मिसाल: समाज से मिले को कई गुना कर देते है वापस

sadan lko

डेस्क। यहां समाज के दिये को कई गुना कर वापस लौटाने की 100 साल पुरानी परंपरा है। श्रीमद दयानंद बाल सदन मोतीनगर लखनऊ अपने आप में अनूठा है। जहां निराश्रित और अनाथ बच्चों को संस्कारों के साथ पालने पोसने के साथ उन्हे अपने पैरों पर खड़ा किया जाता है। इसीलिए भारत के कई हिस्से एक साथ इसके परिसर में नजर आते है। भूकंप से पीडि़त नेपाल के भी बच्चे यहां पहुंचने वाले हैं। निराश्रित और अनाथ बच्चों का अपना घर देश के विभिन्न हिस्सों से आये, सदन में करीब 150 निराश्रित बच्चे है। समाज की मदद से चलने वाला सदन बच्चों को बेहद संस्कारवान और अपने पैरों पर खड़ा कर समाज को वापस करता है। बिना किसी सरकारी मदद के चलने वाले बाल सदन को ययावर सन्यासी निर्भयानंद ने 1912 में स्थापित किया था। वे आर्यसमाजी थे। बालसदन का मानना है कि इंजीनियर डाक्टर या चाटर्ड एकाउंटेंट बनाने के पहले जरूरी है बच्चों को अच्छा इंसान बनाना, संस्कारवान अपना रास्ता खुद ढूंढ लेते है। सदन में उप्र के बाद सबसे ज्यादा बच्चे त्रिपुरा के है। यहां जाति पात से ऊपर समानता का माहौल है। बच्चों को ही भगवान का रूप माना जाता है। सब एक साथ खेलते और खाते है। पढ़ायी ऐसी करायी जाती है कि सदन से निकलने के बाद अपने पैरों पर खड़े हो सकें। अपना रोजगार चला सकें। लड़कियों को सिलाई कढ़ाई और कम्प्यूटर की भी शिक्षा दी जाती है। किसी भी तरह के विवादों से दूर सदन को समाज के लोगों से मदद मिलती है। धर्मदत्त ने बताया कि नेपाल में आये भूकंप के कारण वहां से एक दर्जन बच्चों को यहां भेजने के लिए एक संस्था ने उनसे संपर्क किया है।
लखनऊ के मोतीनगर इलाके मौजूद संस्था के मौजूदा संचालक धर्मदत्त ज्वाइंट सेक्रेटेरी के पद से रिटायर होने के बाद जिंदगी भर की बचत, फंड पेंशन को बाल सदन के हवाले कर दिया। करीब 82 साल के धर्मदत्त दंपत्ति बच्चों की सेवा अपने पोते पोतियों की तरह ही कर रहें है। तमाम खूबियों के बावजूद सौ साल पुराने निरात्रित बच्चों का सहारा बनने वाले बाल सदन में सिर्फ जूनियर हाईस्कूल तक की पढ़ायी होती है। हाईस्कूल और ऊंची पढ़ाई के लिए बच्चों को दूसरे स्कूलों में दाखिला दिलाया जाता है। धर्मदत्त का कहना है कि बच्चे संस्कारवान और काबिल बन जाएं तो बड़ी उपलब्धि होती है। हमारा मकसद भी यही है। बाल सदन के मुकेश और मोहित संस्कृत के व्याकरण और भाषा में परांगत है। वेद मंत्रों के उच्चारण पर उनकी पकड़ लोगों को सम्मोहित करती है। संस्था उन्ही बच्चों को रखती है जिन्हे उनके ग्राम प्रधान या क्षेत्र के परगना मजिस्ट्रेट ने भेजा हो।