असुरक्षित हाईवे

विकास के प्रतीक बताये जा रहे यमुना एक्सप्रेस वे के निकट सरेआम कार रोककर हत्या व सामूहिक दुष्कर्म हो जाये और घंटों पुलिस न पहुंचे तो कानून व्यवस्था की धज्जियां ही उड़ती हैं। अपराधियों को उत्तर प्रदेश छोडऩे की मुख्यमंत्री की चेतावनी के बाद अपराधी जिस तरह बेधड़क होकर अपराधों को अंजाम दे रहे हैं, उससे लोगों का कानून व्यवस्था से भरोसा ही उठता जा रहा है। कैसी विडंबना है कि किसी मरीज को देखने जा रहे परिवार पर आफतों का ऐसा पहाड़ टूटा कि वो जीवनभर इस त्रासदी से न उबर पायेगा। राज्य में अपराध की तमाम बड़ी वारदातों के साथ सहारनपुर में बेकाबू जातीय हिंसा ने शासन-प्रशासन की क्षमताओं की कलई खोल कर रख दी है। बड़ी-बड़ी बातें करने वाली भाजपा की उ.प्र. सरकार खुद कठघरे में नजर आ रही है। इसके बावजूद राज्य में पुलिस-प्रशासन के आला अफसरों के तबादलों का क्रम जारी है मगर कानून व्यवस्था पटरी पर लौटती नजर नहीं आ रही है। एक साल पहले बुलंदशहर के निकट घटी ऐसी ही गैंगरेप की घटना ने क्षेत्र में सनसनी फैला दी थी। भाजपा ने इसे जंगलराज की संज्ञा देकर बवाल काटा था। अब भाजपाई इसे किस राज की संज्ञा देंगे? ये खुले तौर पर कानून व्यवस्था की विफलता का मामला है।
निश्चित रूप से हाईवे पर पुलिस का न होना और सूचना देने के घंटों बाद पहुंचना पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान ही लगाता है। इसी हाईवे पर हुई ऐसी पिछली घटना के बाद पुलिस ने कोई सबक नहीं सीखा। उस घटना के बाद पुलिस ने जो दावे किये थे, वे खोखले ही निकले। अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा होने का जश्न मना रही केंद्र की भाजपा सरकार को मानना होगा कि दो महीने पूरे होने पर भी प्रदेश सरकार कानून व्यवस्था के मोर्चे पर पूरी तरह विफल रही है। कानून व्यवस्था का प्रश्न भाजपा सरकारों की प्राथमिकताओं में रहा है। इस मायने में योगी सरकार कठघरे में नजर आ रही है। मथुरा की भीषण डकैती व दोहरे हत्याकांड जैसे कई जघन्य अपराध उ.प्र. में पिछले दिनों हुए हैं। मगर राज्य में भाजपा के नेता कानून व्यवस्था के बजाय निजी मामलों में पुलिस को डराने-धमकाने में लगे हुए हैं। पुलिस थानों व अधिकारियों के घरों पर हमले की कई वारदातें सहारनपुर व मुरादाबाद जनपदों में हो चुकी हैं। यानी पुलिस को अपने तरीके से काम नहीं करने दिया जा रहा है। राज्य में यदि शीघ्र कानून व्यवस्था पटरी पर नहीं आती तो भाजपा सरकार के सुशासन के दावे खोखले ही साबित होंगे। ये योगी सरकार के लिये मंथन का समय है कि कानून व्यवस्था को अपराधी क्यों ठेंगा दिखा रहे हैं। यदि उन्हें राजनीतिक व अन्य संरक्षण हासिल है तो उसकी असलियत सामने आनी चाहिए।