भवाली बना दुनिया का दूसरा जीन बैंक

डेस्क। नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेस (एनबीपीजीआर) की भवाली स्थित शाखा ने उत्तराखंड के 27 हजार से अधिक स्थानीय पौधों और फसलों के बीज संरक्षित कर लिए हैं। अब एनबीपीजीआर द्वारा देशभर में संरक्षित होने वाले बीजों की संख्या साढ़े चार लाख के पार हो चुकी है। भवाली स्थित पादप आनुवांशिक केंद्र की प्रभारी ममता आर्या का कहना है कि एनबीपीजीआर दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा जीन बैंक बन गया है। साढ़े आठ लाख संरक्षित बीज संख्या के साथ अमेरिका पहले स्थान पर है। इस तरह भवाली दुनिया के दूसरे सबसे बड़े जीन बैंक का हिस्सा बन गया है। अब इस जीन बैंक का फायदा स्थानीय किसानों को भी देने की योजना है। किसान इस जीन बैंक से स्थानीय और पारंपरिक प्रजातियों के बीज प्राप्त कर खेती में उनका प्रयोग कर पाएंगे। इसके अलावा हिमाचल, मेघालय, झारखंड, जम्मू कश्मीर, उड़ीसा व केरल में भी जैन बैंक बनाए गए हैं। वहां भी स्थानीय प्रजातियों को संरक्षित करते हुए उनके बीज जीन बैंक में रखे जा रहे हैं। जीन बैंक का उद्देश्य पारंपरिक व स्थानीय प्रजातियों को बचाना है। कृषि वैज्ञानिक एवं केंद्र प्रभारी ममता आर्या ने बताया मुश्किल समय में देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाने, पारंपरिक बीजों को सहेजने के लिए इस तरह के जीन बैंक देश की पूंजी साबित होते हैं।