हिमालय में कई औषधीय पौधे खत्म होने की कगार पर

देहरादून। हिमालय में औषधीय पौधों की कई प्रजातियां लगातार कम होती जा रही हैं। चिह्नीकरण और संरक्षण के बावजूद इनमें लगातार कमी आना चिंताजनक है। नेशनल मिशन फॉर हिमालयन स्टडीज (एनएमएसएस) और बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया (बीएसआई) ने हालिया शोध में यह तथ्य उभरकर सामने आया है। यह शोध उत्तराखंड में फूलों की घाटी और हिमाचल में द ग्रेट इंडियन नेशनल पार्क में किया गया। दोनों ही राज्यों में चिह्नित संकटग्रस्त प्रजातियों पर अध्ययन में सामने आया कि फूलों की घाटी में 15 प्रजातियों में से दो की स्थिति में सुधार है। इसमें चोरू और जीवक लगातार कम होती जा रही हैं। जबकि, बाकी 13 प्रजातियों की संख्या लगातार कम हो रही है। इसमें सर्प मक्का, ब्रह्मकमल, कुटकी, दूधिया विस, अतीष, चरक, पाषाण भेद और अरार भी शामिल हैं। दूसरी ओर, ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में आठ प्रजातियां संकटग्रस्त और तीन विलुप्ति की कगार पर हैं। इसमें वन ककड़ी मुख्य रूप से विलुप्त हो रही है। किरीट के अनुसार, शोध में सामने आया कि जरूरत से ज्यादा मानवीय दखल, आबादी का ज्यादा फैलाव, मानव-वन्यजीव संघर्ष, प्राकृतिक आपदा और अवैध तस्करी इन प्रजातियों के खत्म होने के मुख्य कारण हैं। इनको बचाने के लिए वहां ज्यादा मानवीय दखल बंद करने की सलाह दी गई है। शोधकर्ताओं ने वहां सिर्फ प्रकृति, शोध या शैक्षणिक भ्रमण को ही इजाजत देने का सुझाव सरकारों को दिया है।