विश्व प्रकृति दिवस: बुंदेलखंड का अपना प्राकृतिक रूप

tara patडा. राधेश्याम द्विवेदी। 3 अक्तूबर की तारीख एक बार फिर आ गई . विश्व प्रकृति दिवस आज है . विश्व प्रकृति दिवस प्रत्येक वर्ष 3 अक्तूबर को मनाया जाता है. पूरी दुनिया में आज के दिन प्रकृति को बचाने , उसे सुन्दर और अपनी गतिविधि को प्रकृति सम्यक बनाने की पुन: कसमे खाई जाएगी . बुंदेलखंड भी तो अपना प्राकृतिक रूप से खुशहाल था. इतिहास पलटे तो यहाँ भी चन्देल कालीन स्थापित किले और मंदिर हरे – भरे जंगलो और सीना ताने पहाड़ो के मध्य ही बने थे . कंक्रीट के विकास की रफ़्तार इतनी तेज हो गई कि हमने प्रकृति के साथ न सिर्फ बलात्कार किया , बल्कि उसकी अस्मिता पर ही आज प्रश्न चिन्ह लगा दिया है .बुंदेलखंड के खजुराहो और कालिंजर के अवशेष कभी इसलिए ही ख्यातिप्राप्त स्तम्भ थे क्योकि उनको पर्यावरणीय नजर से सम्रध पाया गया था . मगर अब यहाँ परती होती कृषि जमीने,प्राकृतिक संसाधनों के उजाड़ ने इसको सूखा और नदी – पहाड़ो के खनन की मंडी के रूप में स्थापित कर दिया है . एक सर्वे के मुताबिक इस प्राकृतिक उजाड़ के खेल में पल रहे है 8500 बाल श्रमिक जिनके हाथो में बस्ता नही हतौड़ा है . सात जनपद में तेजी से जंगल का प्रतिशत घट कर 7 फीसदी से कम है तो वही 200 मीटर ऊँचे पहाड़ो को 300 फुट नीचे तक गहरी खाई में तब्दील कर दिया गया है .बुंदेलखंड में इस वर्ष भी सूखा है . पानी का एक्यूप्रेशर कहे जाने वाले पहाड़ अब देखने में डरावने लगते है .पर यह सब प्रकृति की तबाही जारी है क्योकि हमें विकास करना है ! एक ऐसा अंधा विकास जो बुंदेलखंड को रेगिस्तान बना देगा . चित्रकूट,महोबा और झाँसी , ललितपुर यहाँ काले पत्थर के खनन और बाँदा,हमीरपुर,जालौन लाल बालू के लिए मशहूर है .
एनजीटी , सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय इलाहाबाद के कई आदेश इस प्रकृति विरोधी कार्य के लगाम लगाने में जारी हुए पर थक हारकर उसकी लड़ाई लडऩे वाले या तो खामोश हुए या करा दिए गए . ठेठ हिंदी पट्टी के केन , यमुना,मंदाकनी,बेतवा,पहुंज,धसान,उर्मिल,चन्द्रावल,बागे नदियों की कभी अविरल धार में खेलता बुंदेलखंड आज समसामयिक द्रष्टि से किसान आत्महत्या और जल संकट के लिए अधिक पहचाना जाता है .सरकारी तंत राजस्व की आड़ में चुप है और प्रकृति के दुश्मन बेख़ौफ़ है . आंकड़ो में निगाह डाले तो बुंदेलखंड के हिस्से कुल 1311 खनन पट्टे है . जिसमे 1025 चालू और 86 रिक्त है . वही पुरे उत्तर प्रदेश में ये सूरत 3880 खदान पर है . जिसमे 1344 खनन पट्टे चालू है . बालू और पत्थर के खनन के लिए वनविभाग की एनओसी लेनी होती है . कानून का राज बुंदेलखंड में नही चलता, यहाँ लोग प्रगतिशील किसान नही, खनन माफिया कहलाना अधिक पसंद करते है .
जल, जंगल और ज़मीन के बिना प्रकृति अधूरी :- वर्तमान परिपेक्ष्य में कई प्रजाति के जीव जंतु एवं वनस्पति विलुप्त हो रहे हैं. विलुप्त होते जीव जंतु और वनस्पति की रक्षा का विश्व प्रकृति दिवस पर संकल्प लेना ही इसका उद्देश्य है. जल, जंगल और जमीन, इन तीन तत्वों के बिना प्रकृति अधूरी है. विश्व में सबसे समृद्ध देश वही हुए हैं, जहाँ यह तीनों तत्व प्रचुर मात्रा में हों. भारत देश जंगल, वन्य जीवों के लिए प्रसिद्ध है. सम्पूर्ण विश्व में बड़े ही विचित्र तथा आकर्षक वन्य जीव पाए जाते हैं. हमारे देश में भी वन्य जीवों की विभिन्न और विचित्र प्रजातियाँ पाई जाती हैं. इन सभी वन्य जीवों के विषय में ज्ञान प्राप्त करना केवल कौतूहल की दृष्टि से ही आवश्यक नहीं है, वरन यह काफी मनोरंजक भी है. भूमंडल पर सृष्टि की रचना कैसे हुई, सृष्टि का विकास कैसे हुआ और उस रचना में मनुष्य का क्या स्थान है ? प्राचीन युग के अनेक भीमकाय जीवों का लोप क्यों हो गया और उस दृष्टि से क्या अनेक वर्तमान वन्य जीवों के लोप होने की कोई आशंका है ? मानव समाज और वन्य जीवों का पारस्परिक संबंध क्या है ? यदि वन्य जीव भूमंडल पर न रहें, तो पर्यावरण पर तथा मनुष्य के आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा? तेजी से बढ़ती हुई आबादी की प्रतिक्रिया वन्य जीवों पर क्या हो सकती है आदि प्रश्न गहन चिंतन और अध्ययन के हैं. इसलिए भारत के वन व वन्य जीवों के बारे में थोड़ी जानकारी आवश्यक है, ताकि लोग भलीभाँति समझ सकें कि वन्य जीवों का महत्व क्या है और वे पर्यावरण चक्र में किस प्रकार मनुष्य का साथ देते हैं.
विश्व प्रकृति की समस्या व तरीके::- विज्ञान के क्षेत्र में असीमित प्रगति तथा नये आविष्कारों की स्पर्धा के कारण आज का मानव प्रकृति पर पूर्णतया विजय प्राप्त करना चाहता है। इस कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है. वैज्ञानिक उपलब्धियों से मानव प्राकृतिक संतुलन को उपेक्षा की दृष्टि से देख रहा है. दूसरी ओर धरती पर जनसंख्या की निरंतर वृध्दि ,औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की तीव्र गति से जहाँ प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों को समाप्त किया जा रहा है. पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों ,प्राणियों,और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं वास्तव में पर्यावरण में वायु ,जल ,भूमि ,पेड़-पौधे , जीव-जन्तु ,मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं.
विश्व प्रकृति संरक्षण का महत्त्व :-पर्यावरण संरक्षण का समस्त प्राणियों के जीवन तथा इस धरती के समस्त प्राकृतिक परिवेश से घनिष्ठ सम्बन्ध है. प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है। इस स्थिति को ध्यान में रखकर सन् 1992 में ब्राजील में विश्व के 174 देशों का पृथ्वी सम्मेलन आयोजित किया गया. इसके पश्चात सन् 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए अनेक उपाय सुझाए गये। वस्तुत:पर्यावरण के संरक्षण से ही धरती पर जीवन का संरक्षण हो सकता है , अन्यथा मंगल ग्रह आदि ग्रहों की तरह धरती का जीवन-चक्र भी एक दिन समाप्त हो जायेगा.
विश्व प्रकृति संरक्षण के उपाय व प्रयास:- पर्यावरण प्रदूषण के कुछ दूरगामी दुष्प्रभाव हैं , जो अतीव घातक हैं , जैसे आणविक विस्फोटों से रेडियोधर्मिता का आनुवांशिक प्रभाव , वायुमण्डल का तापमान बढऩा , ओजोन परत की हानि , भूक्षरण आदि ऐसे घातक दुष्प्रभाव हैं। प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव के रूप में जल , वायु तथा परिवेश का दूषित होना एवं वनस्पतियों का विनष्ट होना , मानव का अनेक नये रोगों से आक्रान्त होना आदि देखे जा रहे हैं. बड़े कारखानों से विषैला अपशिष्ट बाहर निकलने से तथा प्लास्टिक आदि के कचरे से प्रदूषण की मात्रा उत्तरोत्तर बढ़ रही है. जंगलों को न काटे.कार्बन जैसी नशीली गैसों का उत्पादन बंद करे.उपयोग किए गए पानी का चक्रीकरण करें.ज़मीन के पानी को फिर से स्तर पर लाने के लिए वर्षा के पानी को सहेजने की व्यवस्था करें. ध्वनि प्रदूषण को सीमित करें.प्लास्टिक के लिफाफे छोड़ें और रद्दी कागज़़ के लिफाफे या कपड़े के थैले इस्तेमाल करें.जिस कमरे मे कोई ना हो उस कमरे का पंखा और लाईट बंद कर दें.पानी को फालतू ना बहने दें.आज के इंटरनेट के युग में, हम अपने सारे बिलों का भुगतान आनलाईन करें तो इससे ना सिर्फ हमारा समय बचेगा बल्कि कागज़़ के साथ साथ पैट्रोल डीजल भी बचेगा.ज्यादा पैदल चलें और अधिक साइकिल चलाएं.प्रकृति से धनात्मक संबंध रखने वाली तकनीकों का उपयोग करें. जैसे- जैविक खाद का प्रयोग, डिब्बा-बंद पदार्थो का कम इस्तेमाल. जलवायु को बेहतर बनाने की तकनीकों को बढ़ावा दें. पहाड़ खत्म करने की साजिशों का विरोध करें.