अश्लीलता के खतरे भी महसूस कीजिए

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अभिषेक कुमार।
हमारे देश में घटित कई यौन अपराधों में साबित हुआ है कि अपराधी पोर्न देखने की लत के शिकार थे। दिल्ली गैंगरेप (2012) की घटना में भी शामिल अपराधियों ने मोबाइल पर पोर्न तस्वीरें और वीडियो देखे थे और उसके बाद अनगिनत वारदातों में यही तथ्य निकलकर सामने आया है। इन तथ्यों को देखें, तो हम सरकार के उस कदम के पक्षधर हो सकते हैं, जिसके तहत उसने हाल में 800 पोर्न साइटों को प्रतिबंधित कर दिया और फिर दबाव में उसे हटा लिया। प्रतिबंध का फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किया गया था, लेकिन जैसे ही इस पर अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल खड़ा किया गया, सरकार ने बीच का रास्ता निकालने की कवायद की। पर सवाल है कि इंटरनेट पर बढ़ती पोर्न सामग्री और उसके दुष्प्रभावों को देखते हुए सरकार क्या करे? उसे दुनिया के अन्य देशों का अनुसरण करना चाहिए, जैसे कि चीन जिसने कुछ ही अरसा पहले इसी तरह 400 वेबसाइटों को बैन कर दिया था।
इंटरनेट पर पोर्न वेबसाइटों की भरमार है। इससे संबंधित आंकड़े ऑप्टनेट नामक इंटरनेट फिल्टरिंग फर्म समय-समय पर जारी करती रहती है। अब तो शहरों में ही नहीं, छोटे कस्बों तक में मोबाइल और साइबर कैफे की बदौलत इंटरनेट 25 करोड़ लोगों की पहुंच में है। इनमें से करीब 15 करोड़ को छोड़कर शेष ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में हैं। इनमें ज्यादातर का इंटरनेट से कामकाजी रिश्ता है यानी वे शिक्षा, बैंकिंग, रिजर्वेशन आदि कार्यों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन यदि 40 फीसदी लोग भी जान-बूझकर या अनजाने में इंटरनेट पोर्न तक पहुंचते हैं, तो इससे खतरे का अनुमान लगाया जा सकता है। दावा किया जाता है कि दुनिया की सबसे बड़ी पोर्न वेबसाइट एक्स वीडियोज को दुनिया में हर महीने पांच अरब बार खोला जाता है। इसी तरह का एक औसत यह है कि दुनिया में प्रति सेकेंड 30 हजार लोग इंटरनेट पर अश्लील साहित्य खोज या देख-पढ़ रहे होते हैं। इस संबंध में इंटरनेट सर्च इंजन-गूगल जो जानकारियां जुटाता रहा है, उसके मुताबिक भारत में महानगर ही नहीं, छोटे शहरों में भी इंटरनेट पर अश्लील सामग्री की काफी खोजबीन होती है।
एक तरफ पोर्न सामग्री से जुड़े व्यवसाय ने बड़ी इंडस्ट्री का रूप ले लिया है, तो दूसरी तरफ अपराधी मानसिकता के लोगों से लेकर छोटे बच्चों तक ऐसी सामग्री पहुंचने का खतरा पैदा हो गया है। यह बदलाव कोई समस्या नहीं बनता, यदि ऐसी चीजें बच्चों के हाथ नहीं पहुंचतीं और इनसे अपराधियों में यौन हमले करने का दुस्साहस पैदा नहीं होता। लेकिन स्पष्ट हुआ है कि ये दोनों खतरे तेजी से बढ़े हैं, इसीलिए इंटरनेट पोर्न पर पाबंदी की मांग समय-समय पर उठती रही है। गौरतलब है कि पड़ोसी देशों चीन-पाकिस्तान के अलावा दक्षिण कोरिया, मिस्र, रूस आदि देशों में इंटरनेट पोर्नोग्राफी को गैरकानूनी घोषित कर रखा है और वे अश्लील सामग्री परोसने वाली वेबसाइटों पर प्रतिबंध भी लगाते हैं। हालांकि ऐसे प्रतिबंधों के विरोधियों का तर्क है कि जो लोग पोर्न देखना चाहते हैं, उन्हें इसके विकल्प सीडी-डीवीडी के वीडियो रूप में आसानी से उपलब्ध हैं।
यदि हम निजता और अभिव्यक्ति की आजादी के पैमानों को देखें, तो बंद कमरे में किसी व्यक्ति को पोर्न साहित्य पढऩे-देखने-सुनने से रोकना सही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट खुद ऐसी टिप्पणी कर चुका है। इसी साल नौ जुलाई को एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू ने कहा था कि अदालत इस बारे में कोई अंतरिम आदेश नहीं दे सकती। उन्होंने कहा था कि कोई भी कोर्ट आकर यह कह सकता है कि मैं बालिग हूं और आप मुझे अपने घर के बंद कमरों में कुछ भी देखने से कैसे रोक सकते हैं? यह संविधान की धारा 21 का उल्लंघन है। इंटरनेट पर पोर्न वेबसाइटों को बंद करने की याचिका के जवाब में कोर्ट ने यह भी कहा था कि कि ऐसा कर पाना उसके लिए संभव नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि इंटरनेट पर ऐसी करीब 4 करोड़ वेबसाइटें हैं, सरकार जब एक वेबसाइट को बंद करती है, तो दूसरी खुल जाती है। फिर भी रोक लगाने की एक अहम दलील के तहत उसने सरकार को इन वेबसाइटों की रोकथाम करने को कहा था, जिस पर 800 वेबसाइटें बैन की गईं।
हमारे देश में वर्ष 2014 में एक सर्वेक्षण हुआ था। मैसूर की रेस्क्यू नामक संस्था ने गोवा के 10 कॉलेजों के 200 छात्रों के बीच कराए गए सर्वे में दो अहम बातों का खुलासा किया। एक तो यह कि पोर्न देखने वाले 76 फीसदी युवा रेप करना चाहते हैं और दूसरे, कम से कम 40 फीसदी युवा नियमित तौर पर पोर्न सामग्री देखते हैं। इस सर्वेक्षण में कई और गंभीर बातें स्पष्ट हुई थीं। जैसे जो युवा पोर्न देख रहे हैं, उनमें से 50 फीसदी हिंसक पोर्न देखते हैं और उनकी यह लत इतनी गंभीर है कि वह लगातार बढ़ती जाती है।
यही चिंता महिलाओं और उन अभिभावकों को खाए जा रही है कि इंटरनेट पर अश्लील सामग्री की रोकथाम न की गई तो कहीं खुद उनके बच्चे इसकी चपेट में न आ जाएं। अभिव्यक्ति की आजादी के पक्षधर इंटरनेट पर किसी भी तरह के प्रतिबंध के खिलाफ हो सकते हैं, लेकिन जब उन्हें इस समस्या के सामाजिक पहलुओं के बारे में समझाया जाएगा तो संभव है कि वे ऐसे प्रतिबंधों का साथ दें। इसी तरह, आज के तकनीकी युग में यह जरूरी नहीं रहा है कि किसी वेबसाइट की सामग्री की रोकथाम के लिए उसे प्रतिबंध ही किया जाए। इसका एक उपाय बाहरी सर्वरों से देश के सर्वरों के रास्ते आ रही सामग्री को किसी फिल्टर की सहायता से छानने के रूप में हो सकता है। गोवा की संस्था रेस्क्यू ने के9 नाम के एक सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल की सिफारिश की थी जो पोर्न वेबसाइटों पर आ रही अश्लील सामग्री को पूरी तरह रोक देता है। ऐसे उपाय करने में कोई कानूनी अड़चन भी नहीं है। स्पष्ट है कि यदि सरकार चाहेगी तो अश्लील सामग्री के प्रचार-प्रसार और उसके कारण होने वाले अपराधों की दर में निश्चित कमी लाई जा सकती है।