सुराणा-सुराठी गांव में आज भी नहीं मनता रक्षाबंधन

श्यामल मुखर्जी, मुरादनगर। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अपने जनपद के मुरादनगर में 2 गांव ऐसे भी हैं जहां पवित्र रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता । मुरादनगर से सटे हिंडन नदी के किनारे स्थित सुराणा एवं सुठारी गांव में छाबडिय़ा गोत्र के लोग रहते हैं जो रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते। बताया जाता है कि इसी दिन मुगल आक्रांता मोहम्मद गौरी ने सोहनगढ़, जिस का वर्तमान नाम सुराणा है, पर आक्रमण कर गांव के सभी लोगों का कत्ल कर दिया था । मान्यता है कि तब से यहां के निवासी रक्षाबंधन नहीं मनाते। मुरादनगर विकासखंड में सबसे अधिक आबादी वाला सुराणा पहले सोहनगढ़ के नाम से जाना जाता था, जहां की अधिकतर आबादी वर्तमान में छाबडिय़ा गोत्र के अहीरो की है । सन 1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच में जब तनातनी चल रही थी तो उनके वंशज यहां मुरादनगर के सोहनगढ़ में आकर बस गए थे । परंतु कुछ समय बाद ही मोहम्मद गोरी को इस बात की भनक लग गई कि सुराणा गांव के अहीरों ने पृथ्वीराज चौहान के वंशजों को शरण दी है । इससे आग बबूला होकर रक्षाबंधन वाले दिन मोहम्मद गोरी ने सुराणा गांव पर हमला कर दिया । मोहम्मद गोरी द्वारा सभी ग्राम वासियों को गाजर मूली की तरह काट दिया गया तथा औरतों और बच्चों को हाथियों के पैरों तले कुचल डाला गया। इस घटना में केवल लखीराम यादव की पत्नी राजवती ही बच पाई थी जोकि गर्भवती थी और उस वक्त अपने मायके उलहेड़ा में पिता सुमेर सिंह यादव के घर गई हुई थी । मायके में उन्होंने 2 पुत्र – लखि सिंह और चुपड़ा को जन्म दिया। बेटो ने बड़े होने पर अपनी मां से अपने परिवार का वृतांत पूछा । इस पर राजवती में अपने दोनों बेटों को मोहम्मद गौरी के अत्याचारों और उसके द्वारा किए गए कत्लेआम की घटना बताई । इसके बाद लखि सिंह और चुपड़ा के साथ राजवती सुराणा वापस आई और गांव को दोबारा उनके द्वारा बसाया गया। सुराणा के बाद सुठारी गांव को भी बसाया गया । रक्षाबंधन के दिन हुए कत्लेआम के कारण सुराणा और सुठारी गांव के लोग इसे अपशगुन मानते हैं तथा इस त्यौहार को इन दोनों गांव में नहीं मनाया जाता ।