योगी के गढ़ में माया का बड़ा दांव

चुनाव डेस्क। यूपी विधानसभा चुनाव में पहले धीमी गति से चल रही लेकिन अब पूरे दमखम के साथ उतरी बसपा ने गोरखपुर की 9 सीटों पर जातीय समीकरणों के हिसाब से बिसात बिछा दी है। पार्टी के कोर वोटर और प्रत्याशी के वर्ग के वोटरों के अलावा सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर पार्टी अपनी जीत पक्की करने की कोशिश में जुटी है। शहर में दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर भरोसा जताते हुए पार्टी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। बसपा ने 2017 के मोदी-योगी लहर में भी गोरखपुर में एक सीट झटक ली थी और चार सीटों पर दूसरे स्थान पर रहकर अपनी ताकत का एहसास कराया था जबकि सपा खाता भी नहीं खोल पाई थी। इस बार भी बसपा दूसरे दलों के लिए चुनौती बनकर सामने है। 26 फरवरी को पार्टी की मुखिया मायावती की रैली से पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की पूरी तैयारी है। सभी 9 सीटों पर जातीय संतुलन के साथ सोशल इंजीनियरिंग का ख्याल रखा है। पार्टी ने शहर सीट से ख्वाजा शमसुद्दीन को मैदान में उतार कर मुसलमानों को यह संदेश दे दिया है कि वही उनकी हितैषी है। शहर सीट पर दलित वोट करीब 40 हजार है जबकि मुस्लिमों की तादाद भी अच्छी खासी है। पार्टी ने यहां अपने वोट बैंक को सहेजने के लिए इसलिए भी पूरी ताकत झोंक रखी है ताकि आजाद समाज पार्टी उसमें सेंध लगाने में कामयाब न होने पाए।

बसपा की भी दूसरे दलों की तरह निषाद वोट बैंक पर नजर है। यही वजह है कि ग्रामीण से दारा निषाद व कैम्पियरगंज से चंद्रप्रकाश निषाद को प्रत्याशी बनाया है। क्षत्रिय वर्ग को लुभाने के लिए सहजनवां से सुधीर सिंह तो चिल्लूपार से राजेन्द्र सिंह पहलवान को उतारा है। चौरीचौरा से भूमिहार ब्राह्मण वीरेन्द्र पाण्डेय व पिपराइच से वैश्य वर्ग को साधने को दीपक अग्रवाल को उतारा है। खजनी से पूर्व मंत्री सदल प्रसाद के भाई विद्यासागर व बांसगांव से पूर्व जिला अध्यक्ष राम नयन आजाद को उतार कर कार्यकर्ताओं को मैसेज दिया है कि बसपा के साथ मन से जुड़े लोगों को पार्टी कभी भूलती नहीं है।