(डा.राजेश्वर सिंह, विधायक भाजपा) नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सरोजनीनगर सीट से विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने जलवायु संकट को लेकर जनमानस और नीति-निर्माताओं को आगाह किया है। उन्होंने हिमालयी ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने को न केवल एक पारिस्थितिक संकट, बल्कि सभ्यता के लिए चेतावनी बताया।
नेपाल के ‘याला ग्लेशियर’ को एशिया का पहला ‘मृत’ ग्लेशियर घोषित किया गया है। उन्होंने कहा कि यह केवल बर्फ का अंत नहीं, बल्कि आने वाले समय की भयावह झलक है। याला ग्लेशियर का आकार 1970 के दशक से अब तक 66 प्रतिशत घट चुका है और यह 784 मीटर पीछे हट चुका है। यह स्थिति दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य का विषय नहीं, वर्तमान का संकट बन चुका है।
हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र, जहां 54,000 से अधिक ग्लेशियर हैं, आज असहनीय तापवृद्धि से जूझ रहा है। पिछले दो दशकों में यहां पिघलाव की गति 65ः तक बढ़ गई है। इसके बावजूद, 3,500 किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र में हर वर्ष केवल 7 ग्लेशियरों की निगरानी हो रही है, यह वैज्ञानिक प्रयासों की भयावह कमी को दर्शाता है।
हिमालय केवल भारत का नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया की 2 अरब से अधिक आबादी का जल स्रोत है। गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु जैसी 10 प्रमुख नदियाँ इन्हीं ग्लेशियरों पर निर्भर हैं। ग्लेशियरों का लुप्त होना सिंचाई, पेयजल, ऊर्जा उत्पादन और पारिस्थितिक तंत्र को असंतुलित कर देगा। हिमालयी क्षेत्र में 1990 के दशक के बाद से ग्लेशियर झीलों की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर झील विस्फोट (ळस्व्थ्) की घटनाएं बढ़ी हैं, जिससे भूटान (2017) और सिक्किम (2023) जैसे क्षेत्रों में जान-माल की भारी क्षति हुई।
भारत जलवायु जोखिमों के लिहाज़ से शीर्ष 10 देशों में शामिल है। विशेष रूप से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे हिमालयी राज्य, जलवायु परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में खड़े हैं। आईपीसीसी (अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल) ने स्पष्ट किया है कि यदि तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री तक भी सीमित कर दी जाए, तब भी ग्लेशियरों की हानि को केवल धीमा किया जा सकता है, रोका नहीं जा सकता।
11 सूत्रीय कार्ययोजना-
- नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता दी जाए 2. वनों की रक्षा और वृक्षारोपण को जन आंदोलन बनाया जाए 3. उद्योगों, भवनों और यातायात में ऊर्जा दक्षता बढ़ाई जाए 4. सतत कृषि को बढ़ावा दिया जाए 5. कचरे के प्रबंधन में तीन सिद्धांत अपनाए जाएंरू कम करो, पुनः उपयोग करो, पुनर्चक्रण करो 6. युवाओं व समुदायों को जलवायु साक्षर बनाया जाए 7. भारत में ग्लेशियरों की वैज्ञानिक निगरानी को मजबूत किया जाए 8. ळस्व्थ् जैसी आपदाओं के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित की जाए 9. वैश्विक जलवायु संधियों में सक्रिय भागीदारी हो 10. जल संरक्षण को नीति में सर्वाेच्च प्राथमिकता दी जाए 11. नीति निर्माण को प्रकृति केंद्रित बनाया जाए
“हमें पता है संकट क्या है। हमें पता है समाधान क्या है। फिर भी यदि आज हम चुप हैं, तो आने वाली पीढ़ियों से विश्वासघात कर रहे हैं,” डॉ. सिंह ने स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा। विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने यह भी स्पष्ट किया कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकारों का उत्तरदायित्व नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की साझी जिम्मेदारी है। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि वे प्रकृति की पुकार को सुने, सक्रिय बनें और परिवर्तन के वाहक बनें।
‘‘याला ग्लेशियर, जो लंबे समय से नेपाल के ग्लेशियोलॉजिस्टों को प्रशिक्षित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, इसकी पहुंच के कारण, 2040 तक गायब होने का अनुमान है। स्थानीय नेपाली ग्रेनाइट में उकेरी गई इसकी स्मारक पट्टिकाओं पर अंग्रेजी, नेपाली और स्थानीय रूप से बोली जाने वाली तिब्बती भाषा में शिलालेख हैं। पाठ में वर्तमान वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर और मैग्नासन के भयावह शब्दों का पाठ शामिल हैरू ष्हम जानते हैं कि क्या हो रहा है और क्या करने की आवश्यकता है। केवल आप ही जानते हैं कि हमने यह किया या नहीं।’’
9 मई को निकटवर्ती गांव मुंडू में एक सामुदायिक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें स्थानीय निवासियों और वैज्ञानिकों को क्षेत्र में परिवर्तन के बारे में ज्ञान और व्यक्तिगत कहानियां साझा करने का अवसर प्रदान किया गया।
यह मैग्नासन के जलवायु संदेश को दर्शाने वाला तीसरा वैश्विक ग्लेशियर होगा, इससे पहले 2019 में आइसलैंड के ओके ग्लेशियर और 2021 में मैक्सिको के अयोलोको ग्लेशियर पर स्मारक बनाए गए थे।
यह श्रद्धांजलि संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष 2025 के लिए नेपाल के योगदान का हिस्सा है। यह सागरमाथा संबाद शिखर सम्मेलन से भी मेल खाता है, जहां ग्लेशियर की क्षति और खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा पर इसके परिणामों पर चर्चा होने वाली है।