अंधविश्वास के खिलाफ सामाजिक आंदोलन जरूरी

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विचार डेस्क। यह वाकई चिंता की बात है कि समाज में आज भी अंधविश्वास की जड़ें बेहद मजबूत हैं। इन दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में सिलबट्टों को लेकर फैली एक अफवाह के कारण लोगों में दहशत है। कहा जा रहा है कि रात में सिलबट्टों पर खुट-खुट की आवाज आती है और ये टंके हुए यानी ठोके हुए मिलते हैं। कुछ लोगों का कहना है यह काम कोई चुड़ैल कर रही है।
इससे घबराकर लोगों ने घर की दीवारों और सिलबट्टों पर लाल और काले स्वास्तिक बनाकर पूजा-पाठ करना शुरू कर दिया है। हैरानी की बात है कि इन सब में पढ़े-लिखे लोग भी शामिल हैं। निश्चय ही शरारती तत्वों ने शुरू में अफवाह फैलाई होगी और लोगों ने बिना सोचे-समझे उसे सच मान लिया। हालांकि इस बारे में सचाई का पता लगाने की कोशिश हो रही है। कुछ लोगों की राय है कि एक खास तरह का कीड़ा सिलबट्टों पर छेद कर रहा है। माना जाता है कि ज्यों-ज्यों जीवन में विज्ञान और तकनीक का दखल बढ़ेगा, हमारी सोच भी बदलेगी। पर इन दोनों में कोई सीधा और सरल संबंध नहीं है।
आज गांव-गांव में मोबाइल, जेनरेटर और दूसरे उपकरण पहुंच चुके हैं, पर इससे सोच में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आया, बल्कि नई तकनीक के जरिए कठमुल्लापन को और आगे बढ़ाया जा रहा है। गांव तो गांव, शहरों से भी अंधविश्वास के कारण सगे-संबंधियों की हत्या किए जाने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। दरअसल हमारी शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी कमी यह है कि वह वैज्ञानिक सिद्धांतों के बारे में सब कुछ बता देती है, पर हमारे भीतर वैज्ञानिक सोच नहीं पैदा कर पाती। फिर अंधविश्वास का संबंध समाज के पावर स्ट्रक्चर से भी है। अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए एक ताकतवर तबके ने अंधविश्वास को पाल-पोसकर रखा है। बहुतों के लिए यह एक व्यवसाय है।
आज की तारीख में अनेक बाबाओं और तांत्रिकों का धंधा अंधविश्वास के कारण ही चल रहा है। सच कहा जाए तो अंधविश्वास फैलाने वाले काफी संगठित और मजबूत हैं, तभी तो उनका विरोध करने पर नरेंद्र दाभोलकर जैसे लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। संविधान में वैज्ञानिक सोच को आगे बढ़ाने के संकल्प के बावजूद कार्यपालिका और विधायिका के स्तर पर अंधविश्वास से लडऩे की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई देती।
महाराष्ट्र में भले इस मामले में कानून बन गया हो, लेकिन ज्यादातर राज्य इसे लेकर उदासीन हैं। अक्सर जाने-अनजाने प्रशासन ही इसे बढ़ावा देता रहता है। अंधविश्वास विकास और तरक्की के रास्ते में बड़ी बाधा है। सरकार को चाहिए कि वह अफवाह फैलाने वालों से सख्ती से निपटे और लोगों को जागरूक करे। आज अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच के खिलाफ सामाजिक आंदोलन की जरूरत है। इसके लिए सरकार, सामाजिक-धार्मिक संगठनों और प्रबुद्ध वर्ग को एकजुट होना होगा।