सर्वभय व सर्वरोग नाशक देव चिकित्सक आरोग्यदेव धन्वंतरि

अशोक प्रवृद्ध। आयुर्वेद जगत के प्रणेता तथा वैद्यक शास्त्र के देवता भगवान धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देव हैं।सर्वभय व सर्वरोग नाशक देवचिकित्सक आरोग्यदेव धन्वंतरि प्राचीन भारत के एक महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पदप्राप्त हुआ था । पौराणिक व धार्मिक मान्यतानुसार भगवान विष्णु के अवतार समझे जाने वाले धन्वन्तरी का पृथ्वी लोकमें अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी कोधन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। धन्वन्तरी नेइसी दिन आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था । इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व कार्तिक त्रयोदशी धनतेरस को आदिप्रणेता, जीवों के जीवन की रक्षा , स्वास्थ्य , स्वस्थ जीवन शैली के प्रदाता के रूप में प्रतिष्ठित तथा विष्णु के अवतार केरूप में पूज्य ऋषि धन्वन्तरी का अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है और आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता भगवान धन्वंतरि का धन्वंतरये नम: आदि मन्त्रों से प्रार्थना की जाती है कि वे समस्त जगत को निरोग करमानव समाज को दीर्घायुष्य प्रदान करें। पुरातन धर्मग्रन्थों के अनुसार देवताओं के वैद्य धन्वन्तरी की चार भुजायें हैं। उपरकी दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरेमे अमृत कलश लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि अष्टधातु के बर्तनखरीदने की परंपरा प्राचीन काल से कायम है। आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य के देवता धन्वन्तरी ने हीअमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने शल्य चिकित्सा का विश्व का पहला विद्यालयकाशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत नियुक्त किये गए थे। सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्रके पुत्र थे, जिन्होंने सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत विश्व के प्रथम शल्य चिकित्सक अर्थात सर्जन थे। कहा जाता है किशंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गयी।रामायण, महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद भागवत महापुराण आदि पुराणों और संस्कृत के अनेक ग्रन्थों मेंआयुर्वेदावतरण के प्रसंग में भगवान धन्वंतरि का उल्लेख प्राप्य है। आयुर्वेद के आदि ग्रन्थों सुश्रुत्र संहिता चरक संहिता,काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय में विभिन्न रूपों में धन्वंतरि का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त अन्य आयुर्वेदिकग्रन्थों भाव प्रकाश, शार्गधर तथा उनके ही समकालीन अन्य ग्रन्थों में आयुर्वेदावतरण के उधृत प्रसंगों में धन्वंतरि के संबंधमें भी प्रकाश डाला गया है। कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास रचित श्रीमद भागवत पुराण में धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंशमाना गया है तथा अवतारों में अवतार कहा गया है। गरुड़ और मार्कंडेय पुराणों के अनुसार वेद मंत्रों से अभिमंत्रित होने केकारण वे वैद्य कहलाए। विष्णु पुराण में धन्वन्तरि दीर्घतथा का पुत्र बतलाते हुए कहा गया है कि धन्वंतरि जरा विकारों सेरहित देह और इंद्रियों वाला तथा सभी जन्मों में सर्वशास्त्र ज्ञाता है। भगवान नारायण ने उन्हें पूर्व जन्म में यह वरदानदिया था कि काशिराज के वंश में उत्पन्न होकर आयुर्वेद के आठ भाग करोगे और यज्ञ भाग के भोक्ता बनोगे। इस प्रकारधन्वंतरि की तीन रूपों में उल्लेख मिलता है – समुद्र मन्थन से उत्पन्न धन्वंतरि प्रथम, धन्व के पुत्र धन्वंतरि द्वितीय औरकाशिराज दिवोदास धन्वंतरि तृतीय। भगवान धन्वंतरि प्रथम तथा द्वितीय का उल्लेख पुराणों के अतिरिक्त आयुर्वेद ग्रन्थोंमें भी कहीं-कहीं मिलता है।