आप पर कलह की छाप

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देश के सामाजिक व राजनीतिक चरित्र में बदलाव की आकांक्षा जगाकर अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी का चरित्र अन्य राजनीतिक दलों जैसा नजर आ रहा है। अब पंजाब में भी उसकी साख दांव पर है। लगता है नेतृत्व की निरंकुशता और वैचारिक स्वतंत्रता को दरकिनार करना आप का चरित्र बन गया है। पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाते हुए पंजाब के दो सांसदों का निलंबन इसी सोच को उजागर करता है। आप के संगठन में जिस तरह की कलह जारी है उसके निहितार्थ समझना कठिन नहीं है। लोकसभा चुनाव में पूरे देश में आप को सिर्फ चार सांसद मिले, वे भी पंजाब से। यानी पंजाब के दो सांसदों धर्मवीर गांधी और हरिंदर खालसा के निलंबन के बाद संसद में पार्टी की संख्या आधी रह जाएगी। आप में जारी महत्वाकांक्षाओं के टकराव के चलते पार्टी के संस्थापक सदस्यों योगेन्द्र यादव व प्रशांत भूषण को पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। पार्टी से निकाले गए नेताओं के प्रति निष्ठा ही इन सांसदों के निलंबन की वजह बनी है।
दरअसल आम आदमी पार्टी पंजाब के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए जमीन तैयार करने में जुटी है। एक समय था कि लोकसभा चुनाव में तीसरे विकल्प की तलाश में जनता ने आप को चुना था। मगर अब आप नेतृत्व की कारगुजारियों से उनका मोह भंग होता नजर आ रहा है। निलंबित सांसदों पर जो आरोप लगाए गए हैं उसका कोई तार्किक आधार जनता को नजर नहीं आता। दरअसल दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के बाद पार्टी का राजनीतिक चरित्र अन्य पारंपरिक राजनीतिक दलों जैसा हो गया है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व असहमति के किसी सुर को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। वास्तव में कार्यकर्ताओं की आकांक्षाओं के अनुरूप पार्टी नेतृत्व को आत्ममंथन करना चाहिए। यह भी सोचना चाहिए कि सैद्धांतिक मुद्दों और नेतृत्व को लेकर मतभेद लगातार मुखर क्यों होते जा रहे हैं। पार्टी के भीतर असंतोष की सुगबुगाहट को नजरअंदाज कर पार्टी के नेताओं व निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को बाहर का रास्ता दिखाना कोई लोकतांत्रिक कदम नहीं कहा जा सकता। खासकर उस पार्टी के लिए जो साफ-सुथरी राजनीति के वादे के साथ अस्तित्व में आई है। या फिर यह मान लेना चाहिए कि आप भी तमाम राजनीतिक दलों की कार्यशैली की विद्रूपताओं के साथ आगे बढऩे लगी है।