साहित्य के अनुशीलन को प्रेरित करती पत्रिका

नाज खान। संगीत नाटक अकादेमी की छमाही पत्रिका ‘राजभाषा रूपाम्बरा’ का अप्रैल-सितंबर 2016 अंक इसलिए भी खास है, क्योंकि इस वर्ष हिंदी साहित्य और लेखन से जुड़ी दो महान शख्सियतों पद्मभूषण अमृतलाल नागर और हिंदी आलोचक डॉ. नगेंद्र का जन्मशती वर्ष भी है। ऐसे में पत्रिका का यह अंक इन दो महान विभूतियों पर केंद्रित किया गया है।
जन्मशती वर्ष को ध्यान में रखते हुए पत्रिका के संपादक तेजस्वरूप त्रिवेदी ने इस अंक में जहां हिंदी जगत की इन दो महान विभूतियों पर संग्रहणीय सामग्री देने की कोशिश की है। वहीं पत्रिका में आलेख, कविता, भावपूर्ण स्मरण को भी सम्मिलित किया है। नागर जी से उनके साहित्य पर स. ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ से हुई बातचीत इस अंक की विशेषता कही जा सकती है। कुछ अन्य आलेखों के माध्यम से आधुनिक हिंदी की समालोचना को समृद्ध करने में डॉ. नगेंद्र के योगदान को भी याद किया गया है। वहीं पत्रिका में सम्मिलित व्याख्यान व आलेख इस अंक को और भी रोचक बनाते हैं। ‘यादों की पुरवाई’ अपने भावपूर्ण स्मरण में डॉ. अचला नागर ने अपने पिता के व्यक्तित्व, रहन-सहन, वेशभूषा को याद करते हुए कहा है कि उन्हें अपने पिता पर इसलिए गर्व है, क्योंकि वह एक श्रेष्ठ मानव थे। नागर जी के लेखन कौशल से जहां ‘नाच्यौ बहुत गोपाल’ जैसे उदाहरण सामने आये वहीं उनके ‘खंजन-नयन’, ‘बूंद और समुंद्र’, ‘मानस का हंस’ जैसे उपन्यास हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि बन गये। कला-समीक्षक प्रयाग शुक्ल ने नागर जी का स्मरण करते हुए उनके इन उपन्यासों के बारे में स्पष्ट कहा है, ‘याद नहीं कि इन जैसा वर्णन कहीं और पढ़ा हो।’
नागर जी ने कहानी, उपन्यास, नाटक तो लिखे ही साथ ही हिंदी रंगमंच के प्रति उनका लगाव भी समय-समय पर सामने आता रहा। इसे ध्यान में रखते हुए पत्रिका में उनके रंगकर्म पर भी विवेचन प्रस्तुत किया गया है। वहीं डॉ. नगेंद्र के लेखन, संपादन के साथ उनके व्यक्तित्व पर आचार्य विश्वनाथ त्रिपाठी और डॉ. रमानाथ त्रिपाठी ने अपने आलेखों में प्रकाश डालने की कोशिश की हैं। अपने सीमित दायरे के बावजूद पत्रिका में हिंदी दिवस को याद करते हुए अमृतलाल नागर का जीवनवृत्त और डॉ. नगेंद्र की पुस्तकों की संक्षिप्त जानकारी भी अंतिम पृष्ठों में दी गई है। इसके अलावा ‘बनारस और बिस्मिल्लाह’ के बहाने शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा और कथक पर पं. जयकिशन महाराज से हुई बातचीत इस अंक के आकर्षण कहे जा सकते हैं।
अपनी विशिष्ट सामग्री व साहित्य, कला आदि को पत्रिका में उचित स्थान देकर पत्रिका अपनी ईमानदार सहभागिता निभाती आ रही है। ऐसे में कहा जा सकता है कि पत्रिका के इस अंक में भी साहित्य और लेखन की दो महान विभूतियों के व्यक्तित्व पर एक पठनीय सामग्री का समावेश किया गया है और पत्रिका पाठको को साहित्य का अनुशीलन करने के लिए प्रेरित करती नजर आती है।