पाकिस्तान से सदाशयता की उम्मीद बेमानी

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कृष्णमोहन झा।
भारत अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ बातचीत के जरिए संबंध सुधार की कोशिशों से कभी पीछे नहीं हटा है परंतु जब जब उसने ऐसी कोई पहल की है तब तब उसे निराशा ही हाथ लगी है। भारत की सदाशयता का उत्तर पाकिस्तान ने हमेशा किसी सोची समझी शरारत से ही दिया है और सारा दोष भारत के सर पर मढऩे में उसने कभी शर्म भी महसूस नहीं की। भारत में 23 एवं 24 अगस्त को दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच होने वाली बैठक के पूर्व ही पाकिस्तान ने कश्मीर के अलगाववादी संगठन हुर्रियत के नेताओं को बातचीत के लिए बुलावा भेजकर यह संदेश दे दिया था कि वह येन केन प्रकारेण दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है। पाकिस्तान सरकार को यह बात अच्छी तरह मालूम थी कि उसका हुर्रियत नेताओं से सलाह मशविरा करना भारत को स्वीकार्य नहीं होगा इसलिए उसने यह सोची समझी शरारत की और परिणाम वही हुआ जिसकी आशंका थी। उसकी इसी चाल के कारण दोनों देशों के बीच विदेश सचिव स्तर की वार्ता रद्द हुई थी और इस बार दोनों देशों के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की बैठक पर ग्रहण लग गया जिसके लिए पाकिस्तान ने भारत को जिम्मेदार ठहरा कर एक बार फिर असली चेहरा उजागर कर दिया।
भारत और पाकिस्तान के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता रद्द होने के दो दिन बाद ही पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का यह बयान आया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी बातचीत में कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को तीसरा पक्ष मानकर बातचीत से अलग नहीं रखा जा सकता। गौरतलब है कि भारत ने हमेशा ही यह स्पष्ट कहा है कि दोनों देशों के बीच कश्मीर के मुददे पर होने वाली बातचीत में उसे तीसरे पक्ष की उपस्थिति स्वीकार्य नहीं होगी। उधर पाकिस्तान की हमेशा से ही यह नीति रही है कि कश्मीर के अलगाववादी संगठनों को अपना समर्थन देकर वह भारत के इस इलाके में शांति प्रक्रिया की कोशिशों को न केवल पलीता लगाता रहे बल्कि वहां आतंकवादियों की घुसपैठ कराकर अशांति का माहौल कायम रखने की उन साजिशों पर भी विराम न लगने दे जिनको रचने वाले आतंकवादी संगठन पाकिस्तान सरकार की नाक के नीचे फलफूल रहे है। दरअसल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उफा में अपनी बातचीत में दोनों देशों के बीच त्रिस्तरीय बैठकों के जरिए आतंकवाद पर नियंत्रण तथा सीमा पर शांति बहाली की दिशा में पहल करने पर सहमति जताई थी उसे पाकिस्तान की सेना तथा आईएसआई के हुकमरानों ने पसंद नहीं किया और उनके दबाव में आकर ही शरीफ को स्वदेश लौटते ही अपना चोला बदलना पड़ा था। उसके बाद ही यह आसार नजर आने लगे थे कि पाकिस्तान ऐसी कोई चाल चलेगा जिससे कि दोनों देशों के बीच 23-24 अगस्त की तय शुदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता संपन्न ही न हो सके और इसका ठीकरा वह भारत के सिर फोड़ दे और ऐसा हुआ भी। वार्ता न हो पाने के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रीस सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने भारत को जिम्मेदार ठहराने में तनिक भी देर न करते हुए यह दंभोक्ति कर डाली कि बातचीत रदद होने के लिए पाकिस्तान दोषी नहीं है। अजीज यहीं तक नहीं रुके उन्होंने कूटनीतिक सौजन्यता की सारी सीमाएं लाघते हुए भारत को यह धमकी दे डाली कि भारत के प्रधानमंत्री अपने देश को क्षेत्रीय ताकत समझ रहे है परंतु हम खुद एक परमाणु संपन्न देश हैं। भारत के पूर्व सचिव ने सरताज अजीज की इस धमकी को गिदड़ भभकी निरूपित करते हुए ठीक ही कहा है कि इस्लामाबाद को यह समझना चाहिए कि परमाणु हथियार कोई खिलौना नहीं है।
दरअसल पाकिस्तान को एक बात तो अच्छी तरह समझ आ गई है कि भारत में प्रधानमंत्री पद की बागडोर नरेन्द्र मोदी के हाथों में आने के बाद उसे अपनी हर शरारत का अब माकूल जवाब मिलता रहेगा। इसलिए वह लगातार भारत के विरूद्ध विषपान के द्वारा खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत चरितार्थ कर रहा है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज के बयान को ही दोहराते हुए वहां के गृहमंत्री चौधरी निसार अली ने भारत पर शांति प्रक्रिया बाधित करने का आरोप मढ़ दिया है। निसार अली ने लंदन में ब्रिटिश विदेश मंत्री फिलिप हेमण्ड के साथ बातचीत में यह हास्यास्पद तर्क पेश किया कि पाकिस्तान तो पड़ोसी देशों के साथ दोस्ती वाले रिश्ते चाहता हे परंतु भारत उसमें बाधा बनकर क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहा है। पाकिस्तान नेताओं ने भारत के विरूद्ध विषवमन का जो सिलसिला छेड़ रखा है उससे साफ जाहिर है कि वह अपनी शरारतों से बाज नहीं आने वाला है और भारत को अब उसे उसकी भाषा में ही जवाब देना होगा।
उफा में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच बातचीत के दौरान इस बात पर सहमति बनी थी कि आतंकवाद के मुददे पर दोनों देशों के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर, सीमा पर शांति के लिए भारत के डायरेक्टर जनरल सीमा सुरक्षाबल तथा पाकिस्तान के डायरेक्टर जनरल पाक रैंजर्स के बीच तथा संघर्ष विराम उल्लंघन के मुददे पर दोनों देशों के जनरल मिलिट्री आपरेशंस के डायरेक्टर के बीच वार्ता आयोजित की जाए। पाकिस्तान द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर होने वाली बातचीत में रोड़ा अटकाने से उसकी इस चाल को भारत समझ चुका है कि बाद की दो वार्ताओं में भी वह किसी बहाने से रोड़ा अटका कर उसका दोष भारत के सिर मढऩा चाहता है। पाक रैंजर्स के डायरेक्टर जनरल और भारतीय सीमा सुरक्षा बल के डायरेक्टर के बीच होने वाली वार्ता के लिए 6 सितंबर की तारीख तय की गई है। भारत सरकार ने अपनी ओर से इस बैठक के लिए एजेंडा भेजकर यह संदेश दे दिया है कि सीमा पर शांति बहाली के लिए वह दोनों देशों के बीच होने वाली दूसरी बैठक के आयोजन पर प्रश्रचिन्ह लगते देखना नहीं चाहता लेकिन पाकिस्तान में सेना और आईएसआई द्वारा वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर बनाए जा रहे दबाव को देखते हुए यह आशंका बनी हुई है कि पाकिस्तान न केवल दूसरी बल्कि तीसरी बैठक भी किसी न किसी बहाने से टालने की फिराक में है और वह उसके लिए भारत पर तोहमत लगाने से भी नहीं चुकेगा।
कुल मिलाकर पाकिस्तान की शरारतों से हमें बार बार यह संदेश मिलता रहा है कि उसके इरादे नेक नहीं है। कश्मीर में आतंकवादियों की घुसपैठ कराने की कोशिशों से कभी वह बाज नहीं आएगा और सीमा पर अशांति का माहौल कम करने में उसकी ओर से ईमानदार पहल की उम्मीद भी बेमानी साबित होगी। कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के प्रति उसका खुला समर्थन भी शांति प्रयासों को धक्का पहुंचाता रहेगा। ऐसे में भारत के पास अब केवल यही उपाय शेष बचता है कि वह उसकी शरारतों का माकूल जवाब देने के लिए ऐसे प्रभावी कदम उठाए जिनसे पाक को अपनी शरारतों पर पछतावा होने लगे। ऐसे उपायों के तहत भारत अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में पाक का आतंकवाद समर्थक राष्ट्र के रूप में असली चेहरा उजागर करके उस पर दबाव बना सकता है। लेकिन सारी समस्याओं का स्थायी हल तो उभयपक्षीय बातचीत के माध्यम से ही निकल सकता है। पाकिस्तान जब तक इस हकीकत को समझने के लिए तैयार नहीं होता तब तक वह अपना खुद का भी नुकसान करता रहेगा।