मिशन 2019: बीएसपी-एसपी का खाका तैयार

लखनऊ। यूपी की 80 सीटों के लिए सपा-बसपा के बीच समझौते का खाका और संभावित उम्मीदवारों की सूची तैयार हो गई है। बसपा अध्यक्ष को प्रधानमंत्री और सपा अध्यक्ष को 2022 में यूपी का मुख्यमंत्री पद चाहिए। इस फार्मूले के आधार पर बसपा प्रदेश की आधी से अधिक सीटों पर चुनाव लडऩा चाहती है। समझौते के लिए 2014 लोकसभा के साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में दोनों दलों को मिले वोट को ध्यान में रखा गया है। रालोद और कांग्रेस को साथ लेने की गुंजाइश भी रखी जा रही है। मौजूदा फार्मूले में रालोद को 3 और कांग्रेस को 8 से अधिक सीटें मिलने की उम्मीद कम है। यह सीटें सपा को अपने कोटे से देनी होंगी।
यूपी के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के दौरान जिस तरह से मायावती ने सपा को समर्थन देकर चौंकाया था। सपा-बसपा गठबंधन में सीटों की घोषणा भी चौकाने वाली होगी। सूत्रों का कहना है कि दोनों दलों के प्रबंधक प्रदेश की एक-एक लोकसभा सीट पर उम्मीदवारों और जातीय समीकरण का विश्लेषण पूरा कर चुके है। सपा कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के पक्ष में नही है। जबकि बसपा देश के दूसरे राज्यों में कांग्रेस के साथ तालमेल की गुंजाइश पर भी काम कर रही है। हलांकि कांग्रेस के बड़े नेताओं का एक गुट उप्र में बसपा-कांग्रेस के तालमेल की संभावना पर भी काम कर रहा है। जबकि सपा का एक फार्मूला और है, जिसमें सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को शामिल करने के पक्ष में नही है। इनका मानना है कि कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली के अलावा और कोई सीट न दी जाए। सपा-बसपा की जीत को अंतत: लाभ यूपीए गठबंधन को ही होना है। जबकि भाजपा नेतृत्व की एनडीए सरकार को सत्ता से बाहर करने की रणनीति बनाने में जुटे दलित चिंतक चाहते है बसपा उप्र में 45 से 50 सीटों पर चुनाव लड़े। देश के दूसरे हिस्सों में कांग्रेस के साथ तालमेल कर कुछ सीटें और हांसिल कर ले तो प्रधानमंत्री पद पर दावा ठोंका जा सकता है। भाजपा को हराने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा को सीटों में बड़ा हिस्सा देने को तैयार हैं। अखिलेश का कहना रहा है कि वह गठजोड़ की मजबूती के लिए पीछे हट कर बसपा को सम्मान देंगें। राजनीतिक विश्लेषक ज्ञानेंद्र शर्मा का कहना है कि उप्र के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस बठबंधन नाकाम रहा है। बसपा-सपा का गठबंधन तभी कारगर होगा जब पार्टी के कार्यकर्ता ईमानदारी से एक दूसरे की मदद करें। 2019 में मोदी सरकार के खिलाफ सत्ताविरोधी रूझान का भी सामना करना होगा, जो गठबंधन के पक्ष में होगा।