सुप्रीम कोर्ट ने दिया अध्यादेश लाने वाली यूपी सरकार को नोटिस

दिनेश शर्मा, गाजियाबाद। वर्क चार्ज सेवा से स्थाई हुए 12 कर्मचारियों ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ ही अध्यादेश ले आया गया था। उस अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पेंशन अध्यादेश- 2020 को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने अध्यादेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग पर भी नोटिस जारी किया है। याचिका में अध्यादेश निरस्त करने की मांग भी की गई है। वर्क चार्ज कर्मचारी के तौर पर की गई सेवा को पेंशन के लिए कुल सेवा अवधि में शामिल किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के 2 सितंबर 2019 के फैसले को भी लागू करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि अध्यादेश के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला जबरन कर्मचारी हितों पर कुठाराघात करते हुए निष्प्रभावी कर दिया गया है क्योंकि अध्यादेश में वर्क चार्ज के तौर पर किए गए काम की अवधि को पेंशन पाने की सेवा अवधि में नहीं शामिल किया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पेंशन के लिए क्वालीफाइंग सर्विस के बारे में 21 अक्टूबर 2020 को नया अध्यादेश जारी किया। इसे उत्तर प्रदेश क्वालीफाइंग सर्विस फॉर पेंशन एंड वैलिडेशन ऑर्डिनेंस कहा गया है। इस अध्यादेश के बाद से जिन याचिकाकर्ताओं (नारायण दत्त शर्मा व अन्य) को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर वर्क चार्ज सेवा अवधि को जोडक़र पेंशन मिलनी शुरू हो गई थी उनकी पेंशन भी रोक ली गई है। न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर व न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने 27 जनवरी को याचिकाकर्ताओं (नारायण दत्त शर्मा व अन्य) के वकील डीके गर्ग व धनंजय गर्ग की दलीलें सुनने के बाद याचिका पर जवाब देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया। इससे पहले डीके गर्ग ने याचिका पर बहस करते हुए कहा कि नए पेंशन अध्यादेश से उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का ही 2 सितंबर 2019 का फैसला निष्प्रभावी कर दिया है। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वर्क चार्ज के तौर पर की गई सेवा को पेंशन के लिए जरूरी सेवा वर्षों की गिनती में शामिल किया जाएगा। उस फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई थी और क्यूरेटिव याचिका सरकार ने वापस ले ली थी। भाजपा सरकार के विरुद्ध सरकारी कर्मचारियों में घोर असंतोष है। कर्मचारियों का मानना है कि जब भी भाजपा शासन में आती है तो कर्मचारियों के अधिकार और हितों का हरण करती है। भाजपा शासकों को सांसदों व विधायकों को दिया जाने वाला वेतन/पेंशन पर तो आपत्ति नहीं होती है जबकि यह लोग अपने को सेवक कहकर सत्ता में आते हैं लेकिन अपनी पूरी जिंदगी सरकारी सेवा में गुजारने के उपरांत बुढ़ापे में गुजारे का सहारा पेंशन के लिए सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं तथा अपने व अपने परिवार के गुजारे व हितों के लिए माननीय न्यायालय की शरण तक लेनी पड़ रही है इससे ज्यादा शर्म की बात प्रधान सेवक कहने वाले लोगो के लिए और क्या होगी।