175 वर्षो के रेलवे इतिहास को बदलने की तैयारी

डॉ अजय कुमार मिश्रा। वर्ष 1845 से लगातार बिना रुके, बिना थके, जनता के लिए कार्यरत, भारतीय रेल, अब अपना वजूद बचाने के लिए निजीकरण की राह पर आ गयी है जिसकी सधी शुरुआत कुछ वर्षो पहले ही की जा चुकी है । वित्तीय वर्ष 2018-19 के आकड़ो के अनुसार, 12.30 लाख कर्मचारी, 1,23,542 किलोमीटर की लम्बाई का कुल ट्रैक, 1,97,214 करोड़ का राजस्व, 6014 करोड़ की शुद्ध आय । 8 जोन के माध्यम से, यात्री रेलवे, माल ढ़ुलाई सेवायें, पार्सल वाहक, खान-पान एवं पर्यटन सेवाएँ, पार्किंग संचालन सहित अन्य सेवाओ में कार्यरत, रेलवे के निजीकरण से सरकार की ने केवल अप्रत्याशित लाभ मिलेगा, साथ ही बेहतर सुविधाओं के नाम पर देश की आबादी के बड़े हिस्से के लोगो की जेब पर भारी वजन भी बढऩा तय है । भारतीय रेल जिन्हें हम सभी देश की जीवन रेखा के नाम से जानते है लोगो की यात्रा का प्रमुख और किफायती साधन के साथ लोगो की जरुरतो की पूर्ति में भी, मॉल गाड़ी के जरिये, व्यापक योगदान देती है । परिस्थितियां कैसी भी हो भारतीय रेल लोगो के लिए हमेशा कार्यरत रही है । कोरोनावायरस की इस महामारी में श्रमिको, मजदूरो, प्रवासियों को घर-घर पहुचाने का सराहनीय कार्य सिर्फ रेलवे की वजह से ही संभव हो पाया है । रेलवे के निजीकरण की घोषणा ने भारत-चीन सीमा विवाद, कोरोना वायरस संक्रमण जैसे बड़े मुद्दों के बावजूद राजनीतिक माहौल को और अधिक गरम कर दिया है । दुनियां की चौथी सबसे बड़ी रेलवे ट्रैक भारत की है । अमेरिका, चीन, रूस देश भारत से आगे है । आज अपना वजूद बचाने के लिए संघर्षरत दिख रही है ।
रेलवे ने चलने वाली कुल ट्रेनों में से 5 फीसदी ट्रेनों के संचालन के लिए पात्रता आवेदन निजी कम्पनियों से मांगे हैं । इसके तहत 109 मार्गो पर 151 अत्याधुनिक यात्री ट्रेन 35 वर्ष की अवधि के लिए, निजी कम्पनियाँ अप्रैल 2023 से चला सकेगी । संचालन के लिए चुनी गयी कम्पनियो को रेलवे को फिक्स्ड हालेज चार्ज, एनेर्जी चार्ज और ग्रॉस रेवेन्यु का निश्चित हिस्स देना होगा । इसके लिए निजी क्षेत्र को तीस हजार करोड़ रूपये निवेश करने पड़ेगे । निजीकरण करने के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है की इससे रेलवे में नई तकनीक आयेगी, मरम्मत खर्च कम पड़ेगा, ट्रेन के यात्रा की अवधि कम होगी, रोजगार को बढ़ावा मिलेगा, और यात्रियों को विश्वस्तर की सुविधाएँ प्रदान की जाएगी । रेलवे का यह भी कहना है की इन रेलमार्गो पर यात्रा किराया, हवाई यात्रा किराये के अनुरूप प्रतिस्पर्धी होगा । प्रौद्योगिकी के बेहतर होने से रेलगाड़ी के जिन कोचों को अभी हर 4,000
किलोमीटर की यात्रा के बाद रख-रखाव की जरूरत होती है तब यह सीमा करीब 40,000 किलोमीटर हो जाएगी । यानि की उनका महीने में एक या दो बार ही रखरखाव करना होगा । भारतीय रेल अभी करीब 2,800 मेल या एक्सप्रेस रेलगाडिय़ों का परिचालन करती है ।
निजीकरण का यह प्रयास पहली बार नही किया जा रहा है बल्कि यात्री ट्रेन ऑपरेशन का निजीकरण करने का प्रयास रेलवे पहले भी कर चुका है । आईआरसीटीसी ने अपनी विशेष पर्यटन रेलगाडिय़ों को निजी कंपनियों को देने की कोशिश की थी, जो कामयाब नही रही, महाराजा एक्सप्रेस को निजी कंपनी को संचालन के लिए दिया गया था लेकिन बाद में रेलवे को ख़ुद ही उसे चलाना पड़ा । रेलवे की निजी कम्पनी आईआरसीटीसी शेयर मार्केट में भी लिस्टेड है एवं रेलवे में केटरिंग इसी के हाथ में है । निजीकरण के इसी मॉडल पर आईआरसीटीसी तीन रूटों पर एक्सप्रेस ट्रेन चला रही है । दिल्ली-लखनऊ के बीच तेजस एक्सप्रेस, मुंबई-अहमदाबाद के बीच तेजस एक्सप्रेस और दिल्ली-वाराणसी के बीच महाकाल एक्सप्रेस । निजीकरण के कई फायदे जरुर हो सकते है पर किराये में वृद्धि का भार आम जनता में ही पडऩा तय है । इसका जीवंत उदहारण दिल्ली से लखनऊ के बीच चलने वाली तेजस एक्सप्रेस का किराया इसी रूट पर चलने वाली राजधानी एक्सप्रेस से कही ज़्यादा है । रेलवे के बजट को आम बजट में शामिल करना निजीकरण को बढ़ावा देने की शुरुआत भी माना जा रहा है ।
प्रमुख वेबसाइट स्टेटिस्टा के अनुसार भारत में रेलवे यात्री भीड़ वित्तीय वर्ष 2010-11 में 7.24 थी जो वित्तीय वर्ष 2019-20 बढक़र 8.44 हो गयी । ये आकड़े इस बात की पुष्टि करते है की आम आदमी की जीवन रेखा रेलवे है । 175 वर्षो के रेलवे के इतिहास में निजीकरण की बात को कभी महत्व नहीं दिया गया वजह रेलवे सामाजिक दायित्व का एक अति महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके जरिये आम आदमी की कई जरूरते पूरी होती है । निजी कम्पनी आती है और पैसा लगाती है, आपको वैश्विक स्तर की सुविधाएँ प्रदान करती है तो उसकी पूर्ति वह किराये के माध्यम से ही पूरा करेगी जिसका असर आम जनता पर पड़ेगा । रेलवे यात्री टिकट पर 43 फीसदी सब्सिडी यात्रियों को मिलती है । निजी कम्पनियों के संचालन करने पर, किराये में वृद्धि के साथ-साथ सब्सिडी भी समाप्त हो जाएगी ऐसे में आम आदमी पर दोहरी मार पड़ेगी । सब्सिडी समाप्त होने पर फ्लाइट के बराबर फस्र्ट एसी का किराया होने की सम्भावना है 7 रेलवे को यात्री किराये में सब्सिडी से करीब 30 हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ता है । सरकार को यह भी सोचना चाहिए की देश के करोड़ो किसानो ने रेलवे को ट्रैक बिछाने के लिए अपनी जमीन मुफ्त में सरकार को दिया था । क्या अधिकांश आबादी विश्व स्तर की सुविधा का मूल्य चूका पायेगी ?किसी भी देश की सरकार जनता के लिए होती है और जनता का हित सरकार के लिए सर्वोपरी होता है इसी उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अनेको सामाजिक योजनाए चलायी जाती है । कई कार्य बड़े घाटे होने के बावजूद सरकार करती है । किसी भी देश की सरकार का कार्य, आय और खर्च का नियन्त्रण निजी कम्पनियों की तरह करना नहीं हो सकता । एक तरफ जहाँ निजी कंपनिया लाभ कमाने के उद्देश्य से कार्य करती है वही सरकार सामाजिक सरोकार की पूर्ति हेतु कार्य करती है। अर्थव्यस्था को मजबूती भी तभी मिल सकती है जब की जमीनी आवश्यकताओं का मूल्य आम आदमी के पॉकेट के अनुरूप हो। जब सरकार की कमाई होती है तो वो पैसा देश के विकास में लगता है। स्कूल खुलते हैं, स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होती हैं, लेकिन जब रेलवे की कमाई निजी हाथों में जाएगी तो ये पैसा जनहित में लगने के बजाय निजी कम्पनियों के उद्देश्यों की पूर्ति में काम आयेगा। आम आदमी पर भार अलग से। आपदा काल में क्या सरकार निजी कम्पनियों द्वारा संचालित ट्रेन का उपयोग कर पायेगी यह भी एक बिचारानीय प्रश्न है।
विभिन्न सामाजिक संगठनों, विपक्ष पार्टियों और विचारवादी लोगो का मत है की रेलवे का निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए। यदि सरकार रेलवे को बेहतर ढंग से नहीं चला सकती तो निजी कम्पनिया कैसे चला सकती है। रेलवे की निजी कम्पनी आईआरसीटीसी की सेवाए कितनी प्रभावशाली है यह सभी के प्रकाश में है । जिन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु निजी कंपनियों को संचालन की जिम्मेदारी दी जा रही है उसकी पूर्ति सरकार के नियन्त्रण में भी हो सकती। श्रम संगठनों के संघ सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) ने सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन की धमकी देते हुए कहा है कि वह मोदी सरकार के इस फ़ैसले का विरोध करते हैं। सीटू ने कहा है कि सरकार ने इस फ़ैसले के लिए लॉकडाउन का समय चुना है जो सरकार की सोच को दर्शाता है। विगत कुछ वर्षो में कई क्षेत्रो का निजीकरण किया गया है और कई क्षेत्र निजीकरण की राह पर है। ऐसे में लोगो का भरोसा न केवल सरकार पर कम होता है बल्कि लोग यह भी सोचने पर विवश होते है की उनकी सुनने वाला कौन है। यदि रेलवे का निजीकरण अपने वास्तविक स्वरुप में आता है तो सरकार के खजाने में वृद्धि स्वाभाविक है होगी पर वह भी आम जनता की अपनी मेहनत की कमाई की लागत से। सामाजिक सरोकार को इस तरह के निर्णय व्यापक रूप से प्रभावित करेगे और आम जनता के हितो पर विपरीत रूप से प्रभाव भी पडऩा तय है।