भानगढ़ का किला: जहां सूर्यास्त के बाद रुकना मना है

Bhangarh-Fort
फीचर डेस्क। संसार में भूत प्रेतों का जिक्र होते ही लोगों की हालत पतली हो जाती है। विज्ञान भले ही हमेशा से इसको नकारता रहा हो मगर आज भी कई ऐसी जगह हैं जहां उनका आभास होता है। ऐसी ही एक जगह राजस्थान में है जहां आत्माओं का वास है और उनको खलल डालने वाले लोग पसंद नहीं हैं। दरअसल भानगढ़ राजस्थान के अलवर जिले में बसा एक खंडहर किला है। इसे अब देश-विदेश में भूतों के भानगढ़ के नाम से जाना जाता है। यहां पर देशी-विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में आते है। यहां के स्थानीय निवासी बताते हैं कि रात के समय इस किले से तरह-तरह की भयानक आवाजें आती हैं।उनका तो यह भी कहना है कि आज तक रात के समय जो भी इस किले के अंदर गया वह वापस नहीं लौटा, लेकिन भानगढ़ के इस भुतहा भय के पीछे सच्चाई कितनी है और कितना मिथक है? इस राज से आज तक कोई परदा नहीं उठा सका। अरावली पर्वतमालाओं की हरी भरी गोद में बिखरे भानगढ़ के इन खंडहरों में आज भूतों का भय पसरा हो, लेकिन किसी समय यहां जिंदगी मचला करती थी। भानगढ़ एक भव्य और आबाद इलाका था। इसके किले और कस्बे में राजसी वैभव बिखरा रहता था।
जानकारी के अनुसार भानगढ़ के किले को आमेर के राजा भगवंतदास ने 1573 में निर्माण करवाया था। बाद में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल भगवंतदास के बेटे मानसिंह के छोटे भाई माधोसिंह ने इसे अपनी रिहायश बना ली। उस वक्त भानगढ़ का वैभव चरम पर था। किले के अंदर करीने से बनाए गए बाजार, सुंदर मंदिरों, भव्य महल और तवायफों के आलीशान कोठे इसके यौवन को और परवान चढ़ाते थे। यहां रंडियों का महल भी है तो गोपीनाथ, सोमेश्वर, मंगलादेवी और कृष्णकेशव के मंदिर हैं। भानगढ़ को पूरी नगर नियोजन कला के साथ बसाया गया था। यहां बाजार, बाग और बावडिय़ां बहुत ही सुंदरता के साथ बनाई गई हैं।
मौजूदा भानगढ़ एक शानदार अतीत की बर्बादी की दुखद दास्ता बताता है। किले के अंदर की इमारतों में से किसी की भी छत नहीं है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इसके लगभग सभी मंदिर पूरी तरह से सही सलामत हैं। इन मंदिरों की छतों, दीवारों और खंभों पर की गई नक्काशी से ये सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी वक्त में ये किला कितना सुंदर रहा होगा।
अपने वक्त में भानगढ़ जितना वैभवशाली था उतने ही कहानी किस्से इसकी बर्बादी के बारे में पढऩे और सुनने को मिलते हैं। कहते है कि माधोसिंह की मृत्यू के बाद उसका बेटा छतरसिंह भानगढ़ का राजा बना, जिसकी 1630 ईस्वी में एक लड़ाई में मौत हो गई। इसके बाद भानगढ़ की गद्दी पर बैठे उसके बेटे अजबसिंह ने इसके कुछ दूरी पर अजबगढ़ नामक एक किले का निर्माण करवाया था, जो कि पानी से परिपूर्ण इलाके में स्थित था। अजबसिंह वहीं रहने लगा। इसके बाद आमेर के राजा जयसिंह ने 1720 ईस्वी में भानगढ़ को जबरन अपने राज्य में मिला लिया। इसके बाद भानगढ़ उजडऩे लग गया। यहां पर पानी की कमी तो थी ही, 1783 के अकाल में यह इलाका पूरी तरह से उजड़ गया। लेकिन, मिथकीय कथाएं बड़ी रहस्मय और रोचक कहानियां भानगढ़ की बर्बादी के बारे में बयां करती हैं। मिथकों के अनुसार भानगढ़ में गुरू बालूनाथ नामक एक शापित स्थान है।यहां बालूनाथ रहते थे। कहते है कि भानगढ़ में एक महल के निर्माण के वक्त उन्होंने राजा को ये चेतावनी दी थी कि महल की ऊंचाई इतनी नहीं होनी चाहिए कि उसकी छाया उनके ध्यान स्थान से आगे निकल जाए। अगर ऐसा हो गया तो यह पूरा नगर ध्वस्त हो जाएगा। लेकिन, राजा अजबसिंह ने इस बात पर गौर नहीं किया और महल की ऊंचाई इतनी बढ़ा दी कि उसकी परछाईं गुरु बालूनाथ के ध्यान स्थान से आगे निकल गई। लिहाजा गुरु के शाप से यह नगर एक ही रात में बर्बाद हो गया। बचे तो सिर्फ यहां के मंदिर।
कहते हैं कि शींडा नामक एक तांत्रिक के शाप के कारण बर्बाद हुआ। किंवदंती बताती है कि इस तांत्रिक को भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती से प्रेम हो गया था, जो कि उस समय पूर राजपूताना में सबसे सुंदर मानी जाती थी। एक दिन तांत्रिक ने राजकुमारी की नौकरानी को बाजार से इत्र खरीदते देख लिया। उसने उस इत्र पर तांत्रिक प्रयोग कर दिया ताकि उसे लगाते ही राजकुमारी उसकी ओर आकर्षित हो जाए। लेकिन इस बात का राजकुमारी को पता चल गया और उसने एक पत्थर लुढ़काकर तांत्रिक को मार दिया, लेकिन मरते-मरते तांत्रिक भानगढ़ के विनाश का शाप दे गया और यहां के मंदिरों को छोड़कर यह इलाका एक ही रात में बर्बाद हो गया। ऐसे अनेक किस्से भानगढ़ की बर्बादी के बारे में आज भी प्रचलित हैं। इस इलाके के आस पास के गांवों में रहने वालों का आज भी विश्वास है कि अब भी राजकुमारी रत्नावती और भानगढ़ के निवासियों की आत्माएं किले में भटकती हैं। ऐसे में इन आत्माओं के भय से कोई भी रात के समय में यहां जाने की जुर्रत नहीं करता।
रात के वीराने में कोई यहां फटकता भी नहीं है। दिन के समय में भी भानगढ़ में खामोशी पसरी रहती है। उसे तोड़ते हैं सिर्फ यहां सैर करने वाले सैलानी। लेकिन ज्यादातर सैलानियों का कहना है कि उनको दिन में भी यहां पर अजीब तरह का अहसास होता है। कुछ बैचेनी और हल्की-सी सिहरन। वहीं तेज हवाओं साथ यहां केवड़े की खुशबू भी वातावरण और रहस्यमय बना देती है।
यहां के सुनसान पड़े रहने वाले मंदिरों में तंत्र साधना करने वाले चोरी-छिपे आकर अपनी साधना करते रहते हैं क्योंकि यहां के अधिकांश मंदिरों में नियमित पूजा नहीं होती। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्त हिदायत दे रखी है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके में किसी भी व्यक्ति के रूकने के लिए मनाही है।