हरियाणा के हिसार से हवाई यात्रा कर दीमा नगर पहुंच जब्त हुए साढ़े तीन करोड़ रुपयों ने देश में ही कालेधन को सफेद कर सकने की संभावनाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है। नगालैंड के एकमात्र लोकसभा सदस्य निफू रिओ के दामाद ने इस धन पर अपना दावा पेश करते हुए कहा है कि हिसार में जमीन सौदे के लिए 500 और एक हजार रुपये नोटों में यह रकम भेजी गयी थी, जो सौदा न हो पाने के कारण वापसी आयी है। वैसे तो सांसद रिओ द्वारा केंद्र में राजग सरकार को दिये जा रहे समर्थन से इस मामले में राजनीतिक कोण भी तलाशा जा सकता है, पर फिलहाल उसे नजरअंदाज भी कर दें तो देश भर में लागू आयकर से छूट के प्रावधान कई ऐसे छिद्रों की ओर इशारा करते हैं, जिनका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कालेधन को सफेद करने के लिए किया जा सकता है। मसलन, साढ़े तीन करोड़ की इस संदेहास्पद नकदी के संदर्भ में ही यह जानना दिलचस्प होगा कि पूर्वोत्तर राज्यों में अनुसूचित जनजातियों को किसी भी स्रोत से प्राप्त आय पर कर से छूट हासिल है। ऐसे में यह आशंका प्रबल हो जाती है कि नोटबंदी के बाद कालेधन को सफेद करने के लिए पूर्वोत्तर को प्राप्त इस छूट का जम कर दुरुपयोग किया जाये। ऐसी ही छूट लद्दाख समेत कुछ अन्य क्षेत्रों में भी प्राप्त है।
जाहिर है, आयकर कानून के तहत ऐसी छूट के मूल में जटिल भौगोलिक एवं सामाजिक स्थितियों के मद्देनजर राहत देना ही रहा होगा, लेकिन इसका दुरुपयोग रोकने की कोई व्यवस्था तो नहीं है। इसी तरह धार्मिक एवं पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट, बिना लाभ के चलने वाली सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्थाएं और अस्पतालों को भी आयकर से छूट प्राप्त है। राजनीतिक दलों को तो खैर आयकर के साथ ही ऑडिट और सूचना के अधिकार से भी छूट मिली हुई है। ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि व्यवस्था में ऐसे तमाम छिद्र मौजूद हैं, जिनका दुरुपयोग कालाधन सफेद करने के लिए किया जा सकता है। जाहिर है, सरकार और संबंधित तंत्र को इन छिद्रों का पता भी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि नोटबंदी से पहले सरकार ने इन छिद्रों को बंद करने की कोई कोशिश क्यों नहीं की? कम से कम एक निर्धारित अवधि के लिए तो इस छूट को स्थगित किया ही जा सकता था। कहना नहीं होगा कि ऐसे छिद्र नोटबंदी में निहित सरकार की कालाधन समाप्ति की मंशा की सफलता को तो संदेहास्पद बनायेंगे ही, भ्रष्टाचार और कालेधन को बढ़ावा भी देंगे। ध्यान रहे कि कानूनन छूट प्राप्त ये सभी छिद्र ऐसे हैं, जिनका दुरुपयोग आम आदमी नहीं, बल्कि बड़े-बड़े धन्ना सेठों द्वारा ही किया जा सकता है। कालेधन की एक खेप तो पकड़ी गयी, लेकिन सफेद हो चुकी खेपों की बाबत तो अब सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है।