रात्मा का निर्णय होता है, जिसे हम सेल्फ रियलाइजेशन कहते हैं। अदालत में मुजरिम हाजिर होता है, पर बसरा की अदालत में सरकार को हाजिऱ होना पड़ता है। चौंकिए मत। यहां हम किसी राज्य या देश की सरकार को कटघरे में नहीं ला रहे, बल्कि कटघरे में आएंगे सरकार दंपति, जिनपर उनकी बेटी नेहा की हत्या का आरोप है इसलिए फिल्म का नाम रखा गया है ‘सरकार हाजिऱ होÓ।
आरूषि और शीना वोरा हत्याकांड ने देशभर में सनसनी फैलाई और ‘सरकार हाजिऱ होÓ का सब्जेक्ट भी इन्हीं से प्रेरित दिखता है। फिल्म के लेखक, निर्माता और निर्देशक पंडित प्रदीप व्यास कहते हैं कि फिल्मों में दिखाई जाने वाली आपराधिक घटनाएं एक-दूसरे से मिलती-जुलती जरूर हो सकती हैं, पर हर फिल्म में उनका प्रस्तुतिकरण अलग होता है। फिल्म तीन पहलुओं को लेकर चलती है। मां-बाप द्वारा बेटी की हत्या, बस में लड़की के साथ बलात्कार की कोशिश और एक लड़की में जि़ंदगी को पूरी मस्ती के साथ जीने की चाहत क्योंकि उसे डर है कि कभी न कभी उसे मार दिया जाएगा। ये घटनाएं आरूषि और शीना वोरा हत्याकांड की तरफ इशारा करती हैं, पर फिल्म और भी बहुत कुछ कहती है। पूरी फिल्म में एक घंटे का कोर्टरूम ड्रामा है, जहां मौजूद लोगों की सांसें थमी रहती हैं कि अब क्या होगा! फिल्म का एक दिलचस्प दृश्य नेहा की तस्वीर से जुड़ा है, जो अदालत में रखी है और उसका चाहने वाला एक वकील सागर नेहा की आत्मा को बुलाने का फैसला करता है क्योंकि वो इस शक्ति को जानता है। क्या वो नेहा का फैसला सुनने के लिए उसकी आत्मा को बुला पाएगा! इसका जवाब तो फिल्म ही देगी, पर आत्मा से जुड़े इस दृश्य के लिए निर्माता-निर्देशक ने सिनेमैटिक लिबर्टी ली है। खुद निर्माता के साथ ऐसा अनुभव हो चुका है इसलिए इसे फिल्म का हिस्सा बनाया गया। अदालत में स्लिम कुमार नाम के एक आरोपी कंपाउंडर का पैन भी कई राज़ खोल सकता है। फिल्म में ऐसे कई सस्पैंस हैं, जो दर्शकों में जिज्ञासा पैदा करते रहेंगे।
जोड़ीदार फिल्म्स एंड टीवी प्रोडक्शन्स के बैनर तले बन रही इस फिल्म के अधिकांश कलाकार भले ही नए हैं, पर दर्शक किसी न किसी धारावाहिक या फिल्म में उनकी दमदार अदाकारी को देखते रहे हैं। बचाव पक्ष की वकील आरती जोशी और सरकारी वकील अमित कुमार का सशक्त अभिनय फिल्म की जान है, पर सागर के रूप में परदे पर आ रहे मनोज मल्होत्रा ने भी अपने किरदार मेें पूरा प्रभाव पैदा किया है। इसी तरह पृथ्वी जुत्शी, अनुपमा शर्मा और शशि रंजन भी फिल्म में अभिनय की छाप छोड़ते नजऱ आएंगे। एक और स्माइलिंग फेस करिश्मा कंवर का उल्लेख करना जरूरी है, जो जूही के रूप में कुछ समय तक परदे पर आएगी और फिर उनकी तस्वीर ही पूरी फिल्म में एक अहम किरदार का रूप लेती जाएगी। प्रोजेक्ट को डिजाइन किया है सोशल एक्टिविस्ट बीना पुगलिया ने।
फिल्म के लेखक, निर्माता और निर्देशक पंडित प्रदीप व्यास की यह तीसरी फिल्म है। इससे पहले वह ‘जय मां करवा चौथÓ और ‘एक प्यार ऐसा भीÓ बना चुके हैं। फिल्मों के बाद प्रदीप टीवी इंडस्ट्री में व्यस्त हो गए। इनके तीन धारावाहिक ‘ठहाकाÓ, ‘हंसते रह जाओगेÓ और बच्चों की कुरीतियों पर आधारित ‘वचनÓ काफी चर्चा में रहे। इन दिनों प्रदीप कैंसर पेंशट्स की मदद के लिए अभियान चला रहे हैं। जयपुर में वह अस्पताल खोलने की योजना बना रहे हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे पंडित प्रदीप व्यास विधवा स्त्रियों के स्वावलंबन और उनके पुनर्वास के लिए काम कर रहे हैं। वह कहते हैं कि फिल्म अगर दर्शकों ने पसंद की, तो उनसे मिला पैसा सामाजिक कार्यों पर ही खर्च किया जाएगा और यही उनका मिशन भी है। हरीश व्यास एसोसिएट प्रोड्यूसर और अराध्या गौतम एक्ज़ीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं। सिनेमेटोग्राफी हीरा सरोज की है और गीत लिखे हैं अब्दुल गफ्फार और पंडित प्रदीप व्यास ने।