फिर असंतोष की गिरफ्त में नेपाल

madeshi
पुष्परंजन।
पश्चिम नेपाल का टीकापुर, थारू बनाम गैर थारू राजनीति का केंद्र बन गया है। बीते सोमवार को निहायत ही नृशंस हिंसा की वारदात में हेड कांस्टेबल राम बिहारी चौधरी को जिंदा जला दिया गया, एसएसपी लक्ष्मण न्योपाने समेत सात पुलिसकर्मियों के टुकड़े कर दिये गये। हिंसा में दो साल का एक बच्चा भी मारा गया है। दर्जनों पुलिस वाले गंभीर रूप से घायल हैं। इस घटना से नेपाल ही नहीं, पूरा विश्व स्तब्ध है। नेपाल में 17 लाख थारू हैं, जो अलग थारू प्रदेश की मांग लंबे समय से कर रहे हैं। इन 17 लाख थारुओं में से पचास फीसदी थारू पश्चिमी नेपाल के चार जि़लों में बसते हैं।
भारतीय सीमा से लगे ये चारों जि़ले इन दिनों राजनीतिक रूप से संवेदनशील हैं। कैलाली को नेपाली सेना ने नियंत्रण में ले रखा है। विपक्षी एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के उपाध्यक्ष नारायण काजी श्रेष्ठ को शक है कि यह प्रपंच संविधान निर्माण के अंतिम चरण को रोकने के लिए किया गया है, ताकि यह काम 2015 में भी टल जाए। यह शक सही भी हो सकता है। लेकिन जो कुछ टीकापुर में हुआ, उसके लिए क्या सुशील कोइराला सरकार दोषी नहीं है?
नेपाल में 103 अलग-अलग जातीय समूहों के लोग हैं, जिनमें शक पैदा किया जा रहा है कि नये संविधान में उनको वाजिब हक नहीं मिल रहा है। सरकार नये संविधान द्वारा नेपाल को 14 राज्यों में बांटने के पक्ष में है। इनमें से आधे इलाकों में विभाजन नस्ली आधार पर तय किया गया है। तराई में एक मधेस प्रदेश की मांग पहले से थी, पर वहां अलग-अलग समूहों की विभिन्न मांगों ने कन्फ्यूजन की स्थिति पैदा कर दी है। तराई में हफ्तों से जारी हिंसा में 53 लोग मारे गये हैं। 13 अगस्त 2015 को कैलाली में किसी मधेस नेता ने जनता से आह्वान किया था कि इस इलाके में जो पहाड़ी है, उन्हें खदेड़ कर पहाड़ पर भेज दो। इस बात को लेकर पहाड़ी बनाम थारुओं में ठन गई। सुशील कोइराला सरकार के पास इसकी खुफिया जानकारी थी कि थारू बहुल संवेदनशील टीकापुर के लोग संविधान निर्माण में देश के सीमांकन के सवाल पर गुस्से में हैं, और कभी भी हिंसा हो सकती है।
खुफिया विभाग को ऐसी आशंका थी, तभी हिंसा से पहले इस इलाक़े में निषेधाज्ञा लागू की गई थी। कफ्र्यू का उल्लंघन कर कोई तीन हजार की संख्या वाली भीड़ ने थरुहट संघर्ष समिति के नेता रेशम चौधरी के स्वामित्व वाली फुलवारी एफएम, फुलवारी रिसॉर्ट, सभासद जनकराज चौधरी का घर, थारुओं के अगुआ शिवनारायण चौधरी के निरू ट्रेडर्स में आग लगा दी। टीकापुर हिंसा व आगजनी कांड के सिलसिले में गुरुवार तक एक दर्जन लोग पकड़े गये हैं।
सरकार ने एक उच्चस्तरीय छानबीन समिति गठित की है, जिसके अध्यक्ष राष्ट्रीय अनुसंधान विभाग के पूर्व प्रमुख देवीराम शर्मा नियुक्त किये गये हैं। नेकपा (माले), चुरेभांवर राष्ट्रीय एकता पार्टी नेपाल के प्रवक्ताओं, थारू नेता बिरमन चौधरी ने इसकी निष्पक्ष जांच की मांग की है। टीकापुर में जातीय हिंसा की आग तराई के दूसरे इलाकों में फैल गई है। कंचनपुर, धनगढ़ी से लेकर पर्सा, बारा, रौतहट, सरलाही, मोरंग जिले के इलाके गरम हैं। बारा जिला मुख्यालय गौर में हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हुई है, चौबीस प्रदर्शनकारी रबर बुलेट से घायल हैं।
प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने कहा है कि जिसे भी संविधान के मसौदे से असहमति है, वह संविधान सभा में आकर अपनी आपत्ति दर्ज कराये। सरकार अब तक नींद में क्यों थी, यह जानकर आश्चर्य होता है। 1 जुलाई 2015 को सरकार ने संविधान सभा में नये संविधान का पहला मसौदा रखा। उसकी प्रतिक्रिया में बीरगंज में मधेस जनाधिकार फोरम मधेस के नेता प्रोफेसर भाग्यनाथ गुप्ता ने संविधान मसौदे की कॉपी जलाई। भाग्यनाथ गुप्ता 2007 में भी ऐसा कर चुके हैं।
2 जुलाई 2015 को संयुक्त मधेसी फ्रंट के चार घटक तराई मधेस लोकतांत्रिक पार्टी, संघीय समाजवादी फोरम नेपाल, सद्भावना पार्टी और तराई-मधेस सद्भावना पार्टी ने काठमांडो से लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में संविधान के ड्राफ्ट की प्रतियों को आग लगाई। मधेसी पार्टियों ने ऐलान किया है कि प्रदर्शन के दौरान किसी तराईवासी की मौत होती है तो उसके परिजनों को पचास लाख रुपये दिये जाएंगे। यह खतरनाक ऐलान है, जिससे राजनीतिक आत्मघाती भी तैयार हो सकते हैं। इस समय जो दल संविधान बनाये जाने के प्रति गंभीर हैं, उनमें नेपाली कांग्रेस, नेकपा एमाले, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, राष्ट्रीय जनमोर्चा के साथ कुछ निर्दलीय सभासद एक तरफ हैं। सुशील कोइराला सरकार को चाहिए कि चार पार्टियों के समर्थन का अहंकार त्याग कर तराई, थरुआन, चूरे भांवर और पहाड़ के विभिन्न नेताओं का एक महासम्मेलन बुलाये और आम सहमति से संविधान का प्रारूप तय करे। यह सच है कि कोइराला सरकार ने तराई से उठ रहे विरोध के स्वर को सुनने की परवाह नहीं की। यह सरकार के दंभ को दर्शाता है। इस समय नेपाल में सरकारी कामकाज 2007 के अंतरिम संविधान के आधार पर चल रहा है। राजशाही के दौरान निर्मित 1990 के संविधान को निरस्त करने की प्रक्रिया अप्रैल 2006 में दोस्रो जन आंदोलन के बाद आरंभ हो गई। नेपाल की राजनीति में कितना कनफ्यूजन है, उसका सबसे बड़ा नमूना नया संविधान निर्माण बन गया है। टीकापुर हिंसा कांड को लेकर नेपाल, दूसरी बार शर्मसार हुआ है।
20 जनवरी 2015 को रात्रि डेढ़ बजे नेपाली संसद में धक्का-मुक्की और मार-पिटाई के दृश्य को अभी दुनिया भूली नहीं है। संसद में मारपीट के दो दिन बाद, 22 जनवरी 2015 को संविधान पेश हो जाना था, और उस पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर देने थे। मगर, 22 जनवरी को नेपाली संसद में दस पैकेट लाल मिर्ची पाउडर की बरामदगी, कुछ सांसदों ने संदेश दिया कि हम जिम्मेदार लोग नहीं हैं। किसी ने सही कहा है-यथा राजा, तथा प्रजा। प्रश्नावली निर्माण समिति और मसौदा बनाने के प्रश्न पर जब सांसदों ने शालीनता नहीं दिखाई तो टीकापुर की उग्र जनता से हम समझदारी की उम्मीद कैसे कर सकते थे?