महामारी: चुनाव व कोरोना ?

सुबोध तिवारी। कोरोना के मामले भारत में लगातार दूसरे दिन तीन लाख से ज्यादा के साए वहीं उत्तर प्रदेश में पिछले 24 घंटे में 18000 से ज्यादा संक्रमित मामले सामने आए हैं लेकिन सवाल यह है ,कि यह राज्य की उन तमाम व्यवस्थाओं को किस प्रकार प्रभावित कर रहे हैं? सरकार ने रात्रि 11:00 बजे से सुबह 6:00 बजे तक नाइट कफ्र्यू जैसे कई दिशा-निर्देश दिए हैं लेकिन यह वही दिशानिर्देश हैं जिन्हें कोरोना की दूसरी लहर के पहले बड़ी सख्ती से लागू किया गया था उसके बाद की भयावह स्थिति किसी से छिपी नहीं है ,हालांकि पिछली लहर के बाद से टीकाकरण में तेजी आई और वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इसके प्रभाव का आकलन किया जा सकता है ,लेकिन इसके बाद भी कोरोना संक्रमितों की पूरे देश में एक बड़ी खेप का होना काफी चिंताजनक है क्योंकि हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए 15 से 18 वर्ष एवं 12 से 14 वर्ष के नीचे की उम्र के बच्चों के टीकाकरण की गति काफी धीमी है, जिससे देश के बच्चों के एक बड़े हिस्से के प्रभावित होने का खतरा बना हुआ है । इन सबके बीच बच्चों की शिक्षा व्यापार सहित कई क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित हुई है जो काफी चिंताजनक भी है कोरोना संक्रमण के ओमीक्रोन वैरीयंट के लगातार बढ़ते खतरों के बीच भारत के 5 राज्यों में चुनाव होने वाली है ,इसमें माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने भारत के प्रधानमंत्री से अपील भी की कि यूपी में रैलियों पर रोक लगे एवं चुनाव टालने पर भी विचार करे सरकार ,इसके बावजूद चुनाव आयोग ने पांचो राज्य जिनमें क्रमश: उत्तर प्रदेश, पंजाब ,उत्तराखंड ,गोवा एवं मणिपुर के चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया इसके साथ ही चुनाव रैलियों पर भी रोक लगाई और कोरोना प्रोटोकोल को सख्ती से लागू भी करने का भी प्रयास किया साथ ही उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने पीसीएस मैंस 2022 की परीक्षा स्थगित कर दी जिसमें कुल 7688 अभ्यर्थियों को भाग लेना था जो 23 मार्च से 27 मार्च के बीच होने वाली थी इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालय सहित महाविद्यालय भी पिछले कई दिनों से बंद है और देश के अन्य राज्यों में भी कोरोना के लिए संबंधित विभाग के दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश भारतीय राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है उत्तर प्रदेश की राजनीति कहीं ना कहीं देश की राजनीति की दिशा व दशा दोनों ही तय करती है लेकिन आज भी यह सवाल है कि उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामले की वृद्धि दर अधिक होने के बाद भी चुनाव होते हैं तो इससे प्रदेश के जनमानस पर कहीं ना कहीं प्रभावित हो सकता है ठीक उसी प्रकार जैसे हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में मतदानकर्मियों को कोरोना ने बुरी तरह प्रभावित किया कई परिवारों ने अपना मुखिया खोया, हालांकि टीकाकरण ने मृत्यु दर को काफी हद तक कम किया लेकिन सवाल खड़ा होता है कि लगभग 21 करोड जनसंख्या के प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए कोरोना कोई प्रभाव नहीं डालता और 7688 बच्चों की मेंस परीक्षा को कोरोना प्रभावित करता है इसके साथ ही कोरोना ने भारत सहित अन्य देशों की शिक्षा व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी कहा कि, “महामारी का शिक्षा पर गंभीर वैश्विक प्रभाव पड़ा है” साथ ही पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने भी टिप्पणी की और कहा कि बच्चों को जल्द स्कूल लाने की जरूरत है वरना हमारे पास एक कम समझ वाली पीढ़ी होगी इसके पीछे उन्होंने कारण दिया कि उनके पास ऑनलाइन डिवाइसेज नहीं है उनकी पढ़ाई की गुणवत्ता का आकलन कर सकते हैं उन्होंने यह भी कहा कि यदि आप डेढ़ साल स्कूल से दूर रहते हैं तो आप 3 साल पीछे चले जाते हैं। यह बात काफी हद तक सटीक भी बैठती है देश का एक बड़ा वर्ग ऑनलाइन शिक्षा लेने में सक्षम है लेकिन एक कल्याणकारी राज्य की कल्पना से परे है क्योंकि सरकार की मंशा समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक शिक्षा पहुंचाने के लिए प्रयास करना है और इसी से भारत तकनीकी एवं बौद्धिक रूप से मजबूत होगा वास्तव में भारत सरकार का लक्ष्य समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को शिक्षा स्वास्थ्य एवं अन्य सुविधाएं पहुंचाना है लेकिन इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कोरोना ने सबसे अधिक ग्रामीण व आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की शिक्षा को सबसे अधिक प्रभावित किया है ।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से परास्नातक का छात्र है )
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