मतदान के बाद अब जीत हार के अनुमानों की नाव में हिचकोले खा रहे प्रत्याशी

श्यामल मुखर्जी, गाजियाबाद। अब तक राजनेताओं के बारे में यह मशहूर था कि मौसम के अनुसार वह रंग बदलते हैं परंतु इस बार यह अजीब नजारा देखने को मिला कि ना सिर्फ नेताओं का बल्कि मतदाताओं का रुझान भी तेजी से बदला । जिस तेजी से कुछ नेताओं ने पार्टियां बदली उससे भी कहीं ज्यादा तेजी के साथ मतदाताओं ने अपना मत बदला । परंतु इस बार के चुनावों में मतदाता अंतिम समय तक खामोश रहे तथा अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं होने दिया। विभिन्न पार्टी के कार्यकर्ताओं तथा नेताओं द्वारा लाख टटोले जाने के बावजूद किस पार्टी को वह समर्थन देंगे इस बारे में कुछ भी नहीं बताया। और शायद यही वजह है कि विभिन्न पार्टियों के नेता गण इस समय टेंशन में है क्योंकि परिणाम आने तक वह सिर्फ अपनी जीत या हार का अनुमान भर लगा सकते हैं। परंतु चुनाव के बाद किसी भी राजनीतिक दल का कोई भी नेता सीना ठोक कर अपनी स्थिति स्पष्ट रूप से बता पाने की स्थिति में नहीं है। बस समाज के विभिन्न समुदायों जैसे वैश्य ब्राह्मण कायस्थ दलित जाट गुर्जर मुस्लिम बबूल बूथों पर हुए मतदान के आधार पर अपनी जीत हार का समीकरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं । किसी नेता को तो के बंटवारे में तथा किसी को गठबंधन के कारण अपने वोटों में इजाफा होता हुआ दिख रहा है । क्योंकि गाजियाबाद के हर मतदान बूथ पर जातियों तथा बिरादरीओं का गणित अलग अलग है। यही कारण है कि हर प्रत्याशी को इन फैक्टर्स को देखते हुए कहीं जीत की अपार संभावना नजर आती है तो कहीं हार का नुकसान होने की आशंका।