दूसरे प्रांतों के मुख्यमंत्रियों को खूब भायी यूपी की सरज़मी

picयोगेश श्रीवास्तव ,
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की जमीन शुरू से ही काफी उर्वरक रही है। जहां भाजपा के अटल बिहारी बाजपेयी सरीखे नेता ने प्रधानमंत्री बनने के लिए देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा यूपी को अपना कर्मभूमि बनाया तो उसी नक्शेकदम पर नरेन्द्र मोदी भी चले। इसके अलावा शरद यादव, मुफ्ती मोहम्मद सईद सरीखे कई नेता यहीं से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे और केन्द्र मेंं मंत्री बने। इन बड़े नेताओं की देखादेखी देश के दूसरे राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी राजनीतिक की लिहाज से अपने गृहराज्य की अपेक्षा यूपी ही खूब भाया। इस समय केन्द्र में प्रधानमंत्री से लेकर दो कैबिनेट मंत्री ऐसे है जो दूसरे राज्यों के पूर्वमुख्यमंत्री है। गुजरात में १४ साल प्रधानमंत्री रहे नरेन्द्र मोदी ने २०१४ में पहली बार गुजरात के बड़ोदरा और यूपी की वाराणसी सीट से सांसदी का चुनाव लड़ा। बाद में उन्होंने बड़ोदरा सीट छोड़ी और वाराणसी की सीट बरकरार रखते हुए प्रधानमंत्री बने। २०१४ के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को टक्कर भी दिल्ली के पूर्व मु यमंत्री अरविंद केजरीवाल से ही मिली।  २६ नवंबर २०१२ में आमआदमी पार्टी के गठन के बाद २०१३ के दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अरविंद केेजरीवाल ने दिल्ली की १५साल तक सीएम रही शीला दीक्षित को शिकस्त दी थी। उसके बाद २०१४ के लोकसभा चुनाव में वाराणसी में भाजपा के नरेन्द्र मोदी को टक्कर देने पहुंच गए। लेकिन यहां उन्हे शिकक्त का सामना करना पड़ा। दो पूर्व मु यमंत्री केन्द्रीयमंत्रिमंडल में यूपी से संसद सदस्य है। इसी तरह दो पूर्व मु यमंत्री इस समय कांग्रेस का भविष्य संवारने में लगे है। भाजपा की फायरब्रांड नेत्री और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती इस समय यूपी के झांसी संसदीय क्षेत्र से सांसद है और केन्द्र में कैबिनेट मंत्री है। वे २०१२ में हमीरपुर की चरखारी सीट से विधायक रही। यूपी में सक्रिय होने से पहले उमा भारती १९८९-९१-९६-९८ में खजुराहो,से सांसद रही। १९९९ में भोपाल से सांसद रही। और २०१४ में झांसी से सांसद चुनी गई। २००३ में विधानसभा मध्यप्रदेश के बड़ामलेहरा सीट से विधायक रही उसके बाद २०१२ में चरखारी(यूपी) से विधायक रही। गोवा के पूर्व मु यमंत्री मनोहर पर्रिकर इस समय केन्द्र में रक्षा मंत्री है और वे उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य है। गोवा के मुख्यमंत्री के अलावा वहां की विधानसभा मे ंविपक्ष के नेता रहे मनोहर पर्रिकर वहां दो बार सीएम रहे। गोवा में सीएम पद छोडऩे के बाद केन्द्र में मंत्री बनने के लिए भाजपा नेतृत्व ने उन्हे राज्यसभा भेजने के लिए यूपी भेजा। मनोहर पर्रिकर और उमा भारती
से पहले केन्द्र में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी दिल्ली की मु यमंत्री रहने के बाद उत्तर प्रदेश से ही राज्यसभा सदस्य रही। श्रीमती सुषमा स्वराज अप्रैल २००३ से नवंबर २००३ तक राज्यसभा की सदस्य रही। २०१७ के होने वाले विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के लिए कांग्रेस ने दो पूर्वमु यमंत्रियों को लगाया है। कांग्रेस नेतृत्व ने चौथीबार जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलामनबी
आजाद को प्रदेश प्रभारी बनाया है। महाराष्टï्र की वाशिम सीट से ७वीं और ८वीं लोकसभा के सदस्य रहे उसके बाद जम्मू कश्मीर की राजनीति में सक्रिय रहे। आजाद वर्ष १९८६,१९९६, और २००२ में उत्तर प्रदेश के प्रभारी रह चुके है। हालांकि जब भी वे प्रदेशप्रभारी रहे और उनके कार्यकाल में जो भी विधानसभा चुनाव हुए उनमें कांग्रेस के परिणाम बेहतर नहीं रहे। पहली बार जब वे १९८६ में प्रदेश प्रभारी बने तो कांग्रेस सत्ता में थी। १९८९ मे हुए चुनाव में कांग्रेस में ९४ सीटे मिली थी। तब से कांग्रेस जो सत्ता से बेदखल हुई तो आज तक बियावान मे ही भटक रही है। जब वे १९९६ में प्रभारी बने तो इसी साल बसपा से समझौता हुआ। बसपा ने तीन सौ सीटे ली कांग्रेस मात्र १२५ सीटों पर ही लड़ी। इस चुनाव में कांग्रेस को ३३ सीटे मिली थी। इसके बाद आजाद २००२ के विधानसभा चुनाव में प्रभारी थे। तब कांग्रेस को मात्र २५ सीटे मिल थी। इस बार देखना है कि वे अपने प्रताप से कांग्रेस को कितनी और कहां तक सफलता दिलाते है। पन्द्रह साल तक दिल्ली में मु यमंत्री रही शीला दीक्षित २०१७ के लिए कांग्रेस से सीएम पद की उ मीदवार है। दिल्ली की सीएम बनने से पहले वे यूपी की कन्नौज सीट से १९८४ व १९८९ में सांसद रही। दिल्ली में चुनाव हारने के बाद वे कुछ दिनों के लिए के रल की राज्यपाल भी रही। राज्यपाल पद से हटने के बाद सक्रिय राजनीति में आने पर कांग्रेस ने उन्हे सीएम पद का उ मीदवार बनाया है।