शशिकला नटराजन को सत्ता व संगठन में नहीं कोई चुनौती

shashikalaकृष्णमोहन झा। तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए उनकी सहेली शशिकला नटराजन का परोक्ष दावा ही सबसे मजबूत माना जा रहा था और इसके पहले चरणा के रूप में उन्हें अन्नाद्रमुक के महासचिव पद से नवाजने का फैसला गत दिवस पार्टी की जनरल कौंसिल की बैठक में आम सहमति से ले लिया गया। बैठक में पारित प्रस्ताव शशिकला नटराजन ने अगर बिना किसी संकोच के स्वीकार कर लिया तो इससे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्हें पार्टी महासचिव पद की बागडोर अपने हाथों में आने का पूरा भरोसा था। अन्नाद्रमुक जनरल कौंसिल की जिस बैठक में यह फैसला किया गया उसमेंं शशिकला नटराजन उपस्थित नहीं थीं परन्तु उनकी अनुपस्थित में भी अगर किसी सदस्य ने इस प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं जताई तो इससे भी यहीं संदेश मिलता है कि शशिकला नटराजन को सत्ता अथवा संगठन कही से भी कोई चुनौती नहीं दी जा सकती है। पहले ऐसा माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री पन्नीर सेल्वम स्वयं अन्नाद्रमुक के महासचिव पद की कुर्सी पर बैठने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं परंतु उन्होंने बैठक में इसकी कोई इच्छा प्रदर्शित नहीं की और शशिकला नटराजन से पार्टी महासचिव पद स्वीकार करने के लिए वे स्वयं अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के साथ उनके निवास स्थान तक गए। शशिकला नटराजन नव वर्ष के प्रथम सप्ताह में जब अन्नाद्रमुक के महासचिव पद की बागडोर संभाल लेगी तब यह उत्सुकता का विषय होगा कि क्या वे सत्ता प्रमुख की बागडोर भी अपने हाथों में लेना चाहती हैं अथवा पार्टी महासचिव के रूप में ही सत्ता पर परोक्ष नियंत्रण कायम रखने के पक्ष में हैं लेकिन शशिकला नटराजन की कार्यशली को देखते हुए यह कहना मुकिश्ल है कि वे केवल संगठन की जिम्मेदारियों के निर्वहन में ही रूचि लेंगी। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पन्नीर सेल्वम के अनेक मंत्रिमंडलीय सहयोगी भी शशिकला नटराजन को मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपने के पक्ष में आवाज उठा चुके हैं। शशिकला नटराजन से यह अनुरोध भी कुछ मंत्री कर चुके हैं कि वे जयललिता के निधन से रिक्त हुई सीट से चुनाव लडकऱ राज्य विधानसभा में प्रवेश करें। शशिकला नटराजन को जयललिता का वरदान निरूपित करने वाले अनेक मंत्री यह मानते हैं कि शशिकला नटराजन पार्टी को इस संकट की घड़ी में एकजुट रखने में पूरी तरह समर्थ हैं। शशिकला नटराजन को पार्टी के अन्दर कितना अधिक समर्थन प्राप्त है इसका अनुमान उस घटना से लगाया जा सकता है जो महासचिव पद की एक अन्य दावेदार शशिकला पुष्पा और उनके समर्थकों के साथ पार्टी मुख्यालय में घटी। शशिकला पुष्पा को अन्नाद्रमुक ने राज्यसभा में भेजा था परंतु बाद में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। शशिकला पुष्पा अपने पति एवं समर्थकों के साथ पार्टी मुख्यालय में महासचिव पद के लिए नामांकन भरने पहुंची थीं उनके वहां पहुंचते ही शशिकला नटराजन के समर्थकों के आक्रोश का ज्वार फूट पड़ा और अंतत: शशिकला पुष्पा को महासचिव पद का नामांकन भरे बिना ही पार्टी मुख्यालय से वापिस लौटना पड़ा। शशिकला नटराजन के समर्थकों के इस व्यवहार से एक बात और साफ हो गई है कि शशिकला नटराजन के लिए चुनौती पेश करना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा। शायद इसीलिए मुख्यमंत्री पन्नीर सेल्वम ने भी जयललिता के निधन के बाद पार्टी महासचिव पद की कुर्सी भी अर्जित करने की कोई इच्छा प्रदर्शित नहीं की और शशिकला नटराजन को निर्विरोध महासचिव चुन लिया गया।
इसमें कोई संदेह नहीं की पार्टी महासचिव के रूप में तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता की घनिष्ट सहेली शशिकला नटराजन का राज्य में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक में वही स्थान होगा जो दिवंगत जयललिता का हुआ कता था। जयललिता के निधन के बाद उनकी भतीजी दीपा ने शशिकला नटराजन के खिलाफ यह आरोप लगाया था कि बुआ (जयललिता) ने कभी भी अपने सहेली शशिकला नटराजन को अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था बल्कि उन्हें हमेशा ही राजनीति से दूर रखा। दीपा का कहना है कि शशिकला नटराजन को बुआ ने हमेशा अपना सबसे करीबी विश्वासपात्र माना परंतु उन्होंने बुआ के इस विश्वास को ठेस पहुंचाई इसलिए बुआ द्वारा उन्हें अपना स्वाभाविक उत्तराधिकारी घोषित करने का तो सवाल ही नहीं उठता। गौरतलब है कि दीपा जयललिता के दिवंगत भाई जयकुमार की बेटी हैं जिनका जन्म जयललिता के निवास स्थान वेदनिलयम में हुआ था। जयललिता के निधन के कुछ ही समय बाद यह चर्चाएं होने लगी थीं कि अब शशिकला नटराजन उनकी राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगी तब दीपा जयकुमार ने यह संकेत दिए थे कि वे अपनी बुआ की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए राजनीति में प्रवेश कर सकती हैं परंतु बाद में उनके बयान आना बन्द हो गए। अब शशिकला नटराजन पार्टी की महासचिव बन चुकी है और देखना यह है कि वे मुख्यमंत्री की कुर्सी भी अर्जित करने की महत्वाकांक्षा प्रदर्शित करती हैं अथवा नहीं लेकिन इतना तो तय है कि अगर उन्होंने दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता के निधन से रिक्त हुई सीट से चुनाव लडकऱ विधानसभा में प्रवेश करने का फैसला कर लिया है तो पन्नीर सेल्वम को एक बार पुन: उनके लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली करनी पड़ सकती है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जयललिता जब गंभीर रूप से बीमार थी तब अस्पताल में केवल शशिकला नटराजन को ही उनके पास रहने की अनुमति थी और इसीलिए शशिकला नटराजन पर भी यह संदेह व्यक्त किया था कि आखिर वे किसी पार्टी नेता, मंत्री या अधिकारी को उनसे जयललिता से क्यों नहीं मिलने दे रही हैं। लेकिन जयललिता के निधन के बाद वे पार्टी में महासचिव पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए आगे आ गई। अब यह कोई नहीं जानता कि जयललिता ने अपने अंतिम समय में शशिकला नटराजन से अपनी राजनीतिक विरासत संभालने की इच्छा व्यक्त की थी या नहीं। बहरहाल अब वे पार्टी महासचिव बन चुकी हैं और चूंकि मुख्यमंत्री पन्नीर सेल्वम भी उनसे यह कुर्सी संभालने का अनुरोध करने वाले नेताओं में शामिल थे इसलिए अब यह मानना गलत नहीं होगा कि पार्टी और सरकार दोनों ही उनका रूतबा मुख्यमंत्री से अधिक होगा।