शासनादेशों की अवमानना के कारण हो रहा प्राधिकरण कर्मचारियों का शोषण

श्यामल मुखर्जी/दिनेश शर्मा, गाजियाबाद। उत्तर प्रदेश के सबसे पुराने प्राधिकरण गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में कनिष्ठ वर्ग प्राविधिक पदों में वेतन विसंगति एवं शासन आदेश की अवमानना के कारण कर्मचारियों का जबरदस्त शोषण हो रहा है। ऐसा मानना है वरिष्ठ नागरिक/ सामाजिक कार्यकर्ता श्री एमपी शर्मा का जो कि उत्तर प्रदेश विकास प्राधिकरण सेवानिवृत्त कर्मचारी संगठन के प्रांतीय अध्यक्ष भी हैं। श्री एमपी शर्मा ने दिनांक- 01:10 2019 को मुख्यमंत्री,उत्तर प्रदेश शासन को इस संबंध में पत्र प्रेषित किया था जो कि मा0मुख्यमंत्री लोक शिकायत विभाग पोर्टल पर शिकायत संदर्भ संख्या 15140190111902 पर दर्ज है। उक्त शिकायत प्रमुख सचिव, आवास एवं शहरी नियोजन विभाग द्वारा उपाध्यक्ष गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को अंतरित की गई थी, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा जारी पत्र में यह उल्लेख किया गया है कि गठित छठे वेतन आयोग (वेतन समिति) द्वारा बारहवें प्रतिवेदन में स्थानीय निकायों के सामान्य कोटि के पदों के साथ-साथ कनिष्ठ वर्ग के प्राविधिक पदों में वर्क सुपरवाइजर के पद का स्पष्ट उल्लेख है और ग्रेड -पे रु0 1900/- को अपग्रेड करते हुए ग्रेड-पे रू0 2800/- स्वीकृत किया गया है। वित्त (वेतन आयोग) अनुभाग-2 के शासनादेश संख्या वे0आ0-2-306ए/10-54(एम)/2008/टी0सी0 दिनांक 31.05.2013 के माध्यम से उक्त संस्तुतियों को लागू करने के शासनादेश जारी किए गए हैं परंतु आवास एवं शहरी नियोजन विभाग द्वारा कोई शासनादेश अभी तक जारी नहीं किया गया है। आवास अनुभाग द्वारा पूर्व में जारी शासनादेश के अनुसार उन्हें वेतनमान दिया जा रहा है। प्राधिकरण ने यह कहते हुए गेंद शासन के पाले में डाल दी कि इनके प्रार्थना पत्र पर कार्रवाई आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ द्वारा की जानी है तथा प्रकरण को निक्षेपित करा दिया जबकि संदर्भ का उद्देश्य जस का तस ही है जिस पर प्रमुख सचिव,आवास एवं शहरी नियोजन विभाग उत्तर प्रदेश शासन स्तर से समुचित निर्णय लेते हुए शासनादेश जारी किया जाना था तदोपरांत ही संदर्भ का उद्देश्य पूर्ण हो पाता। श्री एमपी शर्मा ने दूसरा प्रकरण उठाते हुए लिखा कि शासनादेश संख्या 1726/33-2-1988 दिनांक: 9 मार्च 1983 प्रदेश के विकास प्राधिकरण की कार्यप्रणाली में सुधार व एकरूपता के आदेश में उल्लेखित है कि प्रदेश के विकास प्राधिकरण के कार्यों व कार्यप्रणाली में सुधार तथा एकरूपता लाने के उद्देश्य से श्री राज्यपाल उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम 1973 की धारा 4 के अधीन यह निर्देश दिए गए हैं कि तत्काल प्रभाव से उक्त आदेशों में 11 बिंदुओं पर दिशा निर्देश दिए गए हैं जिसमें प्राधिकरण में पदों का सृजन, प्राधिकरण के अधीन समस्त पदों पर नियुक्ति,चयन/प्रोन्नति एवं वर्कचार्ज कर्मचारियों की भर्ती आदि की प्रक्रिया निर्धारित की गई है। लेकिन प्रदेश के समस्त विकास प्राधिकरण की एकरूपता तो दूर स्थानीय प्राधिकरण में ही एकरूपता नहीं है जिसका उदाहरण है कि वेतन समिति के बारे में प्रतिवेदन के आलोक में वित्त विभाग द्वारा जारी शासनादेश दिनांक 31 मार्च 2013 को अंगीकार करते हुए अधिकांश पदों के शासनादेश जारी कर दिए गए हैं लेकिन कनिष्ठ वर्ग के प्राविधिक पदों के लिए शासनादेश जारी नहीं किया गया है। तीसरा बिंदु उठाते हुए श्री एमपी शर्मा ने लिखा कि शासनादेश संख्या : वे0आ0-2983/दस- स्था0 नि0-3-80 लखनऊ दिनांक 18 अक्टूबर 1989 “संकल्प” में स्थानीय निकाय, जिला परिषद,जल संस्थान एवं विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों से संबंधित समता समिति (1989) का प्रतिवेदन खंड- 2 का पैरा-2 में निम्न वत स्पष्ट उल्लेख है कि प्रतिवेदन के प्रस्तर -4.14 के प्रस्तर (3) की संस्तुतियां स्वीकार है किंतु उप प्रस्तर (2) संस्तुति को केवल इस कारण कि वेतन मान बराबर करना है,अर्हता बढ़ाने का औचित्य नहीं है । किसी पद की अर्हता निर्धारित करते समय पद के कार्य एवं प्रकृति तथा उत्तरदायित्व आदि को देखना होता है। उपप्रस्तर (1) के अंतर्गत सेनेटरी एंड फूड इंस्पेक्टर को छोडक़र शेष पदों की समकक्षता स्वीकार है लेकिन उक्त शासनादेश के अनुसार भी कनिष्ठ वर्ग के प्राविधिक पदों की उपेक्षा ही हो रही है। राज्य कर्मचारियों पर लागू वेतनमान का लाभ आज दिनांक तक भी नहीं मिला है और वेतन विसंगति यथावत बनी हुई है।