चुनाव डेस्क। उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में गंभीर आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे उम्मीदवारों की संख्या बढ़ गई है. इनमें महिलाओं के खिलाफ कई अपराध, बलात्कार और हत्या जैसे मामले भी शामिल हैं.आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को पार्टियों द्वारा चुनावों में टिकट देने के चलन से उत्तराखंड भी अछूता नहीं है. इस बार चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों में से कम से कम 107 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. ये आंकड़े चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) ने इन उम्मीदवारों द्वारा दायर किए उन्हीं के चुनावी हलफनामों से निकाले हैं. कुल 632 में से 626 उम्मीदवारों के हलफनामों की समीक्षा की गई है. छह हलफनामे चुनाव आयोग की वेबसाइट पर ठीक से अपलोड नहीं किए गए। गंभीर आपराधिक मामले इन 626 उम्मीदवारों में से 17 प्रतिशत (107) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की जानकारी चुनाव आयोग को दी है. 2017 में राज्य विधानसभा चुनावों में आपराधिक मामलों का सामना कर रहे उम्मीदवार 14 प्रतिशत (91) थे। यानी इस तरह के उम्मीदवारों की संख्या तीन प्रतिशत बढ़ गई है. इस साल 626 उम्मीदवारों में से 10 प्रतिशत (61) उम्मीदवार ऐसे हैं जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. 2017 में इस तरह के उम्मीदवारों की संख्या आठ प्रतिशत (54) थी. यानी गंभीर आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की संख्या कम होने की जगह दो प्रतिशत बढ़ गई है. इस तरह के मामलों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा, बलात्कार, हत्या की कोशिश और हत्या जैसे आरोपों के मामले शामिल हैं. ऐसे उम्मीदवार बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बसपा और उत्तराखंड क्रांति दल समेत राज्य में चुनाव लड़ रही सभी बड़ी पार्टियों में शामिल हैं. कांग्रेस के 70 उम्मीदवारों में से 11 (16 प्रतिशत), बीजेपी के 70 उम्मीदवारों में से आठ (11 प्रतिशत), आम आदमी पार्टी के 69 उम्मीदवारों में से नौ (13 प्रतिशत), बसपा के 54 उम्मीदवारों में से छह (11 प्रतिशत) और उत्तराखंड क्रांति दल के 42 उम्मीदवारों में चार (10 प्रतिशत) इसी श्रेणी में हैं. क्यों चुनती हैं पार्टियां इनमें से छह उम्मीदवार ऐसे हैं जिनके खिलाफ महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं.
उत्तराखंड में भी कम नहीं दागी उम्मीदवारों की संख्या
