सुधरेगी देश की आर्थिक सेहत

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विवेक शुक्ला।
अब कच्चे तेल के दाम तलहटी पर आ गए हैं। इसके विश्व बाजार में 40 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आने का मतलब है कि इससे भारत को तो तगड़ा लाभ होने वाला है। पिछले कुछ दिनों से कच्चा तेल लगातार नीचे गिरता जा रहा है। इससे घरेलू मोर्चे पर कई तरह की राहत मिलेगी। एक तो कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से भारत के इंपोर्ट बिल में कमी आएगी और सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी कम होगा। इसके अलावा कच्चे तेल के सस्ते होने से देश की पेंट, प्लास्टिक, फर्टिलाइजर और शिपिंग कंपनियों को फायदा होगा।
एक बात समझ लेनी चाहिए कि भारत कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है, कोयला आयात करने में भी वह तीसरे स्थान पर है और प्राकृतिक गैस का छठा सबसे बड़ा आयातक देश है। कुल मिलाकर वह ऊर्जा का चौथा सबसे बड़ा आयातक है। इसलिए तेल की कीमतों के बारे में आ रही खबरों से सबसे ज्यादा लाभान्वित होने वाले देशों में भारत भी प्रमुख है।देश का शुद्ध ऊर्जा आयात, उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6 फीसदी से भी अधिक है, जिसमें मुख्य हिस्सेदारी तेल की ही है। माना जा रहा है कि एशियाई अर्थव्यवस्थाओं-खासकर चीन और जापान का आर्थिक विकास कुछ थमता दिख रहा है, इसीलिए वहां से तेल की डिमांड में कमी होती नजर आ रही है और इसी के चलते तेल के दाम कम हो रहे हैं। ऐसे में क्या यह शुभ संकेत है? भारत के लिए तो अभी सब कुछ अच्छा दिख रहा है। तेल के दाम गिरने से महंगाई कम होगी और लोगों का बचा पैसा बाजार में आएगा। मगर यदि दाम गिरना अंतरराष्ट्रीय मंदी का लक्षण है तो इसका असर आज नहीं तो कल, भारत पर भी पडऩा ही है।ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल के भाव मांग और सप्लाई के आधार पर तय होते हैं जिसमें ओपेक की बड़ी भूमिका होती है। चीन की मांग पहले जैसी रफ्तार से नहीं बढऩे की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट हो रही है। क्रूड में नरमी से वित्त वर्ष 2014-15 में ऑयल मार्केटिंग कंपनियों की अंडर रिकवरी 40 फीसदी घटने का अनुमान है। तेल वितरण कंपनियां इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम सब्सिडी के कारण बाजार कीमत से काफी कम पर बिक्री करती हैं। नियंत्रित कीमत और बाजार कीमत के बीच के फासले को अंडर-रिकवरी या राजस्व नुकसान कहा जाता है और कंपनियों को इसकी भरपाई सरकार विभिन्न माध्यमों से करती है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से एचपीसीएल, बीपीसीएल और आईओसी को बड़ा फायदा होगा।
इसके साथ ही भारत जैसे देशों के लिए कच्चे तेल में आगे आने वाले उछाल से निपटने की तैयारी करने का सुनहरा मौका है। आगे आने वाले समय में कच्चा तेल तो उपलब्ध होगा लेकिन सस्ते कच्चे तेल का जमाना खत्म हो चुका है। एक राय यह भी है कि कच्चे तेल की कीमतों का इतना नीचे आना दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इससे साफ है कि दुनिया के अहम देश कठिनाई के दौर से गुजर रहे हैं। पिछले एक दशक में, जहां तेल की कीमतें आसमान पर थीं तो सरकार को पेट्रो उत्पादों की कीमतों को कम रखने और बेलगाम महंगाई को काबू में करने के लिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्रीय करों को कम रखने पर मजबूर होना पड़ा। फिलहाल पेट्रोल और डीजल उन वस्तुओं में शामिल हैं, जिन पर देश में सबसे कम टैक्स है। कच्चे तेल पर कोई सीमा शुल्क नहीं है और बिना ब्रांड वाले पेट्रोल और डीजल पर प्रति लीटर 3 रुपये से भी कम उत्पाद शुल्क है। राज्य सरकारें जरूर इस पर शुल्क लगाती हैं लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए यह सीमा शुल्क लगाने का बढिय़ा मौका है। दस फीसदी का टैरिफ लगभग 60,000 करोड़ रुपये का राजस्व देगा, जिससे केरोसिन और रसोई गैस पर सब्सिडी की क्षतिपूर्ति हो जाएगी। सब्सिडी में कमी और राजस्व में बढ़ोतरी के मेल से राजकोषीय घाटे में एक फीसदी की कटौती की जा सकती है, अगर कभी ऐसा हो पाया तो यह एक बड़ी सौगात होगी। ड्यूटी में बढ़ोतरी को तेल की गिरती कीमतों के साथ समायोजित किया जा सकता है, जिससे मुद्रास्फीति के फिर सिर उठाने का खतरा नहीं रह जाएगा।
बहरहाल कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कच्चे तेल की कीमतों में कमी से देश को चौतरफा लाभ हो रहा है। भारत तो चाहेगा कि विश्व बाजार में कच्चे तेल के दाम कभी बहुत न बढ़ें। कारण यह है कि हम तो अब भी कमोबेश बहुत बड़े स्तर पर अपनी जरूरत के लिए ईंधन का इंपोर्ट ही करते हैं। इस सारी प्रक्रिया में बहुत बड़ा खर्च देश को करना होता है।