अखाड़ा बना अयोध्या

विशेष संवाददाता। अयोध्या एक बार फिर अखाड़ा बनने वाला है। दिव्य कुंभ-भव्य कुंभ के बाद अयोध्या में राम मंदिर निमार्ण के नाम पर साधु-संतों तथा शंकराचार्यों का जमावड़ा फरवरी माह में लगना है और अयोध्या ही देश की राजनीति नये सिरे से बदलेगी। यदि सुप्रीम कोर्ट में विवादित राम जन्म भूमि मसला तय होने में विलम्ब होता है तो माना जा रहा है अयोध्या कार्ड खेलने में बीजेपी कतई नहीं हिचकिचायेगी। यह कार्ड भी फरवरी माह के पहले पखवारे या दूसरे पखवारे के पहले हफ्ते के मध्य खेला जा सकता है। संघ परिवार हिन्दू कार्ड खेलकर ही दिल्ली की सत्ता को पुन: प्राप्त कर सकता है।
हिन्दू कार्ड खेलने से सपा-बसपा महागठबंधन को काफी झटका लग सकता है। सपा-बसपा के पिछड़े एवं दलित वोट बैंक पर बीजेपी की नजर है और सवर्ण वोट बैंक को कांग्रेस की तरफ जाने से रोका जा सकता है। बीजेपी को मन ही मन यह डर सता रहा है कि सवर्ण वोट विशेषकर ब्राह्मïण मतदाताओं को प्रियंका गांधी कांग्रेस की तरफ आकर्षित कर सकती हैं। इसी तरह ठाकुर मतदाता ज्योतिरादित्य सिंधिया के चलते जातीय गोलबंदी में लाये जा सकते हैं। इस समय योगी आदित्यनाथ बीजेपी के सर्वेसर्वा यूपी में हैं और क्षत्रिय वर्ग के हैं तथा इस वर्ग का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ है।
ऐसे में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का काम जल्द से जल्द आरम्भ कराने का लाभ बीजेपी को मिल सकता है। इन्हीं सब बातों को भांपने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कानपुर में अपना डेरा डाला। सभी प्रांत प्रचारकों को बुलाकर रायशुमारी की और यह भी जानने की कोशिश की कि कांग्रेस समर्थक समझे जाने वाले जगदगुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती यदि 10 फरवरी के बाद राम मंदिर शिलान्यास का कार्यक्रम आरम्भ करते हैं तो उससे कैसे निपटा जा सकता है। क्या 10 फरवरी के पहले हिन्दू कार्ड खेला जा सकता है और उसका स्वरूप किस तरह होगा।
अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का रास्ता सुप्रीम कोर्ट निकाल सकता है या उसके लिए अध्यादेश लाया जा सकता है अथवा संसद में बिल लाकर कानून बनाया जा सकता है, को लेकर ही संघ परिवार में गंभीर चर्चा हुई। मंथन में क्या निकला, अभी स्पष्टï नहीं है। लेकिन द्वारिका के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने स्पष्टï कर दिया है कि राम मंदिर का निर्माण न तो सरकार करा सकती है और न ही कोई पार्टी करा सकती है। यह सभी लोग झूठे दावे कर रहे हैं क्योंकि मामला संविधान से जुड़ा है और कोर्ट में है। शंकराचार्य का कथन था कि राम मंदिर का निर्माण हम साधु-संत ही करेंगे। बसंत पंचमी के दिन 10 फरवरी को प्रयागराज में होने वाले कुंभ स्नान के बाद उनके सहित देश के तमाम स्थानों से साधु-संत अयोध्या पहुंचकर विवादित स्थल पर राम मंदिर का शिलान्यास करेंगे।
अयोध्या राम मंदिर निर्माण को लेकर तुरूप का पत्ता आखिरकार शंकराचार्य ने खोल दिया है। संभव है कि कांग्रेस के प्रमुख राहुल-प्रियंका गांधी से बात करके ही उन्होंने यह कदम उठाया और अगला कदम कांग्रेस की ओर से कभी भी आ जाना है। इंतजार अब बीजेपी की ओर से है। राहुल-प्रियंका के पिता स्वर्गीय राजीव गांधी ने ही तत्कालीन सीएम नारायण दत्त तिवारी की मौजूदगी में शिलान्यास किया था और उससे पहले कांग्रेस के ही जमाने में राम मंदिर का ताला खुलवाने का आदेश हुआ था। शायद इसी पक्ष को कांग्रेस जोर शोर से उठाकर बीजेपी एवं संघ परिवार को घेरने की कोशिश कर सकती है। वैसे यह मुद्दा-एजेंडा विश्व हिन्दू परिषद के पास तब चला गया जब राम शिलालेख लाने का कार्यक्रम देशव्यापी स्तर पर प्रारम्भ हुआ था।
दरअसल, वर्ष 1528 में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था। वर्ष 1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ। हिन्दू और मुस्लिम वर्ग के बीच विवाद बढ़ाने की दृष्टिï से वर्ष 1859 में अंग्रेजों ने पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा। इसी के बाद विवाद की चर्चा देश भर में होने लगी।
आजादी के बाद वर्ष 1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया। वर्ष 1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया और मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित कर ली। वर्ष 1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी
जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की थी और तभी तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने वहां जाकर पूजा अर्चना की। इसी के बाद मुस्लिम वर्ग का बड़ा हिस्सा कांग्रेस से खफा हो गया। वर्ष 1991 में विहिप व बीजेपी ने अयोध्या कूच करने को कहा तब मुलायम सिंह यादव सरकार के जमाने में सरयू नदी का जल में भी खून बहा और तमाम लोग की मौत हो गयी।
अयोध्या के राम मंदिर की असली लड़ाई राजनीतिक रंग में तब रंगी जब बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा प्रारम्भ हुई और लालू यादव सरकार ने इसे बिहार में रोक दिया। इसी के बाद ही 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं। विवादित ढांचे को गिराने में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का प्रमुख रोल माना जाता है और कोठारी बंधुओं सहित कई की जान तब चल गयी थी। उसके दस दिन बाद 16 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
आयोग को16 मार्च 1993 को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगाए तो 30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा। जांच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया। इसके बाद 31 मार्च 2009 को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने अर्थात् 30 जून तक के लिए बढ़ा गया।
वर्ष 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उच्चतम न्यायालय ने 7 वर्ष बाद निर्णय लिया कि 11 अगस्त 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और 70 वर्ष बाद 30 मार्च 1946 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि 5 दिसंबर 2017 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी। अब सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि 29 जनवरी 2019 से पांच सदस्यीय बेंच सुनवाई करेगी।
यही वजह है कि शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के प्रयागराज में आयोजित साधु-संतों के तीन दिवसीय सम्मेलन के बाद विश्व हिन्दू परिषद का सम्मेलन रखा गया। मोहन भागवत से लेकर नरेन्द्र मोदी इस बात के पक्षधर थे कि वहां पर राम मंदिर का निर्माण हो और आने वाली बाधाओं को दूर किया जाये। अब अयोध्या के राम मंदिर का मामला प्रयागराज के बाद अयोध्या में निर्णायक रुख ले सकता है। वोटबैंक की राजनीति इसके पीछे है और उससे भी बड़ी बात यह है कि यह करोड़ों हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा मामला है। ऐसे में लोकसभा का चुनाव काफी हद तक रामलला ही प्रभावित करेंगे, ऐसी सोच तटस्थ राजनीतिक विश्लेषकों की है।