अगवा मासूमों की हत्याएं रोकने में पुलिस असफल

chid mudes
योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। कानून व्यवस्था के चुस्तदुरूस्त रखने के सारे दावों को बेखौफ अपराधी संगीन वारदात अंजाम देकर एक झटके मेें झुठला देते है और पुलिस द्वारा गुडवर्क करके अपने चेहरे को उजला करने की जो कवायद होती है उसपर भी पानी फेर देते है। राजधानी में बच्चे,बूढ़े जवान और महिलाएं कहीं कोई सुरक्षित नहीं है। हाल ही में मडिय़ाव की घटना ने यह साबित कर दिया है कि अगर राह चलती महिलाएं घर बाहर कहीं नहीं महफूज है तो बच्चें भी स्कूल से लेकर घरों तक कहीं सुरक्षित नहीं है। यह बात दीगर बच्चों के अपहरण और उनकी हत्या जैसी घटनाओं में उनके अपने ही खून बहाते है। मडिय़ाव की इस घटना से पहले भी इस तरह की कई घटनाएं हुई लेकिन उनकी पुनरावृत्ति रोकने की दिशा में अव्वल तो कोई प्रयास नहीं हुए जो हुए वे भी हवा हवाई साबित हुए। बच्चों के अपहर्ताओं और उनके हत्यारों के आगे पुलिस हमेशा बौनी नज़र आई बावजूद इसके पुलिस गुडवर्क के नाम पर हमेशा अपनी पीठ ठोंकती रही। मासूमों की अपहरण के बाद हुई हत्या पर गौर करें तो पुलिस की कार्रवाई हमेशा अपराधियों के आगे ढाक के तीन पात साबित हुई। वहीं इन मामलों में घरवालों द्वारा अपने बच्चों के गायब होने पर गुमशुदगी दर्ज कराई गई लेकिन खाकी भी खूब कि रिपोर्ट दर्ज कर हीला-हवाली कर टरकाती रही। नतीजन उनकी लाश मिली। खास बात रही की इन घटनाओं में कोई पेशेवर नहीं बल्कि कोई किरायेदार,नौकर, अपने ही इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने में आगे नज़र आए। राजधानी पुलिस भले ही अपने आप को ताकतवर और बहादुर समझ रही हो लेकिन सच तो यह है कि अपहरण होने के बाद पुलिस दो कदम चलने हार मान गई,नतीजा मासूम हत्यारों की भेंट चढ़ गये। पुलिस की लापरवाही के चलते कई लोगों के घरों में आज भी मातम छाया हुआ है। जैसे ही अपने जिगर के टुकड़ों की सूरत को याद करते हैं तो हत्यारों के साथ ही राजधानी की मित्र पुलिस के प्रति उनका गुस्सा उबाल खा रहा है कि अगर पुलिस सक्रिय होती तो उनके घरों के चिराग नहीं बुझते।
ये हैं प्रमुख घटनाएं- 17 नवम्बर 2008- आशियाना के बंगला बाजार में रहने वाले एलडीए कर्मी रमेश वर्मा के सात वर्षीय बेटे अक्षय को अगवा कर उन्हीं का किरायेदार अजीत ने अपनी पत्नी सुनीता के साथ मिलकर मासूम की हत्या कर दी और लाश को दरिंदे ने अटैची में भरने के बाद वाराणसी जाने वाली पैसेंजर ट्रेन की बोगी में छोड़कर भाग निकला था। दोनों ने पांच लाख की फिरौती मांगने के लिए उसकी जान ली थी।
29 अगस्त 2009- मडिय़ांव के हनुमंतनगर निवासी मासूम सुमित को अगवा कर उसी के ममेरा भाई काकोरी के चौधरीखेड़ा गांव निवासी मनोज ने मार डाला। राजफाश होने पर पता चला कि सुमित अपनी बहन के साथ मनोज को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था।
31 अगस्त 2010- मानकनगर के आरडीएसओ कॉलोनी निवासी रेलवे में गैंगमैन राजकुमार गौतम के 17 माह के बेटे सुधार को अगवा कर कालू ने हत्याकर शव को बगल में स्थित हौज में डाल दिया था। इस बेहरम कालू पर राजकुमार बेहद भरोसा करते थे,लेकिन उनके लाडले की जान का दुश्मन बन गया।
चार अक्टूबर 2010- आशियाना निवासी एक गरीब परिवार की आठ वर्षीय बच्ची को अगवा कर एक वहशी ने अपनी हवश का शिकार बनाने के बाद मार डाला।
30 दिसंबर 2010- विकासनगर निवसी 12 वर्षीय बृजेन्द्र का अपहरण के बाद हत्या। जान लेने के बाद हत्यारों ने शव को बाराबंकी जिले में फेंक दिया।
10 मार्च 2011- इंदिरानगर स्थित ए-1165 निवासी ज्ञानमती के 13 वर्षीय बेटा 5वीं के छात्र रजत साहू उर्फ सोनू को अगवा कर उसके मौसेरे भाई ने हत्याकर दी।
-दो नव बर 2010। गुड बा के अतरौली गांव निवासी सात वर्षीय गौरव को अगवा कर 15 लाख की फिरौती की मांग कर एक अनपढ़ नौकर ने मार डाला।
25 जनवरी 2012- अलीगंज निवासी छात्र हिमांशु को अगवा कर अपहर्ताओं ने फिरौती की मांग कर हत्या कर दी।
दो मार्च 2012- ठाकुरगंज के रस्तोगीनगर निवासी चिकन व्यवसायी राजाराम तिवारी के छह वर्षीय बेटे शुभम को अगवा कर कातिलों ने कत्ल कर दिया। उसका शव बरी के जंगल में मिला था।
29 सितंबर 2012- मानकनगर से पारा के सूर्यनगर निवासी रत्नेश पांडेय के इकलौते आशीष को अगवा कर अपहरर्ताओं ने मार डाला। बदामाशों ने 20 सितंबर को अपहरण करने के बाद नौ घंटे बाद ही उसे गला दबाकर कत्ल कर दिया था। पुलिस की नाकामी का सुबूत रहा कि मासूम का कंकाल मिला था।
23 अगस्त 2015- मडिय़ांव के सीतापुर रोड पर सेक्टर-ए निवासी जीएसआई में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी राजीव शुक्ला के पांच वर्षीय पोते केशव को अगवा कर किरायेदार ने उसकी जान ले ली।वह भी दस लाख की फिरौती की मांग की, लेकिन उसकी दिन बच्चे को हमेशा के लिए दुनिया से जुदा कर दिया था।इन घटनाओं के अलावा राजधानी के ग्रामीण इलाकों में इस तरह की कई घटनाएं हुई जिनमें पुलिस खाली हांथ रही लोगो अपने बच्चों से हांथ धोना पड़ा।