गांधी जयंती: अहिंसा शक्तिशाली का शस्त्र है

डॉक्टर रामानुज पाठक। आज 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती ,राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151 वीं जयंती है ।गांधीवादी विचारधारा को विश्व के अधिकांश देशों ने मान्यता दी है। बीसवीं सदी के महानतम शख्सियतों में महात्मा गांधी एवं अल्बर्ट आइंस्टीन का नाम शामिल है ,गांधीजी के बारे में शायद सर्वाधिक लेखन कार्य हो चुका है। जिन्हें भारत को जानना समझना है, भारतीयता के मर्म को समझना है उन्हें “सत्य के साथ मेरे प्रयोग” अर्थात महात्मा गांधी की “आत्मकथा” का अध्ययन मनन करना नितांत आवश्यक है आज की युवा पीढ़ी में” मजबूरी का नाम महात्मा गांधी” का चलन बढ़ा है, और युवा अपना हीरो भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, को मानते हैं इसमें गलत भी कुछ नहीं है लेकिन गांधी को ना जानना, युवाओं को यह नहीं पता कि उन्होंने गांधी को बगैर जाने उन्होंने क्या खोया है। यदि भारत को जानना है,भारत के गांव को जानना है, गरीबी को जानना है, अशिक्षा को जानना है, कुरीतियों को जानना है,अंधविश्वासों को जानना है,अभावों को जानना है,सादगी को जानना है,सत्य को जानना है,अहिंसा को जानना है,न्यूनतम आवस्कताओ के साथ जीवन शैली को जानना है,प्रकृति को जानना है,स्वक्छता को जानना है,आत्मनिर्भरता को जानना है, तो गांधी को जानना अत्यंत आवश्यक है।गांधीजी ने अंग्रेजी हुकूमत से लोहा अहिंसा के बल पर लिया और देश को स्वाधीनता दिलाई यद्यपि महात्मा गांधी सन 1915 से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुए और आजादी की जंग उसके कई दशकों पहले से चल रही थी लेकिन गांधी जी की एंट्री ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में जबरदस्त जांन फूंकी, और आजादी के महानायको में गांधीजी का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है । अहिंसा परमो धर्मह, धर्म हिंसा तथैव च ।के सूत्र भाग से उन्होंने “अहिंसा परमो धर्म” को जीवन पद्धति मान ली और उसको जिया भी। अहिंसा परमो धर्मा, यह जैन धर्म का तो सूत्र वाक्य ही माना जाता है दरअसल अहिंसा एक प्रयोग सिद्ध, शाश्वत, सनातन ,विज्ञान है जिसमें प्रयोग हैं, परीक्षण है, निष्कर्ष हैं,। अहिंसा में क्या ,क्यों, कैसे, किसलिए, कब, इन सब का वैज्ञानिक उत्तर है, वैज्ञानिक आशय है ,वैज्ञानिक आधार है। एक ओर जहां विश्व में तालिबानी मानसिकता पनप रही है ,हिंसा का बोलबाला है, शक्तियों का दुरुपयोग हो रहा है, सहनशीलता सहिष्णुता, की मात्रा दिनों दिन घट रही है, धर्म के लिए रक्तपात हो रहा है, संपत्ति के लिए, वर्चस्व के लिए युद्ध लड़े जा रहे हैं, ऐसे समय में यदि युवा “गांधी इरादे “अपनाएं तो सारी समस्याएं विलुप्त हो जाएंगी।शांत चित्त से सोचिए तो “अहिंसा शक्तिशाली का शस्त्र है “सर्वोदय का सिद्धांत” ही अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उदय कर सकता है आज दुनिया डार्विन के “योग्यतम की उत्तरजीविता “के सिद्धांत की ओर चल पड़ी है ,तभी संस्कृतियों में संघर्ष है, धर्म के नाम पर बेहिसाब हिंसा हो रही है। मानव बेशक बगैर सींग, पूछ का प्राणी है लेकिन मानवता खोता जा रहा है, पशुता रग रग में मानव के जींस/ डीएनए में समाती जा रही है। शक्तिमान में दोष ना हो, यह न्याय निष्ठ हो, सबल होते हुए निर्बल को ना सताए, निर्बल की रक्षा करें, यही “गांधीबाद” है यही “गांधी इरादे ” हैं, जो युवा गांधी इरादे पा लेंगे वे आत्मनिर्भर भी होंगे, स्वच्छता दूत भी होंगे ,सादगी प्रिय भी होंगे, अहिंसक भी होंगे, वीर भी होंगे ,कायरता से दूर भी होंगे, भीरुता उनको छू ना पाएगी, मेहनतकश होंगे, सब हाथों में कार्य होंगे, यही तो “रामराज” है जहां संस्कृतियों में संवाद होता है संघर्ष नहीं होता, धर्म के लिए खून खराबा नहीं होता, स्त्री पुरुष में भेद नहीं होता ,गोरे कालों में कोई वर्णभेद नहीं होता ,रामराज्य जड़ों से जुडऩा सिखाता है ,गांव की अर्थव्यवस्था को पुष्पित पल्लवित करना सिखाता है, रामराज जल, जंगल ,जमीन से जुडऩा सिखाता है। रामराज में बनावटीपन ,मिलावट का कोई स्थान नहीं होता, सम्पूर्ण स्वदेशी अपनाना सिखाता है। ध्यान रहे इतिहास गवाह है कि जितनी मौते प्राकृतिक आपदाओं, महामारी से नहीं हुई ,उससे कई गुना ज्यादा मौतें युद्धों से हुई, हिंसा के द्वारा हुई हैं, रक्तपात के द्वारा हुई हैं ,साम्राज्य विस्तार की नीतियों के द्वारा हुई हैं ,हिटलर शाही के द्वारा हुई हैं ।अत: आज समय है कि पूरे विश्व बिरादरी को गांधीवाद अपनाना चाहिए, सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए । अहिंसा सत्य की खोज का सबसे बड़ा मार्ग है, आज तक किसी भी विचारधारा ने अहिंसा का कोई काट नहीं ढूंढ पाया है मानव स्वभाव से अहिंसक प्राणी है ।अहिंसा के सहारे न जाने कितने युद्ध जीते गए हैं, कितने दिल जीते गए हैं, अहिंसा के पुजारियों ने बिना रक्तपात के बड़ी बड़ी क्रांतियां की हैं। नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग, मदर टेरेसा, दलाई लामा, ने अहिंसा के मार्ग में चलकर ही ,गांधीवाद का अनुसरण करके ही, अजेय और अधिक कठिन कार्यों को पूर्ण किया है। इस मार्ग पर चलना कठिन हो सकता है लेकिन असंभव नहीं। अहिंसा आत्म शान्ति, विश्व शांति का मार्ग है, सब धर्मों का सार है अहिंसा। आज महात्मा गांधी की 151 वीं जयंती पर अहिंसा के पुजारी का स्मरण करते हुए युवाओं का आह्वान है कि वे इस मार्ग में चल कर देखें ,गांधी इरादों को अपनाएं, गांधी खादी को पहन कर देंखे उन्हें खुद आश्चर्य होगा की उनके जीवन में कितना सार्थक ,कितना आमूलचूल परिवर्तन होता है। एक बार खादी को धारण करके देखें कितना जीवन में सुकून मिलता है ।और हां महात्मा गांधी के जीवन में दो पुस्तकों का बहुत बड़ा योगदान था ।पहली “श्रवण की पितृ भक्ति” तथा दूसरी “राजा हरिश्चंद्र”। माता-पिता अपने बच्चों को पितृ मातृ भक्ति और सत्यवादी होने के लिए झूठ फरेब से बचाव के लिए इन पुस्तकों को अपने बच्चों को जरूर पढ़ाएं ,और जरूर बताएं ।अहिंसा सभी समस्याओं का हल है ,मानव द्वारा बनाए गए समस्त हथियारों , अणु, परमाणु बमों से भी शक्तिशाली अहिंसा का हथियार है ,इसके माध्यम से सभी समस्याओं का हल भी होता है और विनाश भी नहीं होता। सत्य अहिंसा के पुजारी के शस्त्रागार में उपवास भी शक्तिशाली हथियार है,जो जीवन शुद्ध करता है,विचार निर्मल करता है। अहिंसा एक आत्मिक शक्ति है, अहिंसा मानवता का सबसे बड़ा बल है ।हिंसा की जो आग लगी है मिलकर उसे भुजाएं । राह अहिंसा की लोगों को फिर से चलो सुझाएं।। गांधी दर्शन को समझना है तो अहिंसा को अपना लें ,गांधीवाद पूरा का पूरा जीवन में उतर जाएगा ।गांधी इरादे में मानवता, नैतिकता सर्वोपरि है अनैतिकता और हिंसा का समाज में कोई स्थान नहीं है साधनो की पवित्रता सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। गांधी में कमियां रही, थे वह भी इंसान । सत्य अहिंसा साथ ले बन गए बड़े महान।। गांधी कभी मरते नहीं क्योंकि गांधी व्यक्ति नहीं विचार धारा हैं।
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