छत्तीसगढ़: नक्सलियों के गढ़ तक पुलिस की धमक, घटनाएं हुईं कम

डेस्क। छत्तीसगढ़ में बीते दो सालोंं में नक्सली घटना आधे से भी कम हो गई हैं। सुकमा, बीजापुर व दंतेवाड़ा जैसे अति नक्सल प्रभावित जिलों में पुलिस का सूचनातंत्र नक्सलियों की मांद तक घुस चुका है। पुलिस उनकी कुंडली बना रही है। उनके परिजनों तक पहुंचकर समझा रही है और मौका मिलते ही उन्हें गिरफ्तार कर रही है। हाल ही में कुछ लोग बीजापुर इलाके के एक गांव में नक्सलियों से मिलने गए, तो बीजापुर एसपी कमलोचन कश्यप के पास तुरंत सूचना पहुंच गई।
दंतेवाड़ा एसपी डा. अभिषेक पल्लव ने तो अपने जिले के एक हजार से ज्यादा नक्सलियों की कुंडली ही बना ली है। उनका नाम, संगठन में पद, माता-पिता, फोन नंबर, तस्वीर आदि सारी जानकारी पुलिस के पास है। सुकमा के एसपी केएल ध्रुव ने अति दुर्गम मिनपा में फोर्स का नया कैंप खोल दिया है। यह वही जगह है, जहां मार्च 2020 में डीआरजी के 17 जवान शहीद हुए थे। वहीं 23 नक्सली भी मारे गए थे।बस्तर वह जगह है, जहां ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवान, रानीबोदली में सीएएफ के 55 जवान, झीरम में बड़े कांग्रेस नेताओं समेत 30 से ज्यादा लोगों की हत्या नक्सली कर चुके हैं। 20-30 की हत्या तो एक जमाने में आम बात थी। बस्तर संभाग के आइजी सुंदरराज पी बताते हैं कि बीते ढाई वर्षों में नक्सलगढ़ कहे जाने वाले करीब आठ हजार वर्ग किमी इलाके में फोर्स की पहुंच बन गई है। अति दुर्गम इलाकों में सडक़ों का जाल बिछाया जा रहा है।
नक्सलवाद में मुखबिरी की सजा मौत है। ऐसे में पुलिस अफसरों ने आत्मसमर्पित नक्सलियों की मदद से सूचनातंत्र विकसित करने की योजना बनाई। सरेंडर के बाद नौकरी, घर और उचित व्यवहार के जरिए उनका दिल जीता। फिर उनसे पूछा गया कि गांव में कौन ऐसे व्यक्ति है जो पुलिस के काम आ सकता है। नक्सलियों के फोन नंबर जुटाने के बाद पुलिस ने उन्हें सर्विलांस पर डाला। इससे ऐसे चेहरे भी बेनकाब हो रहे हैं, जो नक्सलियों से संपर्क में हैं।