सुरक्षा बलों की अनुशासनहीनता पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

supreem courtनई दिल्ली। सुरक्षाबल के कर्मी की अनुशासनहीनता को बेहद गंभीरता से लिया जाना चाहिए और वरिष्ठ अधिकारी के आदेश की अवहेलना करके काम छोड़कर जाने को घोर कदाचरण माना जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह व्यवस्था दी।
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि दोषी कर्मचारी पर जुर्माना लगाते समय उसके पूर्व में किए गए आचरण पर भी विचार किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी सीआइएसएफ (केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल) की उस याचिका पर की जिसमें उसने दिल्ली हाई कोर्ट के अगस्त 2014 के आदेश को चुनौती थी।
दरअसल, कांस्टेबल अबरार अली सितंबर 1990 में सीआइएसएफ में नियुक्त हुआ था। अक्टूबर 1999 में धनबाद यूनिट में तैनाती के दौरान कदाचरण और दुव्र्यवहार के आरोप में उसके खिलाफ सीआइएसएफ नियमों के तहत जांच का प्रस्ताव किया गया। नवंबर 2000 में यूनिट कमांडेंट ने उसे सभी आरोपों का दोषी पाया और सेवा से बर्खास्त करने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ अबरार ने सीआइएसएफ डीआइजी के समक्ष अपील की। उन्होंने 2001 में उसकी अपील खारिज कर दी। बल के आइजी ने भी जब उसकी पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी तो उसने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने अबरार अली को बहाल करने का आदेश दिया था।
हाई कोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ सीआइएसएफ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हालांकि अबरार अली पांच दिनों तक फोर्स छोड़कर जाने का दोषी पाया गया और पूर्व में तीन बार उस पर लगाए गए जुर्माने के बावजूद उसने अपने आचरण में सुधार नहीं किया, फिर भी सेवाओं से उसकी बर्खास्तगी काफी ज्यादा और कड़ी सजा है। हमारा मानना है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा न्यायसंगत होगी। पीठ ने कहा कि अबरार अली पेंशन के लिए आवश्यक न्यूनतम अवधि तक छद्म सेवा जारी रखने के योग्य है, लेकिन इस अवधि के लिए वह वेतन और भत्तों के भुगतान का हकदार नहीं होगा।