मार्च में बनेगी कांग्रेस-सपा-बसपा की तिकड़ी

विजय दीक्षित। नरेन्द्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी को खबर लगी है कि चुनाव अधिसूचना जारी होते ही मायावती-अखिलेश यादव महागठबंधन में कांग्रेस को भी जोड़ा जा रहा है। इसी के बाद बीजेपी कैंप में परेशानी बढ़ी है और इसकी काट अभी से निकालने का अंदरूनी काम प्रारंभ हो चुका है। खबर है कि मायावती और अखिलेश यादव अपने तय कोटे से नौ-नौ सीटें देने को तैयार हैं और डेढ़ दर्जन सीटें मिलने के बाद सम्पूर्ण विपक्ष बीजेपी से सीधे टक्कर लेगा। अखिलेश यादव अपने कोटे से चार सीट आरएलडी को देकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा की स्थिति को मजबूत करने का मन पहले ही बना चुके हैं। यदि ऐसा होता है तो इसका असर बिहार एवं हिन्दी भाषी राज्यों पर पडऩा तय है और अमित शाह संभावित नुकसान से बचने की कोशिश में लगे बताये जा रहे हैं। कहते हैं कि मायावती को इस नये महागठबंधन के लिए मना लिया गया है और इसकी घोषणा शायद मार्च के पहले पखवाड़े में हो सकती है।
ताजा स्थिति यही है कि यूपी की 80 संसदीय सीटों में सपा-बसपा ने बराबरी पर समझौता किया है जिसके तहत अमेठी एवं रायबरेली की दो सीटों को कांग्रेस के लिए तथा इतनी ही सीट अजित सिंह के लिए छोड़ कर 38-38 सीटों पर लडऩे का एलान लखनऊ में किया गया। बाद में दो और सीटें अजित सिंह के खाते में डाली गयीं और तय हुआ कि सपा के चुनाव चिह्नï पर एक सीट तथा रालोद के चुनाव चिह्नï पर तीन सीट अजित सिंह खेमा लड़ेगा। इस लिहाज से मायावती ने दो सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी और 38 सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों को फाइनल करना शुरू किया। जबकि अखिलेश यादव रालोद को चार सीट देकर 36 सीट के लिए तैयारी कर रहे थे।
प्रियंका गांधी के कांग्रेस की राजनीति में प्रवेश और उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाने के साथ ही पार्टी का महासचिव बनाने का फैसला ही कहते हैं दबाव का कारक बन रहा है और तभी सपा-बसपा महागठबंधन को कांग्रेस से समझौते का रास्ता निकालने के लिए विवश होना पड़ा। पेंच केवल दो सीटों को लेकर फंसा है। कांग्रेस दो और सीटें चाह रही है और राहुल गांधी चाहते हैं कि कांग्रेस के खाते में 18 के बजाये 20 सीट आये क्योंकि कांग्रेस अपने से जुड़े अथवा जुडऩे वाले दलों को दो सीटें देकर सम्पूर्ण विपक्ष को नरेन्द्र मोदी विरोधी छतरी के नीचे लाना चाहती है। कहते हैं कि कांग्रेस यह भी चाहती है फिरोजाबाद की सीट शिवपाल सिंह यादव के लिए सुरक्षित रखना चाहती है। यही पेंच का मुख्य बिंदु है और कहते हैं कि इसके लिए अखिलेश को राजी करने का काम तेज हो गया है।
कांग्रेस शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति बना चुकी है। तो ओम प्रकाश राजभर जो यूपी में योगी सरकार के कैबिनेट मिनिस्टिर भी हैं, की पार्टी अथवा इसी तरह की पार्टी को अपने साथ जोड़कर पूर्वी उत्तर प्रदेश में राजभरों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाह रही है। शिवपाल सिंह यादव की पार्टी के साथ जुड़े हुए छोटे-छोटे दल जिनकी संख्या दो दर्जन के करीब है, शिवपाल के कांग्रेस के साथ गठबंधन होते ही एक बड़ी ताकत बनकर सामने आ सकते हैं, ऐसी सोच तटस्थ राजनीतिज्ञों की है।
यदि इस तरह का सभी दलों आपसी गठबंधन हो जाता है तो उससे पहले उसे तोडऩे का इंतजाम भी इन्हीं दलों के कुछ नेता अंदर ही अंदर कर सकते हैं। अखिलेश और शिवपाल सिंह यादव के बीच बढ़ी दूरी तथा कटुता समाप्त करने की जिम्मेदारी शायद राहुल-प्रियंका गांधी ही कर सक ते हैं और कहते हैं कि यह कोशिश प्रारंभ हो चुकी है। ऐसे में विपक्ष के वोटों का बिखराव रुक जाता है तो बीजेपी के लिए यूपी से दो दर्जन सीट पाने में दिक्कत हो सकती है। यही वजह है कि बीजेपी चुनाव को
विपक्ष की तरह युद्ध स्तर पर ले रही है। जिससे वह अपना प्रदर्शन बेहतर कर सके और ज्यादा सीटें हासिल कर सके। इसी रणनीति के तहत यूपी के अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण का कार्य राम नवमी से पहले प्रारंभ कराने पर विचार मंथन का दौर संघ परिवार में जारी है। ऐसा होता है तो संभव है कि जाति की दीवार टूटेगी और आस्था आधार बनकर बीजेपी को उसका लक्ष्य हासिल करा देगी।